
सब ठीक है, माँ…
-यूरी बोत्वींकिन
मुझे नहीं पता मैं अच्छा बेटा हूँ या बुरा… अपनी माँ से झूठ बोलना यदि बुराई है तो बुरा ही हूँ। बहुत झूठ बोलता हूँ माँ से…
मेरी माँ बहुत भावुक सी हैं। मैं भी इसमें उन्हीं पर गया हूँ। इसीलिए उनकी चिंता, उनका दुख, उनका डर… यह सब नहीं देखा जाता है मुझसे… बचपन से ही बहुत अशांति झेली थी उन्होंने मेरे साथ। अब प्रतिदिन रात के समय फ़ोन पर बात होती है तो हाल पूछने पर यही बोलता हूँ कि “सब ठीक है, माँ…” इससे कुछ अलग सुनने की आशा भी नहीं होती है उनको अब तो, कभी-कभी संदेह करती है कि नहीं, सच बताओ… सच ही बता रहा हूँ, माँ। आपका मन शांत और प्रसन्न रहता है तो सब ठीक ही लगता है, जैसा भी हो…
भारत में रहते समय एक हादसे में मैंने पैर तोड़ लिया था, सर्जरी करवानी पड़ी थी, फिर दो महीने प्लास्टर चढ़ा रहा था। घर पर मेरे जो ई-मेल जा रहे थे उस समय उनमें तो मेरी काल्पनिक यात्राओं और मौज-मस्ती के वर्णन थे। सब ठीक है, माँ..!.
यह पागल हृदय प्यार-व्यार के चक्कर में कितनी बार टूटकर जुड़ा था, कितनी निराशा, अवसाद, ड्रग्स-दारू के भूत आकर गए थे… माँ पर यदि कुछ गुज़रने दिया था तो वह बस अज्ञात की चिंता थी। वह भी कोई छोटी चिंता नहीं होती है पर उसका तो मैं कर भी क्या सकता था…!
ऐसा भी हुआ था एक बार कि दुनिया से तंग आकर एक सप्ताह के लिए पहाड़ों में रहने गया था अकेला। माँ को अवश्य यह बताकर गया था कि दोस्तों के साथ हाइकिंग पर जा रहा हूँ…
माता-पिता गाँव में रहते हैं, रूस का आक्रमण उन तक नहीं पहुँचा है, ईश्वर की कृपा है… मेरा नगर तो उन स्थानों में है जहाँ सबसे पहले बमबारी आरंभ हुई थी। पहले ही दिनों में मेरे मकान पर भी बम गिरा था… तब भी सबसे बड़ी चिंता यही थी कि काश माँ समाचार नहीं देखतीं… फ़ोन पर जितनी बात हो पाती थी, उसमें जितना हो सके स्थिति को कम बुरी दर्शाने का प्रयास करता रहा था…!
बीच में स्वास्थ्य को लेकर कुछ समस्याएँ खड़ी हुई थीं तो फिर दो काफ़ी गंभीर सर्जरियाँ करवानी पड़ी थीं… दोनों के बारे में माँ को तब बताया था जब सफलतापूर्वक निपटकर अस्पताल से घर लौट चुका था। झटका तो हुआ था, दुख हुआ था, नाराज़गी हुई थी उनको मेरे नहीं बताने से। पर मुझें कोई पछतावा नहीं हुआ था। माँ प्रसन्न भी तो थीं कि सब ठीक हो चुका है, वह भी बिना फालतू में चिंता किए…!
इस बार तो लगा था कि हद ही पार हो गई थी… गाँव से घर लौट रहा था अपनी गाड़ी से। उधर ही मेरे एक अच्छे मित्र की पत्नी भी थी उस समय अपने मायके, तो मेरे मित्र ने मुझसे अनुरोध किया था कि मैं उसकी पत्नी को भी साथ लेकर आऊँ, उनका घर मेरे घर के निकट ही जो है। इस जोड़े से बहुत पुरानी और पक्की मित्रता है मेरी, उनको दो बार भारत भी घुमा चुका हूँ। तो वह महिला बैठ गई थी गाड़ी में, रास्ते में संसार भर की बातें होने लगी थीं…। ऊपरवाले का आभार कि कोई नहीं मरा था हाई-वे पर उस दुर्घटना में… बुरी तरह गाड़ी ठोंकी थी मैंने दूसरी दो गाड़ियों से… मेरी सवारी का सिर उसके बग़ल की खिड़की के शीशे से लग गया था, शीशा टूटा, रक्त बहा… सीने की हड्डी भी टूटी थी उसकी… संयोग से मुझे खरोंच तक नहीं आई थी… एम्बुलेंस उस महिला को ले गई थी, पुलिस आकर कार्यवाही कर रही थी, सब परेशान और उतावले हो रहे थे, ट्रैफ़िक जैम बन गया था… भूल मेरी ही थी, मेरे कारण एक घायल भी थी तो मेरे जेल जाने की भी पूरी संभावना दिख रही थी… उस सारे कोलाहल और तनाव के बीच मैंने घड़ी देखी थी। मेरे घर पहुँच जाने का समय हो रहा था, माँ चिंतित होकर फ़ोन की प्रतीक्षा कर रही होंगी… उस पूरे दृश्य से थोड़ी सी दूरी पर जाकर फ़ोन लगाया। “सब ठीक है, माँ… पहुँच गया हूँ…” आवाज़ में उतनी शांति और आत्मविश्वास पता नहीं कहाँ से आए थे, कुछ संदेह नहीं हुआ था उनको…!
अगले कई दिन तो किसी बुरे सपने जैसे थे। मेरे मित्र की पत्नी की स्थिति स्थिर हो गई थी, कुछ अधिक गंभीर तो नहीं था, वह और उसका पति दोनों बिल्कुल नहीं चाहते थे कि मुझपर कोई आरोप लगे, कोई शिकायत दर्ज नहीं की थी उन्होंने… जानबूझकर तो कुछ नहीं किया था मैंने… पुलिसवालों को भी कैसे- तैसे मना लिया था रिश्वत देकर… बच गया था… अंदर से कितना काँपते हुए गुज़रा था उस सबसे, भगवान ही जानता है… माँ को तो बस उतना ही जानना था कि मेरी गाड़ी “थोड़ी खराब हो गई है पता नहीं क्यों, कुछ मरम्मत करवानी होगी…” वह “थोड़ी” वाली मरम्मत चार महीनों तक चली थी…
पता नहीं जीवन में और क्या-क्या होना है, बस माँ की शाँति और प्रसन्नता को बनाए रखने का मेरा दृढ़ संकल्प है। उनको तो यह भी पता नहीं है कि एक आम शांतिप्रिय शिक्षक होने के बावजूद कुछ जटिल से, अटपटे से कारणों से मेरा नाम भी यूक्रेन के कुछ गुप्त सैनिक अफ़सरों के नामों के साथ-साथ रूसियों की एक विशेष हिट-लिस्ट में डाला जा चुका है… और यदि अचानक पता चला कि कल आ रहे हैं गोली मारने तो आज फ़ोन करके यही बोलूँगा प्यार से – “सब ठीक है, माँ…!”
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