मॉरीशसीय संदर्भ : भारतीय संस्कृति  एवं परिवेश बोध

हिंद महासागर में बिंदु मात्र दिखने वाला टापू मॉरीशस, विश्व में चमकते सितारे की पहचान बना चुका है। इस पहचान को आकार अथवा मूर्त रूप देने में भारतीय संस्कृति की विशेष भूमिका है। इससे मॉरीशस समाज में भारतीय भाषाओं, धर्म,राजनीति, भोजन, कला, परिधान एवं संस्कारों के साथ जीवन जीने की शैली के सामायोजित ताने-बाने की सुंदर बनावट भी बनती हैं ।

            दास प्रथा की समाप्ति से पहले ही मॉरीशस की धरती पर कुछ मज़दूरों को भारत से लाया गया था। यह एक प्रयोग के रूप में प्रारम्भ हुआ था। भारत में अंग्रेजो का राज और उपनिवेशी काल था जब इस देश में 1834 से 1923  तक कोई  साढ़े चार लाख से अधिक मज़दूरों को एक एग्रीमेंट के अंतर्गत लाया गया था, जिन्हें अग्रीमेंट का अर्थ क्या है, शब्द को बोलना  तक नहीं आता था और इस  गलत उच्चारण से  ही जन्मा था  शब्द ” गिरमिटिया” मज़दूर , जिन्हें कुली भी कहा जाता था। भारत के विभिन्न  राज्यों एवं प्रान्तों से पहले  इन्हें कलकत्ता के डिपो में एकत्रित किया जाता था फिर  समुद्री यात्रा कर वो जहाजी भाई  हिन्द महासागर को पार कर इस छोटे से टापू पर पहुँचाये  जाते थे। कोड़ों की बौछार,  मानसिक यातनाओं के शिकार बनाने के साथ ही न्यूनतम सुविधाओं से भी इन्हें वंचित रखा जाता था। जी-तोड़ मेहनत के बाद अनेक जटिल समस्याओं को झेलते हुए  और  भूखे पेट रहकर भी इन मज़दूरों के बुलंद इरादे और धैर्य की घुटी ने ही इन्हें इस देश  को मानचित्र पर ही नहीं, आज की पीढ़ी को उनके पूर्वजों की संज्ञा एवं अद्भुत पहचान दी। जिस कुली घाट पर उनके मजबूर कदम पड़े थे ,काल चक्र  से इन भोलेभाले मज़दूरों के अथक प्रयासों की याद में श्रद्धांजलि  रूप में उसे आज विश्व विरासत के रूप में अप्रवासी घाट  के नाम से जानते है। इस विश्वविरासत में भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी,  मंत्री दिवंगत श्रीमती सुषमा स्वराज और भारत की उच्चतम पदासीन राष्ट्रपति सम्माननीय श्रीमति द्रौपदी मुर्मू  जी के दौरे ने इस स्थान पर श्रद्धा सुमन अर्पित कर सम्मनित किया है। स्थानीय लोगों का भारत देश से गर्भनाल के रिश्ते का विश्वास और गहरा किया साथ ही गौरांवित भी किया है।

   मॉरीशस की आधिकारिक भाषा अंग्रेजी है पर यहाँ  क्रियोल एवं फ्रेंच भी अपना वर्चस्व बनाये हुए हैं। भोजपुरी , हिंदी, तमिल, तेलेगु, गुजराती, मराठी, बंगाली, उर्दू जैसी भारतीय भाषाओं का सुंदर परिदृश्य अनेकता में एकता दर्शाता है। इन भाषाओं को सुरक्षित करने और उनके उन्नयन हेतु स्थानीय संस्थाएं, शैक्षिक कार्यक्रम और गाँवों-शहरों की बेठकाओं का विशेष योगदान है, जिनका उद्देश्य पीढ़ी दर पीढ़ी भाषाई विरासत का निरंतर प्रवाह सुनिश्चित करना है।

            देश में अनेक सामाजिक-सांस्कृतिक संस्थाओं का भारतीय संस्कृति के संरक्षण में बहुत योगदान है। जैसे होली से पंद्रह दिन पहले ही चौताल ठोकना, होलिका दहन, रामायण पाठ के साथ साथ टोलियों में प्रतियोगिताओं का आयोजन सनातन धर्म टेम्पल्स फेडरेशन द्वारा किया जाता है, आर्य सभा, आर्य रविवेद प्राचारिणी सभा आदि संस्थाओं द्वारा मंत्र पाठ प्रतियोगिता एवं धार्मिक ग्रंथों, वेद, उपनिषद आदि का ज्ञान देश भर को भारतीय संस्कृति से जुड़े रहने के अवसर प्रदान करते हैं। रामायण,हनुमान चालीसा आदि के लिए रामायण सेंटर जैसी संस्थाएं खूब सक्रियता से सब को जोड़ने के अथक प्रयास करती हैं।

