भारत-मॉरीशस संबंधों के आधार-स्तंभ – भाषा और संस्कृति

एक ओर जहाँ भारत देश ने वर्ष 2022-2023 में अपनी आज़ादी का अमृत महोत्सव मनाया, वहीं भारत और मॉरीशस के राजनयिक संबंधों की भी इस वर्ष पचहत्तरवीं वर्षगांठ बड़े पैमाने पर मनाई गई। स्वतंत्रता-प्राप्ति के ठीक अगले वर्ष, अर्थात्, 1948 में श्री धर्मयश देव, भारत के प्रथम उच्चायुक्त, मॉरीशस भेजे गए थे, मॉरीशस के स्वतंत्र होने से भी बीस वर्ष पूर्व! मॉरीशस उन चुनींदा दस देशों में से था जहाँ स्वतंत्र भारत के राजदूत भेजे गए थे। वस्तुतः, भारत-मॉरीशस संबंध इससे भी पहले  स्थापित हो चुका था। 188 वर्ष पूर्व, 1934 में, भारत से पहली खेप में 36 मज़दूर गन्ने की खेती के लिए भेजे गए थे। 

लेकिन इससे पहले भी 1810 में जब अंग्रेज़ों ने फ्रांसीसियों के ख़िलाफ़, मॉरीशस पर आक्रमण किया, उस समय ब्रिटिश सेना में लगभग दस हज़ार भारतीय सिपाही थे। अतः मॉरीशस की भूमिपर 1810 से ही हिंदी में बातचीत शुरू हो चुकी थी”।1 

      बहरहाल,  गिरमिटिया मज़दूरों ने आप्रवासी घाट (तब कुली घाट) के ज़रिए मॉरीशस देश में पदार्पण किया और उसकी सोलह सीढ़ियाँ चढ़ते हुए फुलियार नामक गाँव में अपनी पहली बसावट की। यहीं पर पहली शक्कर कोठी बनी और पहला मंदिर भी। सुनहरी भविष्य के सपने आँखों में संजोए,  ये मज़दूर धार्मिक पुस्तकों के रूप में अपना धर्म, अपनी भाषा व संस्कृति भी साथ लाए थे। भारत के विभिन्न प्रांतों से आने वाले इन जहाज़ी भाइयों में बिहार से आने वालों की संख्या अधिक थी। दिनभर के संघर्ष के बाद शाम को ये सब अपना दुःख बाँटते तो हिंदी और भोजपुरी में बतियाते थे। हिंदी उनके मेल-मिलाप की भाषा थी और वे समझते थे कि उन्हें एक-दूसरे से जोड़ कर रखने की ताकत हिंदी भाषा  में थी। दिनभर की थकान और अत्याचारों से चूर होकर भी वे रात्रि में एक जगह एकत्र होते और चोरी-छिपे अपने बच्चों को रामायण और महाभारत की कथाएं सुनाकर निर्भीकता का पाठ पढ़ाते थे। इसे उन्होंने ‘बैठका’ नाम दिया जो उनका ‘सांस्कृतिक केंद्र’ बन गया और हिंदी-शिक्षण का भी।

      “पढ़ाई आरंभ करने से पूर्व विद्यार्थी अपनी पाटी पर एक सूक्ति लिखते थे – ‘रामागतिदेहु सुमति। इस सूक्ति के द्वारा वे भगवान राम से अच्छी बुद्धि की प्रार्थना करते थे, ताकि पढ़ाई में प्रगति कर सकें। वे पढ़ाने वालों को बड़े सम्मान और श्रद्धा से ‘गुरुजी’ शब्द से संबोधित करते थे”।2 

      “सन् 1900 के आसपास देश की लगभग साढ़े तीन लाख की आबादी में करीब ढाई लाख भारतीय थे, जिनकी आपस की बोली भोजपुरी थी। वैसे कुछ बस्तियाँ ऐसी भी थीं जहाँ मराठी, तमिल और तैलुगु बोलने वाले लोग भी थे, पर एक-दूसरे से मिलने पर हिंदी इनकी संपर्क भाषा होती थी”।3 

      अन्य भारतीय भाषा-भाषियों के बीच हिंदी व भोजपुरी अपनी जगह बनाने लगीं। भोजपुरी भाषा ने मॉरीशस में हिंदी भाषा के लिए नींव का काम किया। अधिकांश मॉरीशसवासी भारतीय वंशजों की वर्तमान सुदृढ़ स्थिति और प्रगति का श्रेय महात्मा गाँधी को देते हैं। वर्ष 1901 में युवा गाँधी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौट रहे थे, उनका जहाज़ ‘नौशेरा’ खराब होने के कारण उन्हें मॉरीशस में रुकना पड़ा। उन्होंने पाया कि यहाँ भारतीय मूल के लोगों की स्थिति अत्यंत दयनीय थी। उन्होंने उनसे कहा कि (1) वे अपने बच्चों को शिक्षित करें और (2) उन्हें राजनीति में जाने के लिए प्रेरित करें। भारत लौटने पर गाँधी जी ने वर्ष 1907 में बैरिस्टर मणिलाल डॉक्टर को मॉरीशस भेजा। वर्ष 1909 में मणिलाल डॉक्टर ने देश का पहला हिंदी पत्र ‘हिंदुस्तानी’ प्रकाशित कर हिंदी पत्रकारिता के जनक बने। हिंदी में हस्ताक्षर करना सीख भारतवंशी राजनीति का हिस्सा बने। भारत की तरह मॉरीशस में भी हिंदी स्वाधीनता के संघर्ष की भाषा बनी।

