सिंगापुर में हिंदी
-डॉ. संध्या सिंह
भारतीय डायस्पोरा का फैलाव विश्व के कई देशों में काफी बड़े स्तर पर है। यह सिर्फ फैलाव ही नहीं है बल्कि उस देश के लगभग सभी क्षेत्रों में उनके हस्तक्षेप की परिधि का विस्तार भी है। किसी भी देश को समग्र रूप से जानने के लिए उस देश की सामाजिक, भौगोलिक, राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक गतिविधियों को जानना आवश्यक होता है। जब बात भाषाई स्वरूप की हो तो यह देखना आवश्यक हो जाता है कि उस तथाकथित देश में वह भाषा किस रूप में पुष्पित और पल्लवित हो रही है। क्या उसकी सभी शाखाएँ उसके विस्तार की सूचना दे रही हैं? सिंगापुर में हिंदी की स्थिति, विभिन्न क्षेत्रों में हो रहे कार्य, संभावनाएँ और भविष्य आदि के विषय में संक्षेप रूप में इस आलेख में चर्चा की गई है।
भारत से चार-पाँच घंटे की हवाई यात्रा द्वारा दक्षिण पूर्व एशिया के उस टापू देश में पहुँच सकते हैं जहाँ भाषाओं की संगम स्थली का एहसास होता है।
सिंगापुर जिसका मलय भाषा में नाम सिंहापुर है जो सिंह और पुर दो शब्दों के मेल से बना है अपने नाम से ही हमें यहाँ भारतीय भाषाओं के प्रभुत्व का तनिक एहसास करा देता है। यह तथ्य भी सत्य है कि जब हम आज सिंगापुर को विश्व मानचित्र पर देखते हैं तो लगता है किअति आधुनिक देश जहाँ की 75 प्रतिशत के करीब आबादी चीनी बहुल जनसंख्या की है वहाँ भला हिंदी क्या ही साँस ले पा रही होगी। लेकिन जैसे-जैसे हम सिंगापुर के समाज, उसकी व्यवस्थाओं, सरकार की नीतियों ,प्रजातीय सूत्र को जोड़ने वाले कार्यों के भीतर झाँकते हैं हमें परत दर परत भाषाई संगम और भाषाई धरोहर को सहजने के प्रयास दिखाई देने लगते हैं।
आज से लगभग 27-28 वर्ष पूर्व भारत के शहर बनारस से जब मेरा सिंगापुर आना हुआ तो मैंने इस बात की कभी कल्पना भी नहीं की थी कि हिंदी जिसे अपने अध्ययन का मुख्य विषय मैंने बनाया था वह मेरे इस कदर काम आएगी कि मेरे व्यक्तित्व के निर्माण में, विदेशी भूमि पर मेरी जड़ें मजबूत करने में सबसे उर्वर खाद का कार्य करेगी। ऐसा नहीं है कि प्रारंभ में ही मैंने हिंदी को अपना क्षेत्र चुना क्योंकि तब तो इसकी आशा ही नहीं थी मुझे और मैंने भी अन्य लोगों की तरह जो यहाँ के दफ़्तर वाले आम कार्य हैं उनमें अपना हाथ आजमाया लेकिन कहते हैं ना आनंद जब ना हो तो कार्य किया नहीं जा सकता और यही स्थिति मेरे साथ भी थी। दो-तीन काम में चुने जाने की बावजूद उन में से किसी में भी मुझे बहुत आनंद नहीं आ रहा था। मैं कहीं ना कहीं अपनी सांस्कृतिक विरासत है को लेकर के कुछ करने के प्रति ज़्यादा उत्सुक थी। और इन्हीं प्रयासों में हिंदी ने मेरा हाथ थाम या मैंने हिंदी का हाथ थामा और एक-एक पग उसके साथ मैं आगे बढ़ती गई। कभी-कभी लगा कि जहाँ जाकर लोग अंग्रेजी सीखते हैं वहाँ मैं हिंदी में कार्य कर रही हूँ तो क्या इससे मेरा व्यक्तित्व कहीं अवनत नहीं होगा या मेरा विकास अवरुद्ध न होगा? और भविष्य में संभवत: जो स्थान मैं पाना चाहूँ वह नहीं मिल सकेगा लेकिन आज जब पीछे पलट कर देखती हूँ तो लगता है इस देश ने भाषाओं के सहेजने में जिस तरह से हर किसी को सहयोग दिया है और उसे आगे बढ़ने का अवसर दिया है वह शायद किसी और कार्य में होती तो इस स्तर पर कार्य नहीं कर पाई होती।
अब थोड़ा सा सिंगापुर में हिंदी की स्थिति को समझने का हम प्रयास करते हैं कि यहाँ हिंदी आज किस रूप में दिखाई दे रही है या उसकी क्या स्थिति है!
