
भारतीय भाषाएँ : बदलता परिदृश्य
भाषा सृष्टि का वरदान है, प्रकृति का अभयदान है। हम जन्मजात एक समान स्वर लेकर आते हैं अतएव हमें दुनिया की सभी भाषाओं का सम्मान करना चाहिए। भाषा, भाष्य बनकर भविष्य बनाती है और सार्थक जीवन यापन कराती है। भारत में ससम्मान, संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाएँ हैं। भारतीय भाषाओं की अस्मिता अक्षुण्ण रखने और महाकवि सुब्रमणियम भारती के जन्म दिन के मद्देनजर, वर्ष 2022 से 11 दिसम्बर को “भारतीय भाषा दिवस, के रूप में मनाया जाता है। इस आलोक में वैश्विक हिन्दी परिवार की ओर से रविवारीय कार्यक्रम में “भारतीय भाषाओं के वैश्विक परिदृश्य, पर व्याख्यान आयोजित हुआ।

इसकी अध्यक्षता करते हुए पंजाबी के मर्मज्ञ एवं दिल्ली विश्वविद्यालय में डीन प्रो॰ रवीन्द्र सिंह ने कहा कि हम भारत को भारतमाता कहते हैं। बेजोड़ भारतीयता में “मैं नहीं “हम ” का प्रयोग करते हैं, भावनाओं में बंधे होते हैं और परहित के साथ भाषा -संस्कृति के भी बहुत धनी हैं। अपनी भाषाओं की अक्षुण्णता के लिए हमें परिवार,संस्था और सरकार तीनों स्तरों पर अनवरत सत प्रयत्न करना चाहिए।
इस अवसर पर देश- विदेश से सैकड़ों विद्वान -विदुषी, शिक्षक-प्रशिक्षक शोधार्थी-विद्यार्थी और भाषा प्रेमी जुड़े थे।

आरंभ में भारत से डॉ॰ जयशंकर यादव ने सबकी वाक शक्ति को नमन करते हुए आत्मीयतापूर्वक स्वागत किया तथा आगामी 10 से 12 जनवरी 2025 में दिल्ली में आयोजित “अंतरराष्ट्रीय भारतीय भाषा सम्मेलन, की संक्षिप्त जानकारी दी।
मंगलुरु विश्वविद्यालय के प्रो॰ एस॰ए॰मंजूनाथ ने संचालन का बखूबी दायित्व निर्वहन किया और संक्षिप्त परिचय के साथ वक्ताओं को आमंत्रित किया।

मुख्य अतिथि के रूप में भारतीय भाषा मंच के मार्गदर्शक और मलयालम मर्मज्ञ श्री ए॰ विनोद ने कहा कि हमें अपनी एकात्मकता अक्षुण्ण रखनी चाहिए। भारतीय भाषाओं में विविधता में अंतर्निहित शक्ति को पहचानना चाहिए। भाषाई आंदोलन से नुकसान भी होता है। आगामी महाकुंभ प्रयागराज में भारतीयता के विराट रूप के दर्शन होंगे।

विशिष्ट अतिथि के रूप में अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद के महासचिव एवं दीर्घानुभवी श्री श्याम परांडे जी ने कहा कि दुनियाँ में सबसे बड़ा, सचेत और सक्रिय डायस्पोरा भारतीय डायस्पोरा ही है। अनेक देशों में भारतीय अपनी भाषा – संस्कृति सँजोये हुए हैं तथा आपसी समन्वय सहित भाषावार संगठन भी सेवारत हैं। आक्रांताओं और अंग्रेजों ने हमें भाषाई आधार पर भी बाँटकर कमजोर किया। अब मेडिकल, इंजीनियरिंग और कानून के क्षेत्र में भारतीय भाषाओं में औपचारिक शिक्षण शुरू हो गया है। हमें अपने घर में भारतीय भाषाओं का प्रयोग करना चाहिए। आइये, हम सब भारतीयता के एक स्वर में “वसुधेव कुटुंबकम, को चरितार्थ करें।
लंदन से जुड़ीं भाषा -संस्कृतिकर्मी डॉ॰ रागसुधा विंजमूरी ने तेलुगू के सुप्रसिद्ध कवि सी॰ नारायण रेड्डी की कविता का भावपूर्ण वाचन किया जिसमें अकेलेपन में व्यष्टि को समष्टि में बदलने की प्रक्रिया निहित थी।

