सुखद सुहाना भोर


(शृंगार छंद)

हुआ अब सुखद सुहाना भोर।
अरुण झांके प्राची के छोर॥
यामिनी भाग गयी निज धाम।
प्रात किरणें निकली अविराम॥

विहग नित कलरव में हैं मग्न।
दृश्य सुन्दर मनभावन लग्न॥
भृंग अब डोल रहा हर पात।
तितलियाँ उड़ती नित्य प्रभात॥

मोर उपवन में करता नृत्य।
चलो अब करलें पावन कृत्य॥
राम का नाम भजें हम प्रात।
करें सद्कर्म सदा दिनरात॥

नदी अपनी धुन में गतिमान।
पेड़ झूमें नित सीना तान॥
कोकिला मधुर सुनाती गान।
पखेरू भरने लगे उड़ान॥

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-डॉ० अर्जुन गुप्ता ‘गुंजन’

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