किसी भी भाषा को समझने के लिए उसके कुछ मुख्य पहलुओं को देखना होता है कि आखिर वह भाषा उस देश में किस रूप में प्रचलित है। शिक्षण, साहित्य, संस्कृति, बोलचाल की भाषा, मनोरंजन जैसे कुछ मुख्य पहलू हैं और उनके साथ ही अनुवाद जैसे क्षेत्र बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।सिंगापुर को स्वतन्त्र राष्ट्र की संज्ञा सन् 1965 में मिली। बहुप्रजातीय विशेषता से भरा हुआ सिंगापुर विश्व नक़्शे पर एक छोटा सा बिंदु है जिसे अक्सर ‘लिटल रेड डॉट’ कहा जाता है। भारत में इस आकार के या इससे बहुत बड़े कई शहर हैं। सन् 2020 के आँकड़े के अनुसार सिंगापुर का कुल क्षेत्र 7.28.6 वर्ग किलोमीटर है जो क़रीब 60 द्वीपों का मेल है। इस देश की सीमाएँ छोटी और फैलाव का आकाश विस्तृत है। ख़ूबी यही है कि इस देश ने अपने आकार को अपनी पहचान बनाने में कभी आड़े नहीं आने दिया। सन् 2021 में इसकी कुल जनसंख्या 54.5 लाख दर्ज की गई। यह देश बनाम शहर दक्षिण-पूर्व एशिया में, निकोबार द्वीप समूह से लगभग 1500 कि.मी. दूर है। इसकी जनसंख्या में सबसे बड़ा प्रतिशत चीनी जनसंख्या का है। 2021 की जनसंख्या गणना के आधार पर चीनी 74.2%, मलय 13.7%, भारतीय 8.9% और अन्य 3.2% जिसमें यूरेशियन आदि लोग भी इस द्वीप के निवासी हैं(Department of Statistics 2021)। भारतीयों की बात करें तो दक्षिण भारतीयों की संख्या अधिक है। धीरे-धीरे उत्तर भारतीयों की संख्या भी बढ़ रही है और उनके साथ ही हिंदी भी। सिंगापुर में करीब 9% भारतीय मूल के लोग निवास करते हैं, जो समाज, राजनीति, व्यापार, संस्कृति, और शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय रूप से हस्तक्षेप रखते हैं। हिंदी सिंगापुर में एक महत्वपूर्ण भाषा है, जिसे दैनिक जीवन, व्यापार, सामाजिक संगठनों, और मीडिया में देखा जा सकता है।
शिक्षण संस्थाओं में हिंदी
सिंगापुर में हिंदी की बात करने पर सबसे अधिक प्रसन्नता इस बात से होती है कि सिंगापुर के विद्यालयों में हिंदी भी मान्यता प्राप्त एक विषय है। सरकार ने विद्यालयों में द्विभाषी नीति की शुरुआत सन् 1966 में की। यानी सिंगापुर में हर विद्यार्थी को दूसरी भाषा के रूप में अपनी मातृभाषा या उपलब्ध भाषा पढ़नी होती है। 6 अक्तूबर 1989 का दिन सिंगापुर में हिन्दी भाषियों के लिए अत्यंत ख़ास रहा क्योंकि इसी दिन संसद में शिक्षामंत्री श्री टोनी तान जी ने घोषणा की कि गैर तमिल भाषी भारतीय छात्र माध्यमिक विद्यालय में पाँचों (हिन्दी, गुजरती, पंजाबी, बंगाली, उर्दू) में से एक भाषा को द्वितीय भाषा के रूप में सन् 1990 से पढ़ सकते हैं अर्थात् अब दसवीं यानी “ओ लेवल” की परीक्षा छात्र हिन्दी में लिख सकते थे। इस कार्य में अग्रणी नेताओं का लक्ष्य यही था कि स्थानीय नागरिक हिन्दी को द्वितीय भाषा के रूप में पढ़ सकें और अपने मातृभाषा विषय के गिरते हुए प्रदर्शन को न सिर्फ़ सुधार सकें बल्कि संस्कृति को भी जीवित रख सकें। और यहीं से सिंगापुर की शिक्षा नीति में हिन्दी को स्थान मिला जो धीरे-धीरे बढ़ता ही गया। आज सिंगापुर के स्थानीय पाठ्यक्रम में हिंदी भाषा को द्वितीय भाषा के रूप में सिखाने की मान्यता प्राप्त है।
स्थानीय विद्यालयों में इस समय लगभग 8000 विद्यार्थी इसे दूसरी भाषा के रूप में सीख रहे हैं और सबसे बड़ी बात इनमें प्रवासियों की दूसरी-तीसरी पीढ़ियों की संख्या काफी बड़ी है। द्वितीय भाषा के रूप में सीखने के कारण हिंदी का स्थायित्व यहाँ अन्य कई देशों से अधिक है। विद्यार्थी दसवीं या ग्यारहवीं कक्षा तक हिंदी सीखते हैं और उनका मातृभाषा परीक्षा में उत्तीर्ण होना आवश्यक है तभी विश्वविद्यालयी शिक्षा में आगे बढ़ सकते हैं। इस एक नीति ने हिंदी को सुदृढ़ता दी है। हिंदी सोसाइटी सिंगापुर और डी.ए.वी. हिंदी स्कूल नामक दो संस्थाओं के माध्यम से सिंगापुर में स्थानीय छात्रों को हिंदी सीखने का मौक़ा मिलता है। इन दोनों संस्थाओं में कुल मिलाकर लगभग 250-300 हिंदी अध्यापिकाएँ हैं जो स्वयंसेवी के रूप में हिंदी शिक्षण का कार्य करती हैं। सैकड़ों साल पहले आए समूह की आज तीसरी-चौथी पीढ़ी अगर हिंदी सीख पा रही है तो हमारे पूर्वजों द्वारा किये गए प्रयास और सिंगापुर सरकार को इसका श्रेय जाता है। आज स्थानीय विद्यालयों में मातृभाषा के घंटे में ‘हिन्दी सोसाइटी’ व ‘डी ए वी’ द्वारा हिन्दी शिक्षण का कार्य चल रहा है, जिसका निरीक्षण उन दोनों संस्थानों के अलावा ‘बोर्ड फ़ॉर टिचिंग एंड टेस्टिंग साउथ एशियन लैंग्वेजेज़्’ करता है। स्थानीय विद्यालयों में पढ़ाए जाने के कारण जितने विद्यार्थी हिन्दी भाषा पढ़ रहे हैं, उतने अन्य गैर तमिल भारतीय भाषाओं में नहीं।
स्थानीय विद्यालयों के अलावा सिंगापुर में कई भारतीय अंतरराष्ट्रीय विद्यालय हैं क्योंकि काम के लिए आनेवाले लोगों में भारतीयों की बड़ी संख्या यहाँ रुख करती है। शुरू में ज़्यादातर ये ‘प्रोफेशनल्स’ अपने बच्चों को भारतीय अंतरराष्ट्रीय विद्यालयों में ही डालते हैं और दूसरी भाषा के रूप में हिंदी ही पहली पसंद होती है। इन विद्यालयों में ‘एन०पी०एस० अंतरराष्ट्रीय पाठशाला, ग्लोबल इंडियन इंटरनेशनल स्कूल, डी०पी०एस०, युवा भारती, वाइज ओक्स इंटरनेश्नल, किंदल किड्स, जी आई जी , मिडल्टन इंटरनेशनल आदि हैं। इनके साथ ही यूनाइटेड वर्ल्ड कॉलेज, स्कूल ऑफ़ द आर्ट्स, ए सी एस इंटरनेशनल, सेंट जोसेफ़ इंटरनेश्नल