
डॉ. अशोक बत्रा, गुरुग्राम
छुअन- छुअन में फर्क बहुत है!
माँ छूती है बादल जैसे
बारिश जैसे, अमृत जैसे!
स्पर्श पिता का
धूप हो जैसे, सूरज जैसे।
दादा दादी नाना नानी
किशमिश जैसे और छुआरे।
सखी सहेली भाई बहना
बड़े दुलारे! बड़े ही प्यारे!!
पर कुछ लोग हैं छूते ऐसे
अंग अंग गल जाते सारे!
नयनों में से कीचड़ रिसता
होठों पर पुचपुच औ गुचगुच!
और स्पर्श में साँप रेंगते
भरे वासना की लिज़लिज़ से।
मेरी बहनो! और बेटियो!
सावधान रहना है उनसे!
उन आँखों में नहीं देखना!
और अगर दिख भी जाए तो
आँखों में तलवार उगाओ!
वचनों में ब्रह्मोस जगाओ।
धू धू करके जल जाएँगी
भरी वासना से वे आँखें!
और हथेली जो गंदी हैं
उन पर हथकडियाँ पहनाओ!
मेरी बहनो! और बेटियो!
सावधान उनसे रहना है!!
जगो, जगाओ!
छुअन छुअन का अंतर जानो!
जागो मेरी बहन बेटियो!
जागो उनके अभिभावक जन!
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