
ब्रिटेन में हिंदी शिक्षण एवं प्रशिक्षण – एक संक्षिप्त अवलोकन
– डॉ. वंदना मुकेश
भाषा, भाव और विचारों की अभिव्यक्ति का साधन है। किसी भी भाषा को सीखना, सिखाना या पढ़ाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। देश में हो या विदेश में, यह चुनौती तब दोगुनी हो जाती है जब उस भाषा के सीखने पर उसे व्यवहार में लाने के अवसर न के बराबर हों। हम सभी जानते हैं कि भाषा मात्र संवाद या संप्रेषण का माध्यम नहीं अपितु भाषा उस समाज की, उस संस्कृति की संवाहक होती है जिसमें उसका व्यवहार होता है। अत: परिवेश से कट कर भाषा शिक्षण निश्चित ही एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। विश्व में हिंदी का शिक्षण लगभग 160 देशों में हो रहा है। अन्य देशों की भाँति इंग्लैण्ड में भी हिंदी शिक्षण का कार्य चुनौतियों से भरा है। ब्रिटेन में हिंदी शिक्षण की वर्तमान स्थिति देखने के पूर्व यहाँ पर हिंदी शिक्षण के संक्षिप्त इतिहास पर एक विहंगम दृष्टि डालना समुचित है।
ब्रिटेन में हिंदी शिक्षण का इतिहास ईस्ट इंडिया कंपनी के भारत में जड़ें जमाने के साथ आरंभ हुआ। अधिकारियों, कर्मचारियों और सैनिकों की औपनिवेशिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए विश्वविद्यालय में पाठ्यक्रम बनाया गया। इस बात से यह स्पष्ट होता है कि यह पाठ्यक्रम व्यस्कों के लिये ही था। जॉन बॉर्थविक गिलक्रिस्ट, एक स्कॉटिश भाषाविद्, ने इंग्लैंड में हिंदी और हिंदुस्तानी के प्रारंभिक अध्ययन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 18वीं और 19वीं सदी के अंत में उनके द्वारा हिंदी व्याकरण और शब्दकोश का प्रकाशन किया गया, जिससे ब्रिटिश अधिकारियों के लिए हिंदी का अध्ययन औपचारिक रूप से स्थापित हुआ।1806 में हेलीबरी कॉलेज, हर्टफोर्डशायर में हिंदी का शिक्षण इन अधिकारियों के लिए होता था। इसी का विस्तार सोआस (SOAS-स्कूल ऑफ़ ओरिएंटल एंड अफ़्रीकन स्टडीज़) लंदन विश्वविद्यालय में 1941 में शैक्षणिक भाषा के रूप में हुआ।
प्रथमतः ब्रिटेन में हिंदी-अध्येताओं और उनकी आवश्यकताओं पर एक दृष्टि डाल सकते हैं
ब्रिटेन के हिंदी अध्येता
- बच्चे, 2- वयस्क
बच्चों के हिंदी सीखने के कारणों में प्रमुख हैं-
1- रिश्तेदारों के साथ संवाद करने के लिए ।
2- अल्पकालीन प्रवास पर आये नौकरीपेशा भारतीयों के बच्चे जिनको भारत में जाकर अपनी शिक्षा पूरी करनी है तथा,
3. माता- पिता में से एक, या दादा-दादी अथवा नाना-नानी हिंदी भाषी होना। (यह अंग्रेज़ अथवा अन्य भारतीय भाषा-भाषी हