राह में जीवन
पानी सी आकृति मेरी
पानी में घुल रही!
बुलबुले सा जीवन मेरा
देखो कैसे उड़ रहा!
वाष्पित होती साँसे मेरी
कहो कहाँ से आ रहीं?
सीमित सी दृष्टि मेरी
अपरिमित स्वप्न बुन रही!
चंद वर्षों की कल्पना नहीं
यह सृष्टि!
तुम, मैं, वह, यह…
सभी तो
अनंत की राह तकते
साथ चलते हैं
सांस दर सांस ढलते हैं।
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-पूजा अनिल