फीजी गिरमिट कौंसिल
फीजी गिरमिट कौंसिल एक गैर-लाभकारी, सामाजिक, गैर-सरकारी संगठन है जिसे डीड ऑफ ट्रस्ट के तहत 1979 में पंजीकृत किया गया। इसकी सदस्यता में फीजी के दस भारतीय सांस्कृतिक, धार्मिक और शैक्षणिक संस्थाएं शामिल हैं। जिनकी नामावली इस प्रकार हैं :- आर्य प्रतिनिधि सभा, देंन इंडिया संमार्गा इक्या संगम, गुजरात समाज, फीजी कौंसिल ऑफ़ चर्चेस, सिख एजुकेशन सोसायटी, दक्षिण इंडिया आंध्रा संगम, अहमदीया अंजुमन ईशात-ए-इस्लाम, कबीरपंथ सम्मेलन महासाभा, फीजी मुस्लिम लीग, श्री सनातन धर्म प्रतिनिधि सभा। प्रत्येक संस्थाओं के दो सदस्यों को फीजी गिरमिट काउंसिल की बोर्ड में नियुक्त किया जाता है। बोर्ड के वर्तमान अध्यक्ष श्री वाई पी रेड्डी हैं।
गिरमिट प्रथा के अंतर्गत आए प्रवासी भारतीयों की सौवां वर्षगांठ के अवसर पर गिरमिट सेंटर की स्थापना सन् 1979 में की गई। गिरमिट प्रथा के अंतर्गत आए गिरमिटयाँ मजदूरों की यादगारी में हर वर्ष चौदह मई को गिरमिट दिवस मनाया जाता है। यह फीजी के प्रवासी भारतीयों के लिए एक ऐतिहासिक अवसर था जब भारत के भूतपूर्व प्रधान मंत्री आदरणीय श्रीमती इंदिरा गांधी जी ने 21 सितंबर 1981 को गिरमिट सेंटर के उद्घाटन का कार्यभार संभाला था। भारतीय संस्कृति और हिंदी भाषा को संरक्षित और बढ़ावा देने के लिए भारत के उच्चायोग के सहयोग से गिरमिट सेंटर पर निम्नलिखित सांस्कृतिक कार्यक्रम उपलब्ध हैं:- भरतनाट्यम, हार्मोनियम, तबला, हिन्दी भाषा, योग आदि। ये कक्षाएं योग्य और अनुभवी शिक्षकों द्वारा आयोजित की जा रही हैं। इन कार्यक्रमों द्वारा न केवल विद्यार्थियों में अनुशासन और अच्छे मानव मूल्यों को प्रेरित किया जाता है बल्कि उनके चरित्र निर्माण और व्यक्तिगत विकास को भी बढ़ाता मिलता है। इसके अलावा सदस्यों के सभी मुख्य त्योहार जैसे होली, दिवाली, पैगंबर मोहम्मद का जन्मदिन, बैसाखी, क्रिसमस, नवरात्रि आदि पर्वों को मनाया जाता हैं।
हिंदी परिषद फीजी
हिंदी भाषा के प्रसार-प्रचार, भारतीय संस्कृति के विकास और शिक्षण को सबल आधार देने के उद्देश्य से 16 जनवरी, 2016 को हिंदी परिषद् फीजी का गठन किया गया। इस संस्था में फीजी के केन्द्रीय, पश्चिमी तथा पूर्वी शाखा के सदस्यों की भी सक्रिय भागीदारी रही है। हिंदी की किसी समस्या को सरकार या उच्च अधिकारियों तक ले जाने में इस संस्था की विशेष भूमिका रहती है। हिंदी परिषद फीजी का अपना सवीकृत संविधान है जिसके तहत वे एक जुट होकर निम्नलिखित कार्य कर रहें हैं:- समाज में हिंदी भाषा के मौखिक तथा लिखित स्तर का विकास करना; हिंदी अध्ययन कर्ताओं की समस्याओं को दूर करना; हिंदी शिक्षण में अनुसंधान के लिए अधिक सुविधाएँ उपलब्ध करवाना; हिंदी भाषा के शिक्षकों को प्रशिक्षित करना; हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार हेतु कार्यशालाओं, संगोष्ठी, साहित्यिक समारोहों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करना।
