स्वीडिश एकेडमी ने साहित्य के नोबेल प्राइज 2024 की घोषणा कर दी है, और इस वर्ष यह प्रतिष्ठित पुरस्कार साउथ कोरिया की प्रतिभाशाली लेखिका हान कांग को दिया गया है। यह पुरस्कार उनके गहन काव्यात्मक गद्य के लिए दिया गया जो ऐतिहासिक आघातों का सामना करता है और मानव जीवन की नाजुकता को उजागर करता है।

हान कांग का साहित्यिक सफर :

हान कांग ने 1993 में अपने करियर की शुरुआत कविताएं लिखने के साथ की थी। उनकी कविताओं में जीवन की गहराई और मानवीय भावनाओं का अद्वितीय चित्रण था। बाद में, 1995 में उन्होंने कहानियां लिखना शुरू कर दिया, जिसमें उनकी विशिष्ट शैली और गहराई ने पाठकों को आकर्षित किया।

नोबल पुरस्कार विजेता कोरियाई लेखिका हान कांग की कविताओं का हिन्दी अनुवाद :

अनुवादक- अनीता वर्मा

प्रकाश का काला (पिच) पुंज

उस दिन उई-डोंग में
बर्फ़ गिर रही थी
और मेरा शरीर, मेरी आत्मा का साथी
हर गिरते आँसू के साथ काँप रहा था।

अपने रास्ते पर चलो।
क्या तुम झिझक रहे हो?
तुम क्या सपना देख रहे हो,
इस तरह मंडरा रहे हो?

दो मंजिला घर फूलों की तरह जगमगा रहा था
जिसके अंदर रहकर मैंने पीड़ा सीखी
और खुशी भी
एक ऐसी भूमि की ओर
जो अभी तक अछूती थी
मैंने मूर्खतापूर्वक हाथ बढ़ाया।

अपने रास्ते पर चलो।
तुम क्या सपना देख रहे हो? चलते रहो।

स्ट्रीट लैंप पर बनने वाली यादों की ओर,
मैं चलती गई
वहाँ मैंने ऊपर देखा,
लाइटशेड के अंदर
एक काला घर और काला आसमान
उस अंधेरे के निवासी पक्षी
अपने शरीर का भार उतारकर उड़ते हुए
इस तरह उड़ने के लिए मुझे मरना पड़ेगा कितनी बार
कोई मेरा हाथ भी तो नहीं थाम सकता था।

कौन सा सपना इतना प्यारा है?
कौन सी याद इतनी चमकती है?

माँ की उँगलियों की नोकों की तरह ओले,
मेरी बिखरी हुई भौंहों से होते हुए,
जमे हुए गालों को छूते हुए
और फिर से उसी जगह को सहलाते हुए,
जल्दी करो और अपने रास्ते पर चलो।

*****

आईने के माध्यम से सर्दी

देखो लौ पुतली को
नीली दिल के आकार की आँख को
सबसे गर्म और चमकीली चीज़
जो इसे घेरे हुए है नारंगी आंतरिक लौ
सबसे ज़्यादा टिमटिमाती
जो फिर से घेरे हुए है
आधी पारदर्शी बाहरी लौ
कल सुबह, जिस सुबह
मैं सबसे दूर के शहर के लिए निकलूँगी
आज सुबह लौ की नीली आँख
मेरी आँखों के आगे झाँकती है।

आईने के अंदर सर्दी इंतज़ार कर रही है
एक ठंडी जगह
एक बहुत ठंडी जगह
बहुत ठंड है
वस्तुएँ काँप नहीं सकतीं
तुम्हारा (एक बार जम चुका) चेहरा
बिखर नहीं सकता
मैं अपना हाथ नहीं बढ़ाती
तुम भी
अपना हाथ नहीं बढ़ाना चाहते
एक ठंडी जगह
एक ऐसी जगह जो ठंडी रहती है
बहुत ठंड है
पुतलियाँ हिल नहीं सकतीं
पलकें
बंद करना नहीं जानतीं (एक साथ)
आईने के अंदर
सर्दी इंतज़ार कर रही है और
आईने के अंदर
मैं तुम्हारी आँखों से बच नहीं सकती
और
तुम नहीं चाहते
अपना हाथ बढ़ाना नहीं चाहते

*****

मूल कविता : हान कांग

अनुवाद : अनीता वर्मा

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