            प्रवासी भारतीयों द्वारा लाया गया हिंदू धर्म प्रमुख रूप में उभरा जिसके कारण हिंदू मंदिर -शिवालय पूरे टापू में एक सनातन विचारधारा के परिदृश्य को बनाये हुए हैं। बिहार में कालीमाई की विशेष पूजा होती है ।

यहाँ भी हर गाँव के प्रारंभ में या उसके दूसरे छोर पर कालीमाई सात पिंडी सहित स्थापित पाते हैं। इनमें से कुछ आज सुंदर मंदिर का रूप  लिए भी देखे  जाते हैं। कृषि प्रधान देश होते हुए  फसल की कटनी का  पहला गन्ना काली माई  को चढ़ाया जाता है। हिन्दू घरों में महावीर स्वामी अर्थात बजरंगबली का चबूतरा पाया जाता है। जिसपर लाल झंडियाँ भी फहराई जाती हैं।  स्वामी दयानंद के अनुयाई भी आर्य समाज का बढ़-चढ़ कर प्रचार करते एवं ओम के झंडे भी खूब फहराए जाते हैं। इस वर्ष 22 जनवरी को  हम सब ने अयोध्या में बने मंदिर में रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की  पूजा के लाइव प्रसारण का अद्भुत आंनद लिया। इतना ही नहीं पूरे मॉरीशस टापू  में भगवा  झंडे लिये जुलूस भी निकाले गए और दीपोत्सव भी सम्पन्न हुआ। यहाँ सब लोग हिंदू त्यौहार मकर संक्रांति, होली, दीवाली, रक्षाबंधन, महाशिवरात्रि, दुर्गापूजा, रामनवमी,गणेश चतुर्थी के साथ-साथ अन्य  भारतीय त्यौहार जैसे थाईपुसम कैवेदी, पोंगल, उगादि, ईद, गुड़ीपाड़वा, वर्षापीरप्पू आदि बहुत श्रद्धा एवं अपने-अपने रीति रिवाजों के साथ मनाये जाते हैं। शुद्ध मंत्र उच्चारण एवं प्रार्थनाओं पर विशेष ध्यान दिया जाता है, जिसके लिए भारत से विशेषज्ञ और गुरु एवं पंडितों को आमंत्रित किया जाता है। भारत से धार्मिक अनुष्ठानों हेतु पूजा सामग्री एवं नैवेद्य का समय-समय पर उचित मात्रा में आयात होता है।

            गंगातलाब यहाँ की धर्म एवं आस्था का सब से बड़ा और सशक्त प्रतीक है। जहाँ  देश-विदेश  से लोग  अवश्य वहाँ के मंदिरों का दौरा , तालाब में जलांजलि के साथ मंगल महादेव की 108 फुट ऊंची मूर्ति के दर्शन कर अपने आपको सौभाग्यशाली मानते हैं। इसमें भारत से गंगोत्री का जल लाकर डाला गया था। भारत में बहती  पवित्र गंगा जो भगवान शिव की जटाओं से धरती पर उद्धार हेतु आई ,  तो उसी आस्था और विश्वास को गंगातालाब के जल में  मिला कर  सबके कल्याण की कामनाएं की गई थीं।

            महाशिवरात्रि पर खूब सजे हुए कांवड़ कंधों पर लेकर गंगातलाब तक पद यात्रा कर जल लाते हैं और चार पहर की पूजा से पूर्व  भक्त अपने भोलेनाथ को जल अर्पण करते हैं। भक्तों में युवा वर्ग की विशेष भूमिका और संख्या सराहनीय है। इस समय देश-विदेश के शिव भक्त शिवरात्रि पर्व की धूमधाम में सम्मिलित होते हैं।