मलयालम भाषा की प्रो॰ राजेश्वरी ने कविता में भेदभाव से ऊपर उठकर एक छोटी बच्ची द्वारा, अपनी दीन हींन दशा जैसी गुड़िया खरीदने की इच्छा को पूरा करने हेतु खिलौना चयन को धार दी।
प्रख्यात भाषा शास्त्री प्रो॰ वी॰ आर॰ जगन्नाथन ने अपने हिन्दी -तमिल तुलनात्मक शोध अध्ययन का जिक्र किया और भारतीय भाषा आयोग गठित करने तथा मातृभाषाओं की अक्षुण्णता हेतु पुरजोर अपील की।
कनाडा से जुड़े गुजराती के विशेषज्ञ एवं सिने कलाकार और निर्देशक श्री नेमेष नानावटी ने प्रभावोत्पादक हाव भाव से मातृभाषा की वकालत की और मातृभाषा में यादाश्त के महत्व को रेखांकित करते हुए लघु नाट्य रूपान्तरण प्रस्तुत किया।
प्रो॰एस॰ए॰मंजूनाथ ने महाकवि कुवेम्पु द्वारा रचित एकात्म भाव लिए कर्नाटक राज्य गीत “नाड गीते, “ जय हे कर्नाटक माते, सुनाया।
जापान से जुड़े पद्मश्री से सम्मानित एवं बहुभाषाविद, जापानी, हिन्दी, संस्कृत,बंगाली ,पंजाबी और अङ्ग्रेज़ी आदि के ज्ञाता प्रो॰तोमियो मिजोकामि ने इस आयोजन पर हर्ष प्रकट किया और भारतीय भाषाओं में समानता को सोदाहरण रेखांकित करते हुए अनेकता में एकता व भारतीयता पर प्रकाश डाला।

सान्निध्यप्रदाता एवं लेखक श्री अनिल जोशी ने हिन्दी बनाम भारतीय भाषाओं के संबंध में गढ़ी गई भ्रांतियों की ओर सजग करते हुए भाषा की दीवार हटाने की आवश्यकता बताई। उन्होने भारतीय भाषा परिवार ,सांस्कृतिक एकता और भारतीय भाषाओं की अंतर्निहित शक्ति का एहसास कराया। श्री जोशी जी ने कहा कि भारत सरकार ने पाली और प्राकृत सहित अनेक भाषाओं को “शास्त्रीय भाषा, का दर्जा दिया है और राजभाषा हीरक जयंती वर्ष में राजभाषा विभाग में “भारतीय भाषा अनुभाग ,स्थापित किया है। आई आई टी जोधपुर में बी॰टेक॰ हिन्दी माध्यम में 120 विद्यार्थियों को उत्साहवर्धक प्रवेश मिला है। तमिल ,बंगला और भोजपुरी आदि अनेक भाषाओं को विश्व के अनेक देशों में प्रमुख स्थान प्राप्त है जो युगीन परिप्रेक्ष्य में समृद्धि की ओर अग्रसर हैं।
समूचा कार्यक्रम विश्व हिन्दी सचिवालय, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद, केंद्रीय हिन्दी संस्थान,वातायन और भारतीय भाषा मंच के सहयोग से वैश्विक हिन्दी परिवार के अध्यक्ष श्री अनिल जोशी के मार्गदर्शन में आयोजित हुआ।
कार्यक्रम प्रमुख की भूमिका का बखूबी निर्वहन ब्रिटेन की सुप्रसिद्ध प्रवासी साहित्यकार सुश्री दिव्या माथुर द्वारा किया गया। भारत से साहित्यकार डॉ॰ जवाहर कर्नावट द्वारा प्रदत्त अनुभवजन्य वैश्विक जानकारी और कृतज्ञता ज्ञापन के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। चम्बे की चिड़ियों -सी एक डाल पर रहने वाली भारतीय भाषाओं का यह विशेष कार्यक्रम “वैश्विक हिन्दी परिवार, शीर्षक के अंतर्गत “यू ट्यूब ,पर उपलब्ध है।
रिपोर्ट लेखन –डॉ॰ जयशंकर यादव