आदि कुछ नाम हैं जो भारतीय अंतरराष्ट्रीय विद्यालय न होते हुए भी हिन्दी को द्वितीय भाषा के रूप में पढ़ा रहे हैं। इन विद्यालयों में आई० जी० सी० एस० ई०, आई० बी०, आई० सी० एस० ई०, जी० सी० ई० या सी० बी० एस० ई० पाठ्यक्रम के तहत हिन्दी शिक्षण का कार्य ज़ोरों से चल रहा है। अगर इन विद्यालयों में देखें तो हज़ारों छात्र यहाँ भी हिंदी सीख रहे हैं और जैसा पहले भी कहा है कि भाषा के साथ संस्कृति से भी जुड़ने के अधिक मौके मिलते हैं। जब ये छात्र हिंदी दिवस पर सिंगापुर संगम संस्था और पत्रिका के मंच से ‘पन्ना धाय’ जैसे नाटकों का हिंदी में मंचन करते हैं तो इतिहास और संस्कृति की तमाम बातें स्वत: उनमें आत्मसात हो जाती हैं।
सिंगापुर के दोनों मुख्य विश्वविद्यालयों में हिंदी भाषा शिक्षण कार्यक्रम संचालित होता है; नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ सिंगापुर (एन यू एस) और नान्यांग टेक्नोलाजिकल यूनिवर्सिटी (एन टी यू)। ये दोनों विश्वविद्यालय एशिया ही नहीं विश्व में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ सिंगापुर (एन यू एस) में हिंदी भाषा शिक्षण की शुरुआत सन् 2008 में हुई। नान्यांग टेक्नोलाजिकल यूनिवर्सिटी (एन टी यू) की बात करें तो हिंदी भाषा शिक्षण सन् 2014 से हो रहा है। एन यू एस में हिंदी कला और सामाजिक विज्ञान संकाय की शाखा ‘सेंटर फ़ॉर लैंग्वेज़ स्टडीज़’ के अंतर्गत ‘माईनर इन हिंदी स्टडीज़’ और ‘ऐच्छिक मॉड्यूल’ रूप में सिखाई जाती है। हिंदी के छह स्तर हैं जिन्हें प्राथमिक, मध्यम और उच्च तीन श्रेणियों में बाँटा गया है। ये छह स्तर विद्यार्थी छह सत्रों में पूरा करते हैं। एन टी यू में हिंदी मानविकी, कला और सामाजिक विज्ञान संकाय की शाखा ‘सेंटर फॉर मोर्डन लैंग्वेजेज़’ के अंतर्गत ऐच्छिक विषय के रूप में सिखाई जाती है। एन टी यू हिंदी के दो स्तर हैं पर 2014 से 2023 तक सिर्फ पहले स्तर की कक्षाएँ ही चलाई जा सकी हैं जिसका कारण हिंदी के अगले स्तर में विद्यार्थियों की कम रुचि है। भारतीय भाषाओं में हिंदी के अलावा एन टी यू में भी तमिल भाषा की कक्षाएँ चलाई जाती हैं।
दोनों ही विश्वविद्यालयों में हिंदी विदेशी भाषा के रूप में सिखाई जाती है। वर्तमान में नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर और नानयांग टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी सिंगापुर दोनों विश्वविद्यालयों में ‘एन इंट्रोडक्शन टू हिंदी एलिमेंट्री लेवल’ नामक पुस्तक (डॉ संध्या सिंह व साधना पाठक) स्तर एक और दो के लिए लगाई गई है। चूँकि नानयांग टेक्नोलॉजिकल विश्वविद्यालय में सिर्फ एक ही स्तर की हिंदी कक्षाएं भी चलती हैं इसलिए वहाँ सिर्फ एक ही पुस्तक का इस्तेमाल किया जाता है। नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर में स्तर तीन और चार के लिए ‘एन इंट्रोडक्शन टू हिंदी इंटरमीडिएट लेवल’ (डॉ संध्या सिंह व साधना पाठक) नामक पुस्तक का इस्तेमाल किया जाता है।