            देश के सभी प्रान्तों में कहीं रामायण पाठ तो कहीं साई भक्ति के कार्यक्रम  होते हैं । आर्यसमाजी हवन करते हैं तो कबीरपंथी अपने अनुष्ठान करते हैं। मंदिर ,कोविल, गुरुद्वारा, मस्जिद, गिरजाघर सभी पन्त  प्रेम की शिक्षा और रंगों की रंगोली के साथ इंद्रधनुष रूपी संस्कारों और परम्पराओं के साथ संस्कृतियों का निर्वाह करते हैं। होली, दीवाली पर हिंदू लड्डू ,गुजिया बाँटते हैं तो ईद पर मुसलमान भाई सेवइयां, बिरयानी बाँटते हैं। गणेश चतुर्थी पर मोदक बनते हैं तो दुर्गा नवमी पर खीर-पूरी और बजरंबली को प्रसन्न करने के लिए रोट बनाये जाते हैं। श्रावण मास के महत्व से भी देश अछूता नहीं है |  

            भारतीय मसाले जैसे जीरा, हींग, हल्दी, करी पत्ता आदि का मॉरीशस में भरपूर प्रयोग होता है तो दूसरी ओर प्रसव के उपरांत महिलाओं को अज्वायन का पानी सौंठ के लड्डू और कसार आदि जैसी  पारम्परिक चीज़ें भी दी जाती हैं।  जच्चा-बच्चा की तेल मालिश भी तो भारतीय परम्परा  का ही हिस्सा है। उस पर शरीर को स्वस्थ रखने हेतु हल्दी दूध को कैसे भुलाया जा सकता है। कोविद काल में भी गिलोई, अदरक, हल्दी आदि के काढ़े  का भी खूब सेवन किया गया। साथ ही छोटी-मोटी  चोट पर हल्दी-चुने से इलाज तो मानो शर्तिया और स्थानीय दादी -नानी का नुस्खा है। यह सब भारत का सदियों पुराना आयुर्वेद  ही तो है जो यहाँ भी रचा बसा हुआ है।

            मसालों की बात हो तो व्यंजनों  को कैसे  छोड़ सकते हैं।                                                                   “गातोपीमा” नाम का पकोड़ा यहाँ सब से अधिक महशूर है, जो दाल से बनाया जाता है शराब के साथ चखना से लेकर ब्रेड के साथ नाश्ता हो या कहीं भी स्नैक के रूप में सभी पृष्ठभूमि के मॉरीशसवासियों  द्वारा पसंद किया जाता है। दाल-पीठा, दूध-पीठी, दाल-पूरी, समोसा, आलू, बैंगन के पकोड़े भी तरह-तरह की चटनी के साथ खूब चलते हैं। अब तो पानी-पूरी भी खूब मिलती है। डोसा, इडली-सांबर, छोले -भटूरे और भारतीय प्रांतों की थाली जैसे राजस्थानी, पंजाबी थाली आदि भी रेस्टोरेंट में भारतीय खान-पान को बढ़ावा देने के साथ ही अपना स्थाई स्थान और लोकप्रियता भी बनाये हुए हैं।

            भारतीय संगीत, नृत्य, रंगमंच मॉरीशस की संस्कृति का अभिन्न अंग हैं। भारतीय शास्त्रीय संगीत प्रेमियों को कर्णप्रिय है और भोजपुरी गीत की बात करें तो पारम्परिक गीत गवाई के लिए अनेक स्थान पर विशेष प्रशिक्षण हेतु कक्षाएं भी चलाई जाती हैं, अब तक इसके लिए भोजपुरी स्पीकिंग यूनियन द्वारा स्थानीय महिलाओं के साथ मिलकर 51 स्कूल खोले जा चुके हैं। हिन्दू परिवारों में विवाह  के दो दिन पूर्व  ही (वर-वधु) दोनों ओर खूब ढोलक, मंजीरा, लोटा, चम्मच आदि के साथ पारम्परिक भोजपुरी प्रार्थना एवं गीत, हिंदी फिल्मी गीत और स्थानीय सेगा पूरे धमाल के साथ विधिवत गीत-गवाई के रूप में मनाया जाता है। यह गीत-गवाई  आज एक मॉरीशसीय अमूर्त धरोहर  भी है।

            नाटक की बात करें तो पंचतंत्र की कहानियां, नैतिक मूल्यों पर आधारित  रामायण से प्रेरित कथाओं की अनुगूंज  इन्हें भारतीय दायरे में ही रखती हैं। भारतीय संस्कृति से जुड़े नुक्कड़ नाटक , एकांकी आदि को स्थानीय बेठकाओं में पाठ्यक्रम से हटकर हिंदी दिवस, वार्षिक उत्सव तथा अन्य विशेष गतिविधियों में भी खूब बढ़ावा दिया जाता है।