उदाहरणार्थ 29 अप्रैल, 2017 को परिषद द्वारा ‘एक शाम संगीत, कविता और शायरी के नाम’ नामक एक बहुत ही ऐतिहासिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें हिंदी को प्रोत्साहन देने के लिए भारतीय समाज के उन लोगों को समानित किया गया जो निःस्वार्थ हिंदी की सेवा में कार्यरत हैं । तथा कार्यक्रम के अंतर्गत कविता, शायरी, सांस्कृतिक संगीत, गीत और नृत्य के लिए कलाकरों को एक मंच दिया गया जहाँ वे अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर सकें । वहीं 16 सितम्बर, 2017 परिषद ने विश्व हिंदी दिवस कार्यक्रम के अंतर्गत युवाओं के लिए कविता पाठन, भाषण प्रतियोगिता और निबंध लेखन प्रतियोगिता आयोजित किए। हिंदी दिवस कार्यक्रम हर वर्ष फीजी के अलग- अलग जिलों में आयोजित की जाती है। इस कार्यक्रम के दौरान पश्चिमी क्षेत्र के 18 प्रायमरी स्कूलों, 10 सेकेंडरी स्कूलों और विश्वविद्यालयों के विद्यार्थियों ने अपना योगदान दिया। इसके अतिरिक्त संस्था द्वारा हिंदी लेखन कार्यशाला, साहित्यिक समारोहों, साहित्यकार जोगिन्दर सिंह कंवल का स्मृति समारोह आदि आयोजित किए गए। इस संस्था का यही प्रयास रहता कि फीजी में हिन्दी भाषा और भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देना तथा इसके स्तर को ध्यान में रखते हुए, भाषा की गरिमा एवं संवेदनशीलता को बनाए रखना।
आर्य प्रतिनिधि सभा ऑफ फीजी
स्वामी दयानन्द जी के सिद्धांतों और वैदिक सिद्धांतों पर आधारित आर्य प्रतिनिधि सभा ऑफ फीजी हिंदी भाषा संरक्षण और प्रचार-प्रसार को प्रमुख्ता देती है। सन् 1904 से यह संस्था फीजी में वैदिक प्रचार और हिंदी की साक्षरता पर बल देती आ रही हैं। आर्य प्रतिनिधि सभा के ठोस कदम द्वारा सन् 1918 में लौतोका के गुरुकुल प्रायमरी स्कूल ने भारतीयों की शिक्षा का बीड़ा उठाया। यह हिंदी की शिक्षा प्रदान करने वाला पहला स्कूल था। पंडित अमी चन्द्र विद्यालंकर (1900-1954) आर्य समाज संस्था के सहयोग से भारत से सन् 1927 में फीजी आए।[i] आपने सावेनी, लौतोका में गुरुकुल प्राइमरी स्कूल में अध्यापन किया और वहां के प्रधानाचार्य भी रहे। पंडित अमी चन्द्र विद्यालंकर का सबसे बड़ा योगदान हिंदी किताबों की श्रृंखला प्रकाशित करने की रही है। फीजी में हिंदी शिक्षण के लिए पुस्तकों की आवश्यकता थी और इस समस्या के समाधान हेतु पंडित अमी चन्द्र जी ने प्राथमिक विद्यालयों में हिंदी को पढ़ाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली पुस्तकों की एक श्रृंखला संकलित की जिसे ‘हिंदी की पोथी’ की संज्ञा दी गई। आदिकाल में इन ‘हिंदी की पोथियों’ द्वारा ही भारतीय छात्रों को हिंदी सीखने में आसानी हुई। हिंदी की पोथियों को प्राथमिक विद्यालयों के विभिन्न स्तरों के छात्रों के लिए संकलित किया गया और फीजी में कई वर्षों तक हिंदी पाठ्यक्रम में इन पोथियों का प्रयोग हुआ। आर्य प्रतिनिधि सभा के प्रायमरी स्कूल, सैकेण्डरी स्कूल और विश्वविद्यालय हैं। इन सभी में हिंदी पढ़ाने की व्यवस्था है।