साहित्यिक और सांस्कृतिक संस्थाएँ और कार्य
सन 2018/19 में सिंगापुर में पंजीकृत और स्थापित लाभ निरपेक्ष हिंदी संस्था ‘संगम सिंगापुर’ साहित्य, भाषा और लोक-संस्कृति को आगे बढ़ाने के लिए कई अनोखे प्रयास कर रही है। 2018/19 से लगातार यह संस्था नए-नए रूपों में हिंदी भाषा, साहित्य आदि को बढ़ाने के प्रयास में अग्रसर है। इस संस्था की अध्यक्ष डॉ संध्या सिंह, उपाध्यक्ष संगीता सिंह और सचिव अरुणा सिंह है। यह संस्था प्रति वर्ष अपने अग्रज साहित्यकारों के रचना-संसार पर एक सार्वजनिक आयोजन ‘साहित्य के ख़ज़ाने से’ नामक कार्यक्रम के माध्यम से करवाने के साथ ही भिन्न प्रतियोगिताओं द्वारा छात्रों और वयस्कों को हिंदी से जोड़ने का कार्य कर रही है। हिंदी दिवस , विश्व हिंदी दिवस आदि का आयोजन भी इसके द्वारा बड़े स्तर पर करवाया जाता है। खासकर छात्रों के लिए अंतरराष्ट्रीय कवि-गोष्ठी के आयोजन और उसकी सफलता ने यह सिद्ध कर दिया कि अगर मौक़े उपस्थित हों तो भावी पीढ़ी में जोश कम नहीं। कई महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा और विमर्श के आयोजन भी इस संस्था द्वारा किये जा रहे हैं जिसमें देश-विदेश के कई विशेष व्यक्ति भाग लेते हैं। ‘ग्लोबल हिंदी फाउंडेशन’ नामक संस्था द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर 2016-18 तक ‘प्रेरणा अवार्ड्स’ का वार्षिक रूप से आयोजन किया गया जिसमें विद्यालयों के छात्रों के साथ ही वयस्कों के लिए प्रतियोगिताएँ आयोजित की गईं। इसकी संस्थापक ममता मंडल सिंह हैं। ‘हिंदी परिवार सिंगापुर’ नामक टोस्ट मास्टर क्लब भी टोस्ट मास्टर गतिविधियों के साथ कवि गोष्ठियों और युवाओं के लिए कई कार्यक्रमों का आयोजन कर रहा है। इसके संस्थापक हर्षवर्धन गोयल हैं। संगम सिंगापुर, सिंगापुर संगम, ग्लोबल हिंदी फाउंडेशन, सिंगापुर टोस्ट मास्टर्स क्लब जैसे मंचों के माध्यम से हिंदी को बल मिल रहा है। आज लोगों के पास कई विकल्प हैं जो उन्हें प्रेरित करते हैं कि वे हिंदी से जुड़ें। मीडिया में भी सिंगापुर में हिंदी स्वयं को वैश्विक परिदृश्य से जोड़ रही है। ‘दस्तक’ के नाटक या हिंदी रेडियो ‘रेडियो मस्ती’ के शो सभी आज हिंदी के बहाने अपनी पहचान बना रहे हैं और हिंदी को यहाँ बढ़ा रहे हैं।