            12 मार्च को मॉरीशस अपना राष्ट्रीय दिवस मनाता है। 1968 में देश स्वतंत्र हुआ और उसके 24 वर्ष उपरांत 1992  में हमने गणतंत्रता का स्वाद चखा। यह तिथि भी तो गांधी जी द्वारा डांडी यात्रा निकाली जाने वाली तिथि से ही मेल खाती है। स्वतंत्रता से पूर्व हिन्दू समाज बेठकाओं तथा सांस्कृतिक भवनों में 1947 से 1968 तक भारतीय तिरंगा ही फहराते थे। आज भी स्वराज भवन, लालमाटी में भारतीय उच्चायुक्त की उपस्थिति में तिरंगे को फहरा कर उसकी शान में गीत आदि गाते हुए भव्य आयोजन भारतीयता पर गर्व की अनुभूति ही करवाता है।

            देश के अनेक मंचों पर कार्यक्रम दीपप्रज्वलन से प्रारंभ तो कहीं श्लोक या प्रार्थना से भारतीय संस्कृति का ही तो निर्वाह दर्शाते हैं।  कथक , भरतनाट्यम, ओडिसी नृत्य प्रस्तुतियाँ यहाँ के सांस्कृतिक केंद्र और संस्थानों में सिखाये जाते हैं। भारतीय सांस्कृतिक विरासत को  बढ़ावा देते हुए शैक्षिक पहल के साथ संरक्षित भी करते हैं।  भारतीय परिधान सहित ये प्रस्तुतियाँ  दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देतीं हैं। भारतीय शास्त्रीय संगीत भी  आध्यात्मिक जुड़ाव और एक विशेष जादुई शक्ति एवं पूर्वी सुगंध लिए रहता है।

            मॉरीशस के बुनियादी विकास क्षेत्र में ‘मेट्रो एक्सप्रेस’ के लिए भारत के सहयोग ने एक बार फिर एक बड़ी संख्या के भारतीय लोगों को अनेक कार्यक्षत्रों में जोड़ा। इससे एक बार फिर स्वतः ही आये भारतीय कार्यकर्तों के साथ वहाँ की भाषा, संस्कृति, खान-पान और भी अनेक चीजों से भारतीयता में वृद्धि आई। स्थानीय  इमारतों, केंद्र  और  अन्य स्थलों में भारतीय विभूतियों के नाम देना भी संबंधों को प्रगाढ़ करने के साथ भारतीयता की जड़ों को एक अटूट विश्वास से संजोता है। स्वामी विवेकानंद अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन केंद्र, महात्मा गांधी संस्थान, रबिन्द्रनाथ टैगोर इंस्टीट्यूट, जवाहरलाल नेहरू अस्पताल, अटल बिहारी वाजपेयी टॉवर और महात्मा गांधी मेट्रो स्टेशन आदि नाम निस्संदेह भारत-मॉरीशस सम्बन्धों की निकटता को दर्शाता है। मॉरीशसीय हिन्दू परिवार अपनी संतान के नाम रखते हुए भी विशेष ध्यान देते हुए और उनके अर्थ की गहराई को जानकर ही भारतीय संस्कृति का निर्वाह करते हैं जैसे रघुनंदन, महादेव, नीलकंठ, शंखनाद, भीरगुनाथ, रामनरेश, प्रभा, संध्या, यजना, पूजा, आशा, साक्षी, सुरभि, प्रकृति आदि।

            स्थानीय रेडियो और दूरदर्शन द्वारा सभी भाषाओं में कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाते हैं। सभी  भारतीय भाषाओं के अलग  समर्पित चैनल हैं। हिंदी सिनेमा एवं धारावाहिक  भी भारतीय संस्कृति  से जोडे़ रखने का एक प्रमुख माध्यम है।  प्रोधोगिकी और अंतरजाल ने इन सब को और आकृष्ट कर सशक्त किया है।

            पर्यटन ने भी भारतीय संस्कृति को करीब से देखने, समझने एवं जीने का ज़रिया दिया है। मॉरीशस से हर वर्ष अनेक टोलियाँ भारत यात्रा के लिए जाती हैं। कोई चार धाम ,कोई मानसरोवर, शिव भक्त 12 ज्योतिर्लिंग, कृष्ण में आस्था रखने वाले मथुरा-वृंदावन और दुर्गा के भक्त वैष्णोदेवी की यात्रा कर अपनी  आस्था को मज़बूती देते हैं। भारत भूमि पर चरण रखने से पूर्व उस मिट्टी को नमन कर भारतीय संस्कृति पर अपने सनातनी विश्वास को और पुख्ता करते हैं। आर्य समाज और आचार्य शिक्षा और भारतीय संस्कृति के गहन अध्य्यन हेतु भी भारत की ओर ही रुख करते हैं। प्रत्येक हिंदू परिवार के सदस्यों की दिली इच्छा रहती है कि अपने जीवनकाल में वह एक बार भारत माता के दर्शन अवश्य करें।

