बाबा की धूल
प्रभु मुझे नव जन्म में करना,
बाबा की बगिया का फूल ।
और नहीं तो मुझको करना,
बगिया की मिट्टी की धूल ।
क्यारी में पानी देते बाबा,
स्नेह में भीगी उनके साथ ।
अगर मैं इधर-उधर उड़ी तो,
थामेंगे रख सिर पर हाथ।
पीड़ा सारी मैं हर लूँगी,
चुभ जाए जो कोई शूल ।
बाबा के मन की बगिया में,
उगने न दूँगी कोई बबूल ।
नित बाबा के चरण गहूँगी,
कदम तले की धरा बनूँगी ।
जहाँ-जहाँ बाबा जाएँगे,
पकड़ के दामन संग चलूँगी ।
होऊँ अलग न कभी बाबा से,
न आए विदा का कोई विचार ।
बाबा के आँगन सदा बिखेरूँ,
देखभाल और प्यार अपार ।
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-आरती लोकेश