शब्दों की वेणी


(दोहावली)

शब्दों की वेणी सजा, रचें नव्य प्रतिमान।
गद्य पद्य हो या ग़ज़ल, सुन्दर बने सुजान॥

नव्य नवल नूतन प्रखर, रचना रचें महान।
ताल छंद सुर से सजी, जाने सकल जहान॥

रचें वंदना प्रार्थना, भजन आरती गीत।
अलंकार रस से सनी, पावन पुण्य पुनीत॥

मनमोहक मादक मधुर, सुन्दर सजे सुरीत।
जस रवि की किरणें सजें, प्रात: काल सुगीत॥

करें प्रकृति चित्रण मधुर, बोल उठे हरच शब्द।
नील गगन खग पुष्प तरु, मुखरित हो तब अब्द॥

देशभक्ति शृंगार रस, ओजपूर्ण हो मान।
सद्गुण अरु सन्मार्ग का, नित्य करें गुणगान॥

भक्ति और आध्यात्म पर, रचना रचें विशेष।
सदाचार सत्कर्म नित, चित्रित हों उन्मेष॥

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-डॉ० अर्जुन गुप्ता ‘गुंजन’

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