            मॉरीशस में भारतीय वस्त्र और फैशन का भी अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है। स्थानीय लोग अक्सर भारतीय रूप में शादियों, उत्सवों और समारोहों में एक से बढ़ कर एक भारतीय वस्त्र पहनते हैं।  कुछ तो यश चोपड़ा की फिल्मों जैसे “बिगफैटवेडिंग” करना चाहते हैं और कोई “बीच वेडिंग”  की अवधरणा कर विवाह के लिए भारत से सारी खरीदारी करते हैं।  डिज़ाइनर वस्त्रों के साथ मेल खाते आभूषण न हों तो कौन यहाँ किसी कार्यक्रम में जाता है और वो भी युवा पीढ़ी। शादी के लिए चार से पाँच दिन के सभी अवसरों के लिए वस्त्र जैसे हल्दी के दिन पीले ,मेहंदी के लिए हरा , शादी के लिए तो हर दुल्हन का अलग ही सपना होता है कोई लाल,कोई मेहरून तो कोई गुलाबी रंग का चुनाव करती हैं। दूल्हे भी शादी के लिए शेरवानी, सुंदर पगड़ी, गीत गवाई के लिए डिज़ाइनर या लखनवी कुर्ता-पजामा और चौथारी के लिए पेंटसूट पर हजारों की राशि ख़र्च करते हैं। विवाह के आभूषणों में भी दूल्हा-दुल्हन की अंगूठी और मंगलसूत्र आवश्यक ज़ेवर होते हैं। दुल्हन के लिए कंगन, हार,बालियां आदि भी रहते हैं।  सगाई के समय भी लड़का-लड़की एक दूसरे को अंगूठी पहनते हैं। कोई सोने की तो कोई हीरे की, कुछ तो कीमती मोती, पुखराज, नीलम आदि की भी बनवाते हैं। एक बात यहाँ पर बहुत ही सराहनीय है कि शादी की साज-सजा में तो लोग अब बहुत खर्च करते हैं लेकिन भोजन पारम्परिक “सेतकारी” सात तरह की सब्ज़ियां और पूरी के साथ ही मेहमानों का सत्कार किया जाता है। कोई कुछ कम तो कोई कुछ ज़्यादा ताम-झाम के साथ।

विवाह से एक दिन पूर्व माटी कोढ़ाई, हल्दी विधि  हवन के उपरांत  सेंधा घास आदि के साथ लगाई जाती है। अगले दिन फेरों के साथ विवाह संस्कार सम्पन्न किया जाता है फिर विदाई के उपरांत उसके अगले दिन बारातियों के साथ दुल्हन के पग फेरे की रस्म होती है। आज भी माँ अपनी बेटी को विवाह के उपरांत विदा करते समय खोंईछा देती हैं, आँचल में एक रुमाल रख जीरा,

धान, हल्दी की गाँठ, टिकली, सिंदूर, छोटा-आईना, एक कंघा और चूड़ियां आदि के सतह पहले सवा रुपया डाला जाता था जो समय के बदलाव से सवा सौ और अधिक धन राशि में बदल चुका है – बाँध कर देती है| जिसे आजकल पोटली पर्स में देने का रिवाज पूरा किया जाता है | बेटी के साथ उसकी छोटी बहन या  बेटी की कोई सखी-सहेली लोकनी के रूप में उसके साथ ससुराल जाती है| भारतीय संस्कारों  और धार्मिक  विधि विधान से ही सब कार्य सम्पन्न किये जाते हैं।

       ऐसे ही बाल-गोपाल का जन्म हो, या घर में लक्ष्मी जन्म ले  तब नामकरण संस्कार ,मुंडन संस्कार तथा अन्य संस्कारों से भारतीय धर्म की अनेक धारों को प्रतिष्ठित करते हुए ,अपने-अपने धार्मिक अभ्यासों और उनके तत्वों को अपनाते हुए भारतीय संस्कृति का परिवेश बोध पाते हैं। इन सभी के संयोजन से मॉरीशस  भारत से दूर एक अत्यंत विविध और समृद्ध भारतीय संस्कृति लिए हिंद महासागर से घिरा और अपने राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक अपना चौरंगा झंडा लिये अपनी अलग पहचान बनाये उज्ज्वल भविष्य की ओर अग्रसर है। 

-अंजू घरभरन

anjumonga@hotmail.com

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