
जब कभी जाऊँगा पृथ्वी से
सोचता हूँ
जब कभी जाऊँगा पृथ्वी से
क्या ले जाऊँगा अपने साथ
सफलताएं छूट जाएंगी यहीं
देह के मैल की तरह
यदि उन्हें मान लें इत्र
तो भी वे नहीं जएंगी मेरे साथ
जिस क्षण मैं निकलूँगा धरा-धाम से
वे बिना पदचाप समा जाएंगी किसी और की रुमाल में
इन दिनों पद और पद से जुड़ी प्रतिष्ठा पर कोई भी चर्चा
मन बहलाने का बहाना भर है
अक्सर देखा गया है
जिस दिन जाता है पद
उसी दिन उसकी परछाईं की तरह चली जाती है प्रतिष्ठा
जो इसे अपना माने बैठे रहते हैं मुगालते में
वे अपने परिवार पर कहर की तरह गिरते हैं
हालांकि अपवाद भी होते ही हैं हर नियम के
कुछ ऐसे भी हुए ही हैं
जिनकी प्रतिष्ठा नहीं गई पद के साथ
तो जिस दिन निकलूँगा न लौटकर आने के लिए
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-जितेन्द्र श्रीवास्तव