सनातन धर्म प्रतिनिधि सभा ऑफ फीजी
सनातन धर्म प्रतिनिधि सभा ऑफ फीजी हिंदी की प्रगति के लिए अथक प्रयास कर रही है। स्कूलों और धार्मिक कार्यों के माध्यम से हिंदी की साक्षरता और प्रचार-प्रसार का कार्य सुचारू रूप से कायम है। फीजी में हिंदी को विकसित करने में धार्मिक सांस्कृतिक ग्रन्थ जैसे रामचरितमानस, हनुमान चालिसा और कबीरदास जैसे संतों की वाणी ने अहम् भूमिका निभाई है। गिरमिट काल में पराजय और निराशा की चरम स्थितियों में साहस और संतावना देने के अलावा गोस्वामी तुलसीदास की रामचरितमानस फीजी में भाषा, धर्म, संस्कृति और सभ्यता की रक्षा करने वाली प्रहरी रही है। भारतीय समाज में हर मंगलवार को नियमित रूप से रामायण पाठ करने की परंपरा कई सालों से चली आ रही है। यहाँ सनातन धर्म प्रतिनिधि सभा ऑफ फीजी के मार्गदर्शन में 2000 से अधिक रामायण मण्डलियां हैं, जिनके माध्यम से रामकथा तथा पारंपरिक त्योहार जैसे होली, राम नवमी , महा-शिवरात्री, नवरात्री, दीपावली आदि पर्वों को उत्साह के साथ मनाया जाता है।
“भाषा ही संस्कृति है, संस्कृति ही हमारी पहचान है” यह मान्यता फीजी में हिंदी की ध्वजा लहराने वाले प्रख्यात साहित्यकार और विद्वान डॉ. विवेकानंद शर्मा की है। सनातन धर्म प्रतिनिधि सभा के एक बहुत ही सक्रिय और प्रसिद्ध सदस्य डॉ. विवेकानंद शर्मा थे। डॉ. विवेकानंद शर्मा (1937-2006) एक शिक्षक, नेता, धार्मिक प्रचारक के साथ ही फीजी तथा विदेश में हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए जाने जाते हैं। हिंदी और भारतीय संस्कृति से संबंधित आपकी प्रमुख कृतियाँ हैं:- ‘प्रशांत की लहरें (भाग१ और २)’, ‘सरल हिंदी व्याकरण (भाग१ और २)’, ‘जब मानवता कराह उठी’, ‘फीजी में सनातन धर्म के सौ वर्ष’, ‘विश्वकोश: भारतीय संस्कृति’, ‘अनजान क्षितिज की ओर’, ‘हमारे त्योहार’, आदि।[ii] डॉ.विवेकानंद शर्मा की धारणाएँ, रचनाएं, फीजी में हिंदी भाषा शिक्षण और भारतीय संस्कृति को उच्च मुकाम तक पहुँचाने में सफल रही। उनकी मान्यता रही कि हिंदी के रथ पर आरूढ़ होकर ही हम अपनी संस्कृति की रक्षा कर सकते हैं, जो हमारी पहचान का अधार है।
भारतीय उच्चायोग फीजी
भारतीय उच्चायोग फीजी हिंदी गतिविधियों का संयोजन कर, संस्थाओं का यथासंभव वित्तीय सहयोग प्रदान कर रही है। हिंदी का शायद ही कोई ऐसा कार्यक्रम होगा जिसमें भारतीय हाई कमीशन का सहयोग ना रहा हो। फीजी में भारतीय उच्चायोग ने हिंदी के प्रचार -प्रसार की विभिन्न योजनाओं को कार्यरूप देकर, हिंदी की संस्थाओं की प्रभावी और ठोस तरीके से सहायता की गई । जैसे हाई कमीशन द्वारा