      “मॉरीशस में हिंदी का यह संघर्ष वस्तुतः साहस, यातना और बलिदान की गाथा रही है। …..हर गाँव में बैठकाओं की नींव डाले जाने के बाद समय चार से सात बजे तक हिंदी की निःशुल्क पढ़ाई ज़ोर पकड़ती गई। पूरे देश में आर्य समाज, विष्णुदयाल आंदोलन तथा हिंदू महासभा और हिंदी प्रचारिणी सभा की ओर से हज़ारों अध्यापक स्वेच्छा से इस आंदोलन के साथ जुड़ गए। ऐसा नहीं हुआ होता तो हिंदी न तो अस्मिता, धर्म और संस्कृति की रक्षक बन पाती और न ही समाज की अंदरूनी ताकत बनकर देश की आज़ादी का आह्वान कर पाती”।4

वर्ष 1926 में, धारा नगरी गाँव (लाँग माउंटेन) में स्थापित तिलक विद्यालय हिंदी के पठन-पाठन का मुख्य केंद्र बना। 1935 में यही हिंदी प्रचारिणी सभा हुआ जिसका मुख्य उद्देश्य हिंदी भाषा और साहित्य का प्रचार-प्रसार है। सभा का सिद्धांत है “भाषा गई तो संस्कृति गई” । सभा का हिंदी भवन खड़ा करने के लिए सर्वश्री गिरधारी भगत और ननन ठाकुर जैसे दानी सज्जनों ने अपनी ज़मीन-जायदाद तक दे दी। हिंदी प्रचारिणी सभा बैठकाओं के माध्यम से हिंदी भाषा और साहित्य के प्रचार-प्रसार में अपूर्व योगदान करती है। आज मॉरीशस में जितने हिंदी के विद्वान हैं, लगभग सभी का हिंदी प्रचारिणी सभा से किसी न किसी रूप में संबंध रहा है। 

इसके अतिरिक्त आर्य सभा और आर्य रविवेद प्रचारिणी सभा भी बैठकाएं चलाते हैं। इन बैठकाओं में प्राथमिक स्तर (कक्षा 6 तक) के लिए पाठ्यक्रम, प्रश्नपत्र व परिणाम मॉरीशस में तैयार किए जाते हैं। कक्षा 6 पास कर चुके छात्रों के लिए ‘प्रवेशिका’ की परीक्षा ली जाती है।  माध्यमिक स्तर से डिप्लोमा स्तर तक (यथा,परिचय, प्रथमा, मध्यमा विशारद और उत्तमा (साहित्य-रत्न)) की परीक्षाएं आयोजित की जाती हैं। ‘उत्तमा’ की अवधि तीन वर्ष है और इसका स्तर स्नातक के बराबर है। इनके पाठ्यक्रम, प्रश्नपत्र व परिणाम हिंदी साहित्य सम्मेलन, इलाहबाद (भारत) द्वारा तैयार किए जाते हैं। इस समय मॉरीशस देश के चार विभिन्न ज़ोन में कुल 579 बैठकाएं चलाई जाती हैं जिनमें अध्यापकों की कुल संख्या 711 है। ये अध्यापक शिक्षा मंत्रालय के साथ पंजीकृत हैं और इन्हें भत्ता मिलता है।  ‘बैठका’ स्कूलों से इतर सायंकालीन अथवा सप्ताहंत कक्षाओं में हिंदी शिक्षण की एक संस्थागत व्यवस्था है।

      सरकारी स्कूलों में प्राथमिक स्तर से उच्च माध्यमिक स्तर तक हिंदी पढ़ाई जाती है, बी.ए. और एम.ए स्तर की महात्मा गाँधी संस्थान में। मॉरीशस विश्वविद्यालय में पंजीकृत विद्यार्थी महात्मा गाँधी संस्थान में हिंदी में पीएचडी करते हैं। यहाँ हिंदी के अतिरिक्त अन्य भारतीय भाषाओं, यथा, संस्कृत, उर्दू, तमिल, तेलुगु, मराठी इत्यादि के साथ-साथ भारतीय ज्ञान-परम्परा,  दर्शन तथा प्रदर्शन-कला के विभाग भी हैं। रविन्द्रनाथ टैगोर संस्थान में फिल्म, मूर्तिकला आदि के शिक्षण की व्यवस्था है।

मॉरीशस में आर्य सभा, मॉरीशस सनातन धर्म टेम्पल फ़ेडेरेशन, आर्य रविवेद प्रचारिणी सभा, हिंदू महासभा, रामायण सेंटर, गहलोत राजपूत महासभा, गीता मण्डल, भारत मॉरीशस डिजिटल प्लेटफार्म, ह्यूमन सर्विस ट्रस्ट, हिंदु हाउस इत्यादि अनेक स्वैच्छिक संस्थाएं हैं जो संस्कृति के प्रचार-प्रसार के साथ-साथ हिंदी व संस्कृत की कक्षाएं भी चलाती हैं। मॉरीशस तेलुगु महासभा, मॉरीशस तमिल टेम्पल फेडेरेशन व मॉरीशस मराठी मंडली फेडेरेशन क्रमशः तेलुगु, तमिल व मराठी भाषा और संस्कृति का प्रचार-प्रसार करती हैं, व्रत-त्यौहार एवं धार्मिक-अनुष्ठान करती हैं। भोजपुरी, संस्कृत, हिंदी व उर्दू की स्पीकिंग यूनियन भी अपनी-अपनी भाषा और संस्कृति के प्रचार-प्रसार में संलग्न हैं। बंगाली, मलयाली और गुजराती समुदाय के लोग भी इस दिशा में कार्यरत हैं।

महात्मा गाँधी द्वारा मॉरीशस भेजे गए वकील मणिलाल डॉक्टर लेखक और पत्रकार भी थे। उन्होंने 1909 में ‘हिंदुस्तानी’ पत्रिका का हिंदी तथा अंग्रेज़ी में प्रकाशन प्रारंभ किया जो मॉरीशस में हिंदीं के सृजनात्मक लेखन का बीज बना।

‘हिंदुस्तानी’ में मॉरीशस की सबसे पहली कविता ‘होली’ और सबसे पहला लेख ‘सत्य होली’ प्रकाशित हुए थे। तत्पश्चात् ‘मॉरीशस इंडियन टाईम्स’, ‘मॉरीशस मित्र’, ‘मॉरीशस आर्य’ और ‘ओरिएंटल गज़ेट’ नामक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित होने लगीं, कुछ छद्म नाम से भी। ‘सनातन धर्मांक’ पत्र में पहली कहानी ‘इंदो’ छपी और फिर नाटक, उपन्यास, गंभीर विषयों पर लेख और संपादकीय भी लिखे जाने लगे।  लगभग एक सौ तेरह वर्ष की हिंदी की इस यात्रा के दौरान साहित्य की हर विधा की रचना की गई है। साहित्यकारों के नामों की लंबी फ़हरिस्त है – जय जीउत, धननारायण जीउत, जनार्दन कालीचरण, वेणीमाधव रामखेलावन, पं. लक्ष्मीनारायण चतुर्वेदी रसपुंज, बलवंतसिंह नौबतसिंह, बीबी साहिबा फर्ज़ली, महेश रामजियावन, रेशमी रामधनी, लालजी गंगादीन, धनराज शंभु, रामदेव धुरंधर, सोनालाल नेमधारी, बीरसेन जागासिंह, मॉरीशस के राष्ट्रकवि बृजेन्द्र कुमार ‘मंगर’ भगत, सोमदत्त बखोरी, मुनीश्वर चिंतामणि, अभिमन्यु अनत, पूजानंद नेमा, सूर्यदेव सीबोरत, उदयनारायण गंगू, सुचिता रामदीन, सुमति बुधन, हेमराज सुंदर, इंद्रदेव भोला इंद्रनाथ, अंजराज लालदेव,  राज हीरामन, आस्तानंद सदासिंह, राजेंद्रप्रसाद सिंह, टी.के. जानकी, गौकरण सितोहल, बम्मा चंपावती, सीता रामयाद, मोहनलाल ब्रजमोहन, हीरालाल लीलाधर, राजेंद्र सदाशिव, प्रह्लाद रामशरण,  पं. वासुदेव विष्णुदयाल, पं नरसिंहदास, पं. काशीनाथ किष्टो, पं आत्माराम, पं राजेंद्र अरुण, विनोद बाला अरुण, विनय दसोई, रामदेव धुरंधर, कल्पना लालजी, अलका धनपत  इत्यादि। मॉरीशस के इतिहास के पन्नों में और भी बहुत से नाम ऐसे हैं जिन्होंने किसी न किसी रूप में जी-जान से देश में हिंदी की सेवा की – पं. रामअवध शर्मा, श्री जयनारायण राय, प्रो. वासुदेव विष्णुदयाल, डॉ. सर शिवसागर रामगुलाम, प्रो. रामप्रकाश, पं. मोहनलाल मोहित, श्री सूर्यमंगर भगत, सर खेर जगत सिंह, स्वामी कृष्णानंद सरस्वती, श्री दुखी गंगा, श्री रामनाथ जीता, पं. रामदत्त महावीर, श्री हनुमान दूबे गिरधारी जी, श्री रामरेखा रति, पं. श्री निवास जगदत्त, पं. उमाशंकर जगदत्त, पं. दौलत शर्मा, श्री दयानंद लाल बसंत राय, डॉ. देवभरत सीरतन, डॉ. संयुक्ता भुवन रामसारा। अनेक नाम अभी छूट गए। अनेक युवा उभरते हुए लेखक भी हैं – अंजलि हजगैबी, झमन वशिष्ठ, काशीनाथ सोमदत्त, अंजू घरभरन, डॉ. सुरीति रघुनंदन, अरविंदसिंह नेकितसिंह, विद्वंति शंभू, सलिल तोपासी, पतिया विश्वानंद इत्यादि।

बैठकाओं से शुरू हुए नाटक भी भाषा और संस्कृति का संवर्धन करते रहे। 1955 में लक्ष्मी प्रसाद रामयाद द्वारा चलाए गए नाटक अभियान ने मॉरीशस में नाटकों की नींव का काम किया। 1973 में मॉरीशस सरकार द्वारा भारत से आमंत्रित रंगमंच विशेषज्ञ दंपत्ति श्री मोहन महर्षि और अँजला महर्षि ने इस देश में रंगमंच को गति प्रदान की। इसके पहले मॉरीशस में अंग्रेजी और फ्रेंच के ही नाटक खेले जाते थे, लेकिन अब हिंदी नाटक-मंचन भी होने लगा। संस्कृति मंत्रालय में एक ड्रामा यूनिट खुल गया। 1973 में हिंदी नाटक प्रतियोगिता के बाद उर्दू, तमिल, मराठी, तेलुगु और भोजपुरी भाषाओं में भी प्रतियोगिताएँ होने लगीं। दूसरे विश्व हिंदी सम्मेलन में मॉरीशस ने दो नाटकों का मंचन किया। मॉरीशस के नाटककार और नाट्य संस्थाएं भी दोनों देशों की गहरी मित्रता के कर्णधार हैं। 

भारत के प्रतिष्ठित प्रकाशन-गृह मॉरीशसीय हिंदी साहित्य का प्रकाशन करते हैं। मॉरीशस के साहित्यकार भारत और विश्वभर में पुरस्कृत व चर्चित भी होते हैं। भारत की स्वतंत्रता की पचहतरवीं वर्षगांठ पर आज़ादी के अमृत महोत्सव के दौरान भारतीय उच्चायोग की ओर से 75 वर्ष से अधिक आयु वाले 12 साहित्यकारों को, कार्यक्रम के मुख्य अतिथि गुरु हनुमान दूबे गिरधारी जी की उपस्थिति में, अमृत सृजन सम्मान प्रदान किया गया। आज सभी हिंदी सेवियों की बदौलत मॉरीशस में हिंदी भाषा और साहित्य पुष्पित-पल्लवित हो रहे हैं।

इस बाबत, दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित भाषा-वैज्ञानिक डॉ. विमलेशकांति वर्मा जी लिखते हैं “हिंदी की अंतरराष्ट्रीय भूमिका के परिप्रेक्ष्य में मॉरीशस के हिंदी साहित्य का महत्त्व इसलिए भी है कि दूर देश में बसे हुए भारतीयों की वह संवेदनात्मक अभिव्यक्ति है जो उन्हें भारत से तो जोड़ने वाली है ही साथ ही भारत की हिंदी के एक नए स्वरूप और तेवर का परिचय भी देती है जिसे उन्होंने बड़े संघर्ष के बाद भी बचाए रखा है और जिसके विकास और प्रतिष्ठा के लिए वे निरंतर सजग और सचेष्ट हैं”।5 

आर्य सभा द्वारा ‘आर्योदय’ पत्रिका हिंदी, अंग्रेज़ी और फ्रेंच में, वर्ष 1940 से प्रकाशित की जा रही है। आर्य नेता डॉ. गंगू ने गत् 50 वर्षों में प्रकाशित हिंदी साहित्य का संग्रह तैयार किया हैं। महात्मा गाँधी संस्थान से ‘वसंत’ और ‘रिमझिम’, ‘हिंदी संगठन’ से ‘सुमन’ व हिंदी प्रचारिणी सभा से ‘पंकज’ पत्रिकाएं प्राकशित होती हैं। सभा की हस्तलिखित पत्रिका ‘दुर्गा’ तो अविस्मरणीय है, उनके पुस्तकालय में वर्षों पुरानी पत्रिकाओं और समाचार पत्रों का संग्रहण है। प्रह्लाद रामशरण के संपादन में इन्द्रधनुष सांस्कृतिक परिषद की पत्रिका – हिंदी, अंग्रेज़ी और फ्रेंच में छपती है। हिंदी लेखक संघ ‘बाल सखा’ और ‘हिंदी लेखक संघ’ पत्रिकाओं के साथ-साथ निजी प्रयासों व स्रोतों से अनुभवी और नवोदित हिंदी लेखकों की पुस्तकें प्रकाशित करवाता है।

विश्व हिंदी सचिवालय ‘त्रैमासिक समाचार-पत्रिका’ और प्रतिवर्ष ‘विश्व हिंदी पत्रिका’ और ‘विश्व हिंदी साहित्य’ प्रकाशित करता है। प्रतिवर्ष विश्व हिंदी दिवस पर विदेश से और कार्यारंभ दिवस पर भारत से हिंदी विद्वान आमंत्रित कर गोष्ठियाँ व चर्चा-परिचर्चा की जाती हैं। सचिवालय की गतिविधियाँ और मॉरीशस में आयोजित तीन विश्व हिंदी सम्मेलन हिंदी को अंतरराष्ट्रीय रूप देने में मॉरीशस के योगदान की गाथा कहते हैं।

