
ब्रजराज किशोर कश्यप की कविताएँ
1. मानव और गणित
मानव ने जब गणना सीखी वह हर्षाया
बड़े चाव से उसने जोड़ा और घटाया
योग और ऋण का कार्य उसे अधिक न भाया
आगे बढ़कर उसने सीखी गुणन पद्धति
फिर वह कुछ संतुष्ट हुआ पाकर नव शक्ति
जोड़ गुणा के प्रयोग से उसने हल लीं कर
जटिल समस्याएं जो पहले थी दुर्गमतर
गुणा योग से वह सीखा समुदाय बनाना
जन संगठन, समाज, देश, और राष्ट्र बनाना
फिर उसकी जिज्ञासा आगे आई बढ़कर
कठिन परिश्रम लीन हुआ वह होकर तत्पर
और एक दिन सीख गया वह रीति कठिनतर
जिसका नाम विभाजन, विख्यात अवनि पर
उसने सोचा, मैं सब कुछ कर सकता हूं
योग गुणा ही नहीं, विभाजन कर सकता हूं
किंतु यहीं से पतन हुआ उसका आरंभ
विद्या जनित विनय तज, उसने पाया दंभ
रोचक सबसे अधिक विभाजन उसको भाया
करता रहा विभाजन कभी नहीं अलसाया
सभी चराचर निधियों का, धन-धन्य धरा का
देश काल का, जन्मदायिनी वसुंधरा का
पृथ्वी पर सब कुछ विभक्त उसने कर डाला
फिर ईश्वर के बंटवारे का कार्य संभाला
ईश्वर के बहुरूप रचाये उसने प्यारे
उनके लिए घड़े देवालय न्यारे न्यारे
अभी भी वह संतुष्ट नहीं था, अब क्या होगा
बोला अब वह, पुनर्विभाजन करना होगा
हो प्रसन्न बोला अमोघ अस्त्र यही है
पुनर्विभाजन का कोई भी अंत नहीं है
समुदायों को बांटो, तोड़ो और घटाओ
पुनर्विभाजन जब तक चाहे करते जाओ
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2. मुझे क्या मिला ?
कभी-कभी सोचा करता हूं मुझे क्या मिला ?
30 वर्ष तक, तीन देश में अध्यापन कर
शोध कार्य में शिक्षण में भी नाम कमाया
सतत परिश्रम करने पर भी, मुझे क्या मिला
तभी सोचता हूं इस जग से क्या मैं मांगू
ससम्मान जीवित रहना ही यहाँ बहुत है
बड़े-बड़े जो महापुरुष थे, हमसे बढ़कर
जिनमें से सुकरात व ईसा, गांधी जैसे
माननीय थे, श्रेष्ठ पुरुष थे उन्हें क्या मिला?
उन्हें मिला विष का प्याला, फाँसी या गोली
यही सोचकर शांत हो गई मेरी लिप्सा
कहता है मन यह मत सोचो मुझे क्या मिला
करके निज कर्तव्य, तजो बदले की इच्छा
सोचो हमको जो मिल पाया यही बहुत है
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3. जब मैं यहाँ नहीं होऊँगा
जब मैं यहाँ नहीं होऊँगा
शायद मुझको याद करोगे
कहां गया मैं? कब आया था?
क्या करता था? बात करोगे
आया था बाहर से जैसे
जाना वैसे बाहर ही था
आते ही जाना निश्चित था
मैं लाया था विजिटर वीज़ा
भूला था कुछ काल यहाँ मैं
यह विदेश है, जाना होगा
आया था जो देश छोड़कर,
वहीं लौट कर जाना होगा
तभी सोचता हूँ इसमें कुछ
अचरज देता नहीं दिखाई
यह सारा जग ही विदेश है
और सभी यात्री अस्थाई
किंचित काल यहां रहना है
जाना किंतु अवश्यम्भावी
पहले भी हम यहाँ नहीं थे
और अंत में यहाँ ना होंगे
समझ जायें यह तथ्य अगर हम
एक स्थान पर मुग्ध न होंगे
यहाँ नहीं कोई भी दुविधा
जाना तो सबका निश्चित है
सब लाए हैं विजिटर वीज़ा
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