विश्व हिंदी दिवस समारोह, हिंदी विद्वानों का सम्मान, 14 सितंबर को हिंदी दिवस कार्यक्रम का आयोजन पूरी भव्यता के साथ किया जाता है। एक विशेष योजना जो वर्ष 2017 से हाई कमिश्नर श्री विश्वास सपकाल की पहल पर शुरू की गई, वह थी हिंदी दिवस के अवसर पर विश्वविद्यालयों द्वारा रचनात्मक प्रतियोगिताओं का आयोजन और प्रत्येक विश्वविद्यालय से एक सफल विद्यार्थी को भारत को जानिए कार्यक्रम के अंतर्गत भारत की यात्रा पर भेजना। इससे युवाओं में हिंदी भाषा के प्रति रूचि बढ़ी और साहित्यिक गतिविधियों में विकास हुआ।भारतीय हाई कमीशन के सक्रिय सहयोग से हिंदी परिषद, गोपियो, हिंदी लेखक संघ, भारत-फीजी मैत्री संघ के हिदी मंच की स्थापना हुई है। हिंदी लेखक संघ की भी स्थापना वर्ष 2016 में की गई। इस सस्था द्वारा पुस्तकों का लोकार्पण, लेखन कार्यशाला और साहित्यिक समारोहों का आयोजन भारतीय हाई कमीशन के सहयोग द्वारा किया गया। इस संस्था के अध्यक्ष श्री जैनेन प्रसाद हैं जो फीजी के एक प्रसिद्ध कवि हैं। साहित्यक गतिविधियों को निरंतर चलाए रखने में इस संस्था का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। ये संस्थाएं यथाशक्ति हिंदी की सेवा में लगी हुई हैं।
शिक्षा मंत्रालय, फीजी
स्कूलों में भाषा के स्तर को बढ़ाने के लिए सभी प्रायमरी स्कूलों में ई-तऊकई तथा खड़ी बोली हिंदी भाषा की पढ़ाई अनिवार्य की गई है (फीजियन गवर्नमेंट, 2013)।[iii] शिक्षा मंत्रालय द्वारा भाषण प्रतियोगिता, काव्य प्रस्तुति, निबंध लेखन प्रतियोगिता, नाटक मंचन, रामायण सम्मलेन आदि कार्यों का आयोजन भी किया जा रहा हैं जिससे समाज में हिंदी का प्रचार-प्रसार और विद्यार्थियों की रूचि हिंदी भाषा और साहित्य की ओर बढ़े। शिक्षा मंत्रालय द्वारा निर्धारित हिंदी भाषा पाठ्यक्रम का उद्देश्य है; भाषीय छात्रों को केंद्रित करते हुए, उन्हें हिंदी भाषा को सुरक्षित रखने, सांस्कृतिक प्रचार-प्रसार, साहित्य व अपनी संस्कृति को संघटित करते हुए छात्रों के ज्ञान, कौशल और सकारात्मक भावों को विकसित करना है।[iv] इस तरह शिक्षा मंत्रालय बच्चों को मातृभाषा से जोड़ने का प्रयास कर रही है।
सन्दर्भ सूची
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[i] जोगिन्द्र सिंह कंवल. 1980. A Hundred Years of Hindi in Fiji (1897-1979). फीजी शिक्षक संघ, फीजी. पृष्ठ 79.
[ii] जोगिन्द्र सिंह कंवल. 1980. A Hundred Years of Hindi in Fiji (1897-1979). फीजी शिक्षक संघ, फीजी. पृष्ठ 82.
[iii] फीजियन गवर्नमेंट. (2013). कंपल्सरी टीचिंग ऑफ़ वर्नाकुलर इन स्चूल्स बैगिन्स http://www.fiji.gov.fj/Media-Center/Press-Releases/COMPULSORY-TEACHINF-OF-VERNACULARS-IN -SCHOOLS-BEGI.aspx
[iv] शिक्षा मंत्रालय, हेरिटेज एंड आर्टस. (2015). हिंदी भाषा पाठ्यक्रम. पाठ्यक्रम विकास विभाग, सूवा, फीजी.