देश के राष्ट्रपिता से लेकर प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति तक अत्यंत गर्व के साथ हिंदी बोलते रहे हैं। विश्व हिंदी सचिवालय और हिंदी-सेवी संगठनों के मंचों से मंत्री-गण, मंत्रालयों व भारतीय उच्चायोग के प्रतिनिधि अधिकांशतः अपना संदेश हिंदी में देते हैं। यूँ आप बाज़ार में, सड़कों पर आमजन से हिंदी में बात कर सकते हैं। वाणिज्यिक विवशता ही सही, पर चीनी दुकानदारों का भी हिंदी-भोजपुरी बोलना ज़िंदगी को आसान बना देता है। कुछ लोग हिंदी बोल न भी पाएं पर समझ लेते हैं। संकेतों से काम चलाने की विवश्ता नहीं है इस देश में। इसका श्रेय हिंदी फिल्मों को भी जाता है।  अच्छी हिंदी बोलने वाले अपनी हिंदी पर गौरवान्वित होते हुए कहते हैं कि वे न तो कभी भारत गए हैं, न ही कभी उन्होंने हिंदी की पढ़ाई की, बस हिंदी फ़िल्में देखकर ही अच्छी हिंदी सीख गए। 

भारतीय भाषाओं के प्रचार-प्रसार में रेडियो व टेलीविज़न की भी महत्ती भूमिका है। वर्ष 2027 में मॉरीशस में रेडियो सेवाओं के 100 वर्ष पूरे हो जाएंगे। मॉरीशस ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन (एमबीसी) की रेडियो प्रोडक्शन प्रबंधक, डॉ. शशि दूकन बताती हैं कि भारतीय मज़दूरों की बड़ी संख्या देखकर रेडियो पर हिंदी के कार्यक्रम शुरू किए गए, आवश्यक सूचनाएं व शोक समाचार प्रसारित किए जाने लगे और मनोरंजन के लिए हिंदी सिनेमा-गीत। एमबीसी के दो एफएम और एक एएम चैनल भारतीय भाषाओं को समर्पित हैं जो 13 पूर्वी भाषाओं के कार्यक्रम प्रसारित करते हैं। ‘ताल एफएम’ सभी भारतीय भाषाओं में कार्यक्रम प्रस्तुत करता है और बेस्ट एफएम चौबिसों घंटे हिंदी सिनेमा के कार्यक्रम। हिंदी में मौसम संबंधी जानकारी, यातायात की ताज़ा स्थिति, प्रति घंटा मुख्य समाचार, खेल समाचार, बॉलीवुड समाचार प्रसारित किए जाते हैं। हिंदी-साहित्यिक कार्यक्रम हैं – ज्ञान-सरोवर, प्रकाश, क्षितिज, साहित्य दर्पण इत्यादि। इनमें से कुछ कार्यक्रमों में श्रोता भी जुड़ते हैं। हाल ही में एक घंटे का साप्ताहिक हिंदी कार्यक्रम ‘दर्शन’  चलाया गया, 28 कड़ियों में भारत के 28 राज्यों की संपूर्ण जानकारी दी गई। 

1965 में टेलीविज़न की शुरुआत हुई, तब एक ही चैनल हुआ करता था। आज एमबीसी टेलीविजन पर चौबिसों घंटे हिंदी सिनेमा के अलावा हिंदी में ज्ञान-विज्ञान, शिक्षा, साहित्य, इतिहास, कानून, खेती-बाड़ी पर कार्यक्रम, गीत-संगीत, प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिताएं व कार्टून फिल्में दिखाई जाती हैं। सामाजिक-सांस्कृतिक संस्थाओं के हिंदी कार्यक्रमों का सीधा प्रसारण किया जाता है। सभी पर्वों की झलकियाँ रेडियो और टेलीविजन द्वारा जनता तक पहुँचाई जाती हैं। विशेषकर महाशिवरात्रि पर गंगा तालाब पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों और चार पहर की पूजा का सीधा प्रसारण लगातार पाँच दिन तक चलता है। प्रतिदिन शाम छः बजे हिंदी में समाचार प्रसारित किए जाते हैं। भोजपुरी, तमिल, तेलुगु, मराठी इत्यादि अनेक भारतीय भाषाओं के समर्पित चैनल हैं।

इंदिरा गाँधी भारतीय सांस्कृतिक केंद्र गीत-संगीत, नृत्य व योग की कक्षाओं के माध्यम से भाषा व संस्कृति का प्रसार  करता है। भारतीय उच्चायोग द्वारा  विभिन्न विषयों पर हिंदी पुस्तकें, शब्दकोश, पत्र-पत्रिकाएं, अमर चित्र कथाएं, रामायण, भगवद् गीता इत्यादि उपहार-स्वरूप दी जाती हैं। इंदिरा गाँधी भारतीय सांस्कृतिक केंद्र, भारतीय उच्चायोग और विश्व हिंदी सचिवालय के सहयोग से पिछले 20-22 वर्षों से साहित्य संवाद समिति की मासिक गोष्ठियों में स्थानीय लेखकों की पुस्तकों का विमोचन, उनकी रचनाओं पर चर्चा व समीक्षा की जाती रही है। वरिष्ठ लेखकों को सम्मानित कर उभरते हुए लेखकों को प्रेरित व प्रोत्साहित किया जाता है। एक बार साहित्य संवाद समिति के सदस्यों ने बैठकाओं के बच्चों के साथ आप्रवासी घाट का दौरा किया, बच्चों ने हिंदी में प्रश्न पूछे और अनुसंधान अधिकारी श्रीमती जानकी ने हिंदी में उत्तर दिए।