सांस्कृतिक और धार्मिक आयोजनों के बिना सिंगापुर या किसी भी बाहरी देश में हिंदी इस रूप में नहीं बढ़ पाएगी। सिंगापुर में भी आर्यसमाज सिंगापुर, श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर, भारतीय भवन, भोजपुरी असोशियेशन, बिजहार , मैथिलि असोसिएशन जैसी संस्थाएँ संस्कृति की जड़ों को और गहरे तक जमाने के प्रयास में लीन हैं।
सिंगापुर में हिंदी का स्वर अब साहित्य समाज द्वारा भी मुखरित हो रहा है। सिंगापुर के वर्तमान हिंदी साहित्य समाज के बारे में चर्चा करने पर यह स्पष्ट होता है कि यह देश एक तरह से कई उभरते प्रवासी साहित्य समाज का प्रतिनिधि है जिससे दुनिया को रूबरू होना है। सिंगापुर से कविताएँ काफी लिखी जा रही हैं, कहानियाँ लिखने का सिलसिला भी शुरू हो चुका है। चित्रा गुप्ता, साक्षी प्रद्युम्न, आराधना श्रीवास्तव, श्रद्धा जैन, विनोद दूबे, गौरव उपाध्याय, शान्ति प्रकाश उपाध्याय, शार्दूला नोगजा, शीतल जैन, रीता पाण्डेय, प्रतिभा गर्ग, ख़ुशी मिश्रा, प्रतिमा सिंह, आलोक मिश्रा, डॉ अंकुर गुप्ता, आराधना सदाशिवम, अदिति अरोरा, स्मिता कंवर, डॉ स्मिता सिंह, संजय कुमार, हर्ष वर्धन गोयल, प्रेरणा मित्तल, रीना दयाल, प्रद्युम्न इंगले, अनुसुइया साहू आदि कविताओं के क्षेत्र में तथा कथा व गद्य लेखन में चित्रा गुप्ता, डॉ संध्या सिंह , विनोद दूबे, आराधना झा श्रीवास्तव, गौरव उपाध्याय, शांति प्रकाश उपाध्याय, प्रतिभा गर्ग आदि नाम मुख्य हैं। ऐसे कई युवा हैं जो प्रवासी साहित्य के मानचित्र पर नए हैं, उभरकर सामने आ रहे हैं। ‘लॉक डाउन’ की सबसे बड़ी उपलब्धि हिंदी साहित्य के प्रचार-प्रसार के क्षेत्र में हुई है। सिंगापुर से कई कवि-गोष्ठियाँ आयोजित हुईं तथा यहाँ के रचनाकारों ने भिन्न मंचों से अपनी रचनाएँ सुनाईं। सिंगापुर से उपन्यास, कविताएँ, ग़ज़ल, शेर, गीत, कहानियाँ, संस्मरण, आलेख, डायरी आदि हर विधा में रचनाएँ लिखी जा रही हैं। धीरे-धीरे रचनाकारों की सूची लम्बी हो रही है और रचना का स्तर भी बेहतर हो रहा है। हिंदी रचनाएँ लिखने वाले ज़्यादातर लोग किसी न किसी व्यावसायिक पेशे से जुड़े हैं जैसे आई टी या बैंकिग। हिंदी भाषा से लगाव पहले से रहा है और अब सुनने-सुनाने का मंच मिलने लगा है तो लोगों की प्रतिभाओं में निखार भी आने लगा है।
हिंदी पत्रिका व पुस्तकें
सन 2018 से सिंगापुर की पहली हिंदी पत्रिका सिंगापुर में पंजीकृत ‘सिंगापुर संगम’ ने भी अपने पैर दुनिया तक फैलाए। यह त्रैमासिक पत्रिका सिंगापुर में भारत का संगम तो है ही साथ ही यहाँ के हिंदी भाषियों को दुनिया से जोड़ने का एक माध्यम भी है। सिंगापुर में स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय विद्यालयों में हज़ारों छात्र हिंदी किसी न किसी रूप