1. लघुकथा – ‘आमदनी अठन्नी खर्चा रूपैया’
पिता के बाद माँ को आधी पेंशन मिलने लगी थी जो एक अच्छी ख़ासी रक़म थी जो युवा बच्चों के वेतन से भी कहीं अधिक थी। माँ युवा बच्चों के साथ स्वावलंबी होकर रह रही थीं और बच्चों की भी ज़रूरतें पूरा कर रही थीं। अचानक एक दिन माँ भी नहीं रहीं और पेंशन आनी बंद हो गयी। शोक में डूबे आमदनी अठन्नी खर्चा रूपैया वाले बच्चे आपस में फुसफुसा रहे थे, “हमें तो दो दुखों ने मार दिया। माँ का जाना और माँ की पेंशन का जाना।”
2. लघुकथा – ‘मोबाइल का नया फ़ीचर’
बेटा-बहू माँ से उनका पुराना मोबाइल लेकर नया मोबाईल देते हुए बोले कि पुराने मोबाइल से इसमें ज़्यादा फ़ीचर हैं । भोली माँ मन में ये सोचकर कुछ निश्चिंत थीं कि रोज-रोज की इतनी कड़वाहटों के बीच रिश्तों में कुछ मिठास चलो अभी भी बाक़ी है। पति के ना रहने के बाद दुनिया से तो नहीं पर माँ रोज़ अपनी बेटी से अपने दिल का दर्द फ़ोन पर बाँट लिया करती थी और बेटी भी माँ को बेटे-बहू के साथ एक छत के नीचे प्रेम से रहने की कुछ सही सलाह देकर माँ के दर्द को हल्का कर देती थी। उपहार में फ़ोन मिलने के लगभग तीन महीने बाद ही बेटे-बहू के समक्ष माँ की पेशी की गयी जिसमें माँ की अपनी बेटी के साथ हुई बातचीत की रिकॉर्डिंग सुनायी गयी जो नए मोबाइल के नए फ़ीचर का करिश्मा था। माँ सकते में थी और बेटा-बहू उन पर आग-बबूला। अब माँ के पास आख़िरी साँस तक ना नया मोबाइल था, ना ही पुराना और ना ही बेटी से दिल हल्का करने का कोई ज़रिया।
3. लघुकथा – ‘माँ का ईलाज’
पिता के ना रहने पर माँ बड़े बेटे के साथ रह रही थी। बड़े बेटे को दो वर्ष के लिए ऑफिस के प्रोजेक्ट के कारण परदेस जाना पड़ा जहाँ माँ को साथ ले जाना संभव नहीं था इसलिए उसे माँ को छोटे भाई के पास छोड़ना पड़ा । माँ बड़े बेटे से शिकायती अंदाज में रोज़ फ़ोन पर कहती कि पता नहीं तुम और तुम्हारे पिता मुझे किस बेकार डॉक्टर को दिखाया करते थे जो इतनी सारी दवाएँ और दिन में दो से तीन बार इंसुलिन लगाने को देता था। छोटे बेटे ने नए डॉक्टर को दिखाया जो सिर्फ़ दिन में एक बार इंसुलिन का इंजेक्शन लगाने को कहता है और एक बार ही दो गोली खाने को देता है।
बड़े बेटे को दो वर्ष पूरे नहीं हुए थे और माँ नहीं रहीं।
4. लघुकथा – ‘अपनी कुंठा जगज़ाहिर’
अपने कवि मित्र को श्रद्धांजलि देने पहुँची कवियित्री काव्यात्मक रूप में अपने श्रद्धा सुमन अर्पित कर रही थीं जहाँ उनके कवि मित्र की देश और विदेश में रहने वाली संतानों ने अपने पिता के गोलोक गमन पर शोक सभा रखी थी।
वो अपने मोबाइल से अपनी कविता पढ़ते हुए परदेस गए बच्चों की ओर अपने कुंठित कटाक्ष कस रही थीं और अपने माता-पिता की एक आवाज़ पर उनके लिए हमेशा मौजूद रहने वाले, उनकी हर सुविधा का ध्यान रखने वाले और वर्ष में अपने माता-पिता से कई बार मिलने आने वाले बच्चे उनकी रचना सुनकर द्रवित हो रहे थे।
उसी बीच कवियित्री महोदया का मोबाइल बजा और मोबाइल स्क्रीन पर कविता होने के कारण हड़बड़ाहट में उन्होंने फ़ोन स्पीकर पर उठा लिया। दूसरी ओर से उनके ख़ुद के परदेस गए बच्चे की आवाज़ गूँजी, “सॉरी मम्मी, इस साल भी आपसे मिलने भारत आना नहीं हो पा रहा है क्योंकि इस बार की छुट्टियों में मेरा यूएस घूमने का प्लान है।”
5. लघुकथा – ‘असंवेदनशील ज्ञान’
गोस्वामी जी का मध्य रात्रि में फ़ोन बजा । फोन हॉस्पिटल के आईसीयू से दुखद सूचना के साथ था कि कुछ देर पहले ही उनकी माँ नहीं रहीं और वो तुरंत हॉस्पिटल आ जाएँ। गोस्वामी जी ने घड़ी में रात के १ बजे देख और कड़कड़ाती ठंड देखकर हॉस्पिटल अटेंडेंट से कहा कि अभी हमारा आना तो संभव नहीं है इसलिए माँ को सुबह तक के लिए शवगृह में शिफ़्ट कर दें।
घर में सबको उठाकर ये दुखद सूचना देते हुए गोस्वामी जी ने कहा कि अभी कोई किसी भी निकट संबंधी को इस बारे में फ़ोन ना करे। सुबह जब हॉस्पिटल जाएँगे तभी सबको बताएँगे कि माँ ने सुबह प्राण त्याग दिए हैं।
छोटे भाई ने कहा कि एक कमरा माँ के लिए खाली कर देते हैं ताकि रिश्तेदार आदि उनके अंतिम दर्शन वहाँ कर सकें। तभी गोस्वामी जी ने ख़ुद को वास्तुशास्त्र का बहुत बड़ा ज्ञाता होने का भ्रम रखते हुए भाई को ज़ोर से टोका, “घर अभी नया है। वास्तु के अनुसार इसमें कोई शव लाना अपशगुन है।”
गोस्वामी जी के आदेशानुसार ही सुबह सब रिश्तेदारों को शोक संदेश दिया गया और माँ को अंतिम दर्शन के लिए कड़कड़ाती ठंड में बिल्डिंग के ओपन पार्किंग लॉट में लाया गया। अंतिम यात्रा में चलते हुए सभी रिश्तेदार ये कहते हुए सुनायी दिए कि जो घर माँ ने अपने पैसे देकर बेटों को दिलाया था वो उसका अंतिम दर्शन तक भी ना कर सकीं।
-प्रगीत कुँअर