      पर सच पूछें तो तस्वीर का दूसरा पहलू भी है। हिंदी के भविष्य की चिंता करते हुए डॉ. जागासिंह कहते हैं, “दो ज्वलंत न्यूनताएं खटकती हैं – एक, हिंदी दैनिक का प्रकाशन और मॉरीशस की विधान-सभा में हिंदी का प्रयोग”।6 सचमुच, मॉरीशस की संसद में अंग्रेज़ी और फ्रेंच का दबदबा बना हुआ है। समाचार-पत्रों,  हिंदी पाठकों और मुद्रणालयों की कमी खलती है। अनुवाद के क्षेत्र में भी काम करने की बहुत गुंजाइश है”।

एक अन्य गंभीर चिंता….“मॉरीशस में हिंदी अध्ययन-शिक्षण की भाषा है, प्रसारण की भाषा है और प्रकाशन की भाषा है। छात्र हिंदी चाव से पढ़ते हैं और हिंदी की कक्षाओं में अध्यापक और छात्र हिंदी में ही बोलते हैं। परंतु कक्षा के बाहर जाने पर हिंदी पढ़ रहे छात्र भी न के बराबर आपस में हिंदी बोलते हैं। घर में भी हिंदी बहुत कम बोली जाती है। अपवादस्वरूप घर के बाहर, बाज़ार में, गली में और आम मिलन स्थलों में मुट्ठी भर लोग हिंदी बोलते हैं। अधिकतर लोग फ्रेंच से उत्पन्न क्रियोल बोली बोलते हैं”।7 

आम बोलचाल की स्थिति निस्संदेह निराशाजनक है तथापि धार्मिक अनुष्ठानों में संस्कृत में मंत्रोच्चारण, स्कूली बच्चों द्वारा हिंदी में प्रस्तुतियाँ (अधिकांशतः अर्थ समझते हुए) और अधिकांश छात्र-छात्राओं द्वारा देवनागरी लिपि का  प्रयोग अतिसराहनीय है। कुछ भी हो, हिंदी की पावन गंगा में डुबकी लगा कर हिंदी प्रेमी तृप्ति अनुभव करते हैं।

गंगा से याद आया मॉरीशस का गंगा तलाब! कभी यह परी तलाब था, इसमें भारत से गंगाजल लाकर मिलाया गया और इसका नाम गंगा तालाब पड़ गया। वर्ष 2022 में महाशिवरात्रि पर्व पर भारत से लाए गंगाजल को इस तालाब में मिलाने का और क्रेन के ज़रिए ऊपर जाकर 108 फुट ऊँची मंगल महादेव की मूर्ति पर जलाभिषेक करने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ। माँ दुर्गा की विश्व की सबसे ऊँची 108 फुट की मूर्ति भी यहीं पर है। यहाँ गंगा माँ की मूर्ति है और पास के मंदिर में सभी भगवानों की मूर्तियाँ। हाल ही में बने एक मंदिर में 108 शिवलिंग स्थापित हैं। शिवमंदिर शिवालय कहलाते हैं, दुर्गा माँ के मंदिर काली-माई। देश में साईं मंदिर भी हैं, ब्रह्मकुमारी के आश्रम भी।

      अनेक पर्व-त्यौहार अति उत्साह से मनाए जाते हैं। युवाओं की भी बराबर भागीदारी रहती है – महाशिवरात्रि, दुर्गा-पूजा, गणेश-चतुर्थी, दीपावली, तुलसी-जयंती, हनुमान-जयंती, राम-नवमी, राम-सीता विवाह, कृष्ण-जन्माष्टमी, थाइपुसम-कावेदी, उगादि, ओणम, गुड़ी-पाड़वा इत्यादि। इनमें हुड़दंग की अपेक्षा भक्ति का वर्चस्व रहता है। हर हिंदू परिवार के आंगन में महावीर-मूर्ति और झंडी लगा एक चबूतरा रहता है। भोजपुरी प्रभाव से इसे “चौतरा” कहते हैं। ।

      विवाह समारोह पाँच दिन पूरी विधि से आयोजित किया जाता है। बृहस्पतिवार को पूजा से शुरुआत कर, गीत-गवई, मेहंदी, तिलक, माटीकोड़ाई, हल्दी, सप्तपदी, कन्यादान, विदाई और फिर सोमवार को चौथारी। कुछ लोग विदाई पर बेटी को ‘तुलसी रामायण’ भेंटस्वरूप देते हैं। मॉरीशस में बसे भारतीय वंशजों पर रामायण का अत्यधिक प्रभाव है, चाहे जन्म का समय हो, विवाह का या मृत्यु का। भारत से आए अरुण-दंपत्ति के अभूतपूर्व योगदान से मॉरीशस एकमात्र ऐसा देश बना जहाँ देश की संसद ने रामायण के आदर्शों के प्रचार-प्रसार हेतु सर्वसम्मति से एक अधिनियम पारित करके रामायण सेंटर की स्थापना की (2001)