में पढ़ रहे हैं और इतने छात्रों को पढ़ाने वाले शिक्षकों की संख्या भी सैकड़ों है। ऐसी स्थिति में यहाँ से कोई प्रकाशन न निकलना मलाल की बात थी। कई वर्षों के प्रयास के बाद यह पथ भी तय हो ही गया। इस पत्रिका की ख़ूबी यह भी है कि इसमें छात्रों को हिंदी के वाहक के रूप में प्रस्तुत किया गया है साथ ही जो लोग विदेशी भाषी होते हुए भी हिंदी काफी तन्मयता से सीख रहे हैं उन्हें भी सबके सामने लाने का प्रयास किया जा रहा है। उम्मीद यही है कि यह पत्रिका हिंदी की दशा को नई और बेहतर दिशा देने में कामयाब हो।
यहाँ से पहला उपन्यास ‘इण्डियापा’ लिखा गया है जिसे विनोद दूबे ने बनारस को केंद्र में रखकर लिखा है। उन्हीं का दूसरा उपन्यास ‘ओक्का-बोक्का’ राजकमल प्रकाशन से २०२४ में प्रकाशित हुआ है जिसकी पृष्ठभूमि सिंगापुर है। गौरव उपाध्याय की ‘ज़िन्दगी अनलिमिटेड’ और मोस्ट वांटेड ज़िन्दगी’ नामक प्रेरणादाई पुस्तकों ने बड़ा पाठक वर्ग तैयार किया है। सन 2023 तक यहाँ से 12 कविता-संग्रह भी प्रकाशित हो चुके हैं जिनमें से कुछ नाम- देखो मैं गाँव था, मेरी अनुभूतियाँ, एहसासों की खुशबू , मृगनयना, मंथन, हाफ फ़िल्टर कॉफ़ी, जहाज़ी, बेतरतीब, वीकेंड वाली कविता, माहीमीत, रूह्साफ़िर, सन्देश प्रेम का, सिंगापुर की चयनित रचनाएँ आदि। डॉ संध्या सिंह ने सिंगापुर में उत्तर भारतीय समुदाय को केंद्र में रखकर “सिंगापुर में भारत (विशेष सन्दर्भ उत्तर भारत)” नमक पुस्तक भी लिखी है जिसका प्रकाशन केन्द्रीय हिंदी संस्थान द्वारा किया गया है।
प्रथम अंतरराष्ट्रीय क्षेत्रीय हिंदी सम्मलेन सिंगापुर
सिंगापुर में भारतीय उच्चायोग तथा नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर द्वारा आयोजित प्रथम अंतरराष्ट्रीय क्षेत्रीय हिंदी सम्मेलन 13-15 सितंबर 2024 को संपन्न हुआ। इस सम्मलेन में हिंदी सोसाइटी ऑफ़ सिंगापुर, डीएवी हिंदी स्कूल सिंगापुर, संगम सिंगापुर हिंदी संस्था और सिंगापुर संगम हिंदी पत्रिका का भरपूर सहयोग रहा। इस सम्मेलन में दक्षिण पूर्व एशिया में हिंदी, प्रवासी साहित्य और दक्षिण पूर्व एशिया, एशियाई हिंदी संस्थानों के बीच सहयोग, मीडिया और हिंदी, हिंदी शिक्षण में कृत्रिम मेधा, हिंदी शिक्षण की अधुनातन प्रविधियाँ, द्वितीय भाषा विद्यार्थियों के लिए हिंदी व्याकरण, अनुवाद, अध्यापक प्रशिक्षण और नवीनीकरण कार्यक्रम, व्यापार भाषा के रूप में हिंदी आदि महत्वपूर्ण विषयों पर सारगर्भित चर्चा हुई।
