
डॉ॰ अर्जुन गुप्ता ‘गुंजन’
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रिमझिम बरसात भरी
(उड़ियाना छंद)
रिमझिम बरसात भरी, सावन सुहावनी।
शिव जी का ध्यान धरें, ऋतु है सुपावनी॥
नद नाले तृप्त हुए, हरियाली छायी।
कोयल की कुहू-कुहू, मन को नित भायी॥
सूरज अब आन छुपा, मेघ की ओट में।
बारिश में लोग दिखे, नित रेनकोट में॥
पंछी कल्लोल करें, नीड़ मध्य रहते।
भीषण बरसात मध्य, आतप सब सहते॥
बादल को देख हुआ, मदमस्त मयूरा।
कृषक नित्य झूम रहा, कार्य हुआ पूरा॥
शुचि नलिनी नलिन नव्य,सरवर बिच शोभे।
बागों में पुहुप नित्य, मन को अब लोभे॥
साजन परदेश गये, किसे कहूँ बतियाँ।
काटे अब कटे नहीं, साजन बिन रतियाँ॥
विरहन की विरह बैन, निशदिन तड़पाती।
प्यार भरी याद नित्य, मन को बहलाती॥