मॉरीशस-भारत के सुदृढ़ राजनैतिक, आर्थिक और राजनयिक संबंधों में अनोखापन लाती है साझी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और लोगों के बीच भावनात्मक संबंध। भाषा, साहित्य और संस्कृति की निकटता इन भावनात्मक संबंधों को और भी प्रगाढ़ बनाती है। जब भारत को स्वतंत्रता मिली थी तब मॉरीशस के लालमाटी क्षेत्र में स्वराज-भवन में तिरंगा फहराया गया। यह प्रथा बदस्तूर जारी है। भारत के गणतंत्र-राष्ट्र बन जाने पर भी पोर्ट लुई के ‘शाँ-दे-मास’ में लोगों का इतना बड़ा हुजूम इकट्ठा हो गया कि शक्कर कोठी-मालिकों को शक्कर मिल बंद करनी पड़ी। ऐतिहासिक पल था यह! मॉरीशस की अनेक हस्तियाँ भारत के स्वतंत्रता-सैनानियों से प्रभावित होकर मॉरीशस की आज़ादी के लिए लड़ीं – सर शिवसागर रामगुलाम, जयनारायण राय, वासुदेव विष्णुदयाल। सर शिवसागर रामगुलाम से मॉरीशस की आज़ादी का दिन चुनने के लिए कहा गया तो उन्होंने 12 मार्च का दिन चुना (भारत में डांडी मार्च)।

भारत ने कोविड के दौरान वैक्सीन दी तो मॉरीशस ने वक्त पड़ने पर ऑक्सीजन कंसन्ट्रेटर्स। दूसरी लहर जानलेवा बनी तो मॉरीशस के मंदिरों में भारतवासियों की सलामती के लिए यज्ञ किए गए। दोनों देश एक-दूसरे के दर्द को महसूस करते हैं और एक-दूसरे की सफलताओं का जश्न मनाते हैं। इस रिश्ते के बारे में दोनों देशों के लोगों का मानना है कि भारत में सर्दी बढ़ने पर यदि भारतीयों को नज़ला हो जाए तो छींक मॉरीशसवासियों को आती है और यही कारण है कि इस संबंध को प्रेम और गर्व के साथ गर्भनाल का रिश्ता कहा जाता है।

वर्ष 2003 में पहली बार आयोजित प्रवासी भारतीय दिवस में भारत के तत्कालीन माननीय प्रधान मंत्री स्वर्गीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी द्वारा समारोह के मुख्य अतिथि, मॉरीशस के तत्कालीन माननीय प्रधान मंत्री, स्वर्गीय सर अनिरुद्ध जगन्नाथ जी को प्रवासी भारतीय सम्मान से सम्मानित किया गया था। प्रवासी भारतीय दिवस 2017 का यह सम्मान मॉरीशस के वर्तमान प्रधान मंत्री माननीय श्री प्रवीण जगन्नाथ जी को दिया गया था जो प्रवासी भारतीय दिवस 2019 समारोह के मुख्य अतिथि भी रहे। इसके अलावा भी, अलग-अलग वर्षों में चार अन्य अतिविशिष्ट मॉरीशसवासियों को प्रवासी भारतीय सम्मान से सम्मानित किया गया।

मॉरीशस की जनसंख्या को देखते हुए प्रतिशत के हिसाब से, प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन 2023 में इंदौर जाने वाला सबसे बड़ा प्रतिनिधिमंडल मॉरीशस से रहा, 450 से भी अधिक मॉरीशसवासी! भारत की जी-20 की 200 बैठकों में मॉरीशस भी सादर आमंत्रित रहा। विश्व हिंदी सम्मेलन 2023 (फ़ीजी) में  मॉरीशस के हिंदी-प्रेमियों ने भी उत्साहपूर्वक भाग लिया।

शुरुआती दौर से ही उच्च-स्तरीय दौरे हमारे द्विपक्षीय संबंधों की विशेषता रही है। खासतौर पर, हर वर्ष 2 नवंबर को मॉरीशस में भारतीय आगमन दिवस और 12 मार्च को मॉरीशस के राष्ट्रीय दिवस के अवसर पर भारत से उच्च स्तरीय विशिष्ट व्यक्ति मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किए जाते हैं। इस वर्ष, यानी, मॉरीशस के राष्ट्रीय दिवस समारोह, 2024 में भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी ने, मॉरीशस सरकार के निमंत्रण पर मुख्य अतिथि के रूप में भाग लिया।

अभी हाल ही में 16 से 17 जुलाई 2024 तक भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर जी मॉरीशस गणराज्य की आधिकारिक यात्रा पर गए थे। यह यात्रा विदेश मंत्री द्वारा अपनी पुनर्नियुक्ति के बाद की गई पहली द्विपक्षीय बैठकों में से एक है और इससे पहले विदेश मंत्री जी ने फरवरी, 2021 में मॉरीशस का दौरा किया था। यह यात्रा भारत मॉरीशस संबंधों के महत्व को रेखांकित करती है, और भारत की ‘पड़ोसी पहले नीति’ और विजन सागर के प्रति प्रतिबद्धता को प्रतिबिंबित करती है। इस प्रकार की निरंतर उच्च-स्तरीय राजनीतिक निकटता का आधार है दोनों देशों के नेतृत्व में परस्पर विश्वास और समझ। इन विशेष संबंधों के परिणामस्वरूप समुद्री सुरक्षा, क्षमता निर्माण और अनेक अन्य विकास परियोजनाएं मूर्त रुप ले रही हैं। वर्तमान समय में इन बहुआयामी द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत करने और लोगों के बीच घनिष्ठ संबंधों को घनिष्ठतर बनाने में मॉरीशस में भारत का प्रतिनिधित्व कर रही भारतीय उच्चायुक्त श्रीमती नंदिनी सिंग्ला जी भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।