सम्मेलन की अध्यक्ष नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर (NUS) के भाषा अध्ययन केंद्र में हिंदी और तमिल भाषा विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. संध्या सिंह थीं। सम्मेलन में सिंगापुर के अलावा वियतनाम, मलेशिया, थाईलैंड, मॉरीशस, ब्रिटेन और भारत के विद्वानों, अध्यापकों, और हिंदी कर्मियों ने भाग लिया। इनमें प्रमुख रूप से प्रमुख शिक्षाविद, साहित्यकार, और भाषाविद प्रो. राजेश कुमार, डॉ. माधुरी रामधारी, प्रो. सुरेंद्र दुबे, प्रो. वी.रा. जगन्नाथन, दिव्या माथुर, प्रो. संतोष चौबे, अनिल जोशी, डॉ. पद्मा सवांगश्री, डॉ. जवाहर कर्नावट, डॉ. जमुना बीनी, शशशिरि सुवर्णदिव्य, प्रो. शीतांशु कुमार, कित्तिपोंग बून्कर्ड, डॉ. अरविंद चतुर्वेदी, यामिनी जोशी , साधना सक्सेना आदि थे।
सम्मेलन की प्रमुख उपलब्धि अगला विश्व हिंदी सम्मेलन सिंगापुर में आयोजित करने के प्रस्ताव को भेजने की स्वीकृति था। भारतीय उच्चायुक्त महोदय और संयुक्त सचिव द्वारा इस प्रस्ताव को विदेश मंत्रालय भेजने की बात पर सहमति जताई गई। इसके अलावा सम्मेलन में शिक्षकों के लिए मार्गदर्शिका तैयार करने, हिंदी द्वितीय भाषा के लिए अलग व्याकरण पुस्तक की रचना, हिंदी शिक्षण में कृत्रिम मेधा के उपयोग के लिए मार्गदर्शिका तैयार करने, पाठ्यक्रम को प्रायोगिक बनाने और रोज़गार से जोड़ने, सभी मीडिया माध्यमों में सीखने की सामग्री बड़ी संख्या में उपलब्ध करवाने, हिंदी के व्यापारिक रूप को विकसित करने, भारतीय भाषा महोत्सव का आयोजन वार्षिक आधार पर करने, और दक्षिण पूर्व एशिया हिंदी प्रवासी साहित्यकार संस्था का गठन करने से संबंधित प्रस्ताव पारित किए गए।
सिंगापुर में हिंदी समझने वालों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है और आज सार्वजनिक परिवहन में, बाज़ार में लगभग हर जगह कहीं न कहीं, किसी न किसी के मुख से हिंदी सुनाई पड़ ही जा रही है। एक समय था जब भारत मतलब तमिल भाषा समझना सिंगापुर में आम था लेकिन आज यहाँ का समाज इस बात से अवगत है कि भारत यानी हिंदी बोलने वाला बड़ा वर्ग।
अंतत: हम यह कह सकते हैं कि आज जब हम विश्व में भारतीय डायस्पोरा की तरफ देखते हैं तो हमें समग्र विश्व भारतीयों के किसी न किसी रूप में अस्तित्व से प्रस्फुटित होता हुआ दिखाई देता है। और उनके इस अस्तित्व की एक झलक हिंदी भाषा के प्रचार के रूप में भी दिखाई देती है क्योंकि भारतीय अपने साथ सभ्यता, संस्कृति, भाषा, साहित्य आदि की मंजूषा भी लिए जाते हैं। सिंगापुर में हिंदी के विभिन्न रूपों पर कार्य हो रहा है; कहीं तेजी से तो कहीं थोड़ा ठहरकर। भारत से बाहर हिंदी सिर्फ एक भाषा नहीं है बल्कि अपने साथ पूरी संस्कृति को समेटे हुए है। यह ऐसी संस्कृति है जिसने भारत से बाहर भी भारत को जीवित रखा है।
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