      इसमें कोई संदेह नहीं कि मॉरीशस में हिंदी-भोजपुरी व अन्य भारतीय भाषाएँ और संस्कृति निस्संदेह दोनों देशों के संबंधों का सुदृढ़ आधार-स्तंभ है।

 संदर्भ सूची

  1. अभिमन्यु अनत, हिंदी की अंतरराष्ट्रीयता में मॉरीशस की भूमिका, साक्षात्कार, 329-331, मई-जुलाई 2007, पृष्ठ 304, साहित्य अकादमी, मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद का मासिक प्रकाशन.
  2. डॉ. उदय नारायण गंगू, मॉरीशस में हिंदी की स्थिति, हिंदी भाषा 
  3. अभिमन्यु अनत, हिंदी की अंतरराष्ट्रीयता में मॉरीशस की भूमिका, साक्षात्कार, 329-331, मई-जुलाई 2007, पृष्ठ 304, साहित्य अकादमी, मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद का मासिक प्रकाशन.
  4. अभिमन्यु अनत, हिंदी की अंतरराष्ट्रीयता में मॉरीशस की भूमिका, साक्षात्कार, 329-331, मई-जुलाई, 2007, पृष्ठ 305, साहित्य अकादमी, मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद का मासिक प्रकाशन.
  5. डॉ. विमलेश कांति वर्मा, ‘मॉरीशस का हिंदी सृजनात्मक साहित्य (2016), पृष्ठ 23, साहित्य अकादेमी.
  6. डॉ. बीरसेन जागासिंह, मोरिशस में हिंदी – एक सिंहावलोकन, गगनाञ्चल, विदेश में हिंदी पूर्वार्ध, वर्ष 27, अंक-3, जुलाई-सितम्बर, 2004, पृष्ठ 88, भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद्.
  7. डॉ. बीरसेन जागासिंह, मोरिशस में हिंदी – एक सिंहावलोकन, गगनाञ्चल, विदेश में हिंदी पूर्वार्ध, वर्ष 27, अंक-3, जुलाई-सितम्बर, 2004, पृष्ठ 84, भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद्.

लेखिका का परिचय

सुनीता पाहूजा

दिल्ली  विश्वविद्यालय  से  वाणिज्य स्नातकोतर, हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय से हिंदी  स्नातकोतर, अन्नामलई विश्वविद्यालय से बी.एड।

अगस्त 1984 से 1994 तक भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों में कार्यरत। वर्ष 1994 से केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो में वरिष्ठ अनुवादक। वर्ष 2005 से सहायक निदेशक।

जुलाई  2010 से जुलाई 2013 तक विदेश मंत्रालय में प्रतिनियुक्ति आधार पर,  भारतीय  उच्चायोग, पोर्ट ऑफ स्पेन, त्रिनिडाड एवं टुबैगो, वेस्ट इंडीज़ में  द्वितीय सचिव (हिंदी एवं संस्कृति) के पद पर रहते  हुए हिंदी एवं भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार के लिए कार्य किया,  इस दौरान द्विमासिक गृह-पत्रिका ‘यात्रा’ का सम्पादन कार्य किया। यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्ट इंडीज़ में हिंदी चेयर की अनुपस्थिति में हिंदी अध्यापन किया। त्रिनिदाद और टुबैगो में हिंदी के पुनरुत्थान में अहम भूमिका निभाई। समय समय पर स्थानीय छात्र-छात्राओं के लिए विभिन्न हिंदी प्रतियोगिताएं आयोजित कीं और हिंदी शिक्षकों के लिए कार्यशालाएं भी आयोजित कीं। महात्मा गाँधी सांस्कृतिक सहयोग संस्थान में कुछ  माह तक कार्यकारी निदेशक और एक वर्ष तक उप-निदेशक के तौर पर कार्य किया।

अक्तूबर 2020 से अक्तूबर 2023 तक विदेश मंत्रालय में प्रतिनियुक्ति आधार पर,  भारतीय उच्चायोग, पोर्ट लुई, मॉरिशस में द्वितीय सचिव (हिंदी एवं संस्कृति) के पद पर रहते  हुए हिंदी एवं भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार के लिए कार्य किया।  इस दौरान विश्व हिंदी सचिवालय की समितियों में तथा अन्य स्थानीय संस्थाओं में भारत सरकार का प्रतिनिधित्व किया, रेडियो, टेलिविज़न पर अनेक कार्यक्रमों में भाग लिया व टेलिविज़न पर ‘अक्षय धारा’ शीर्षक कार्यक्रम में लगभग 20 साक्षात्कार लिए। अनेक प्रत्यक्ष और ऑनलाइन कार्यक्रमों का संचालन व इनमें भागीदारी। समय-समय पर पत्र-पत्रिकाओं में लेख व कविताएँ प्रकाशित।

राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय से सहायक निदेशक के पद से सेवानिवृत्त (39 वर्ष व 5 माह की सेवा पूर्ण करके 31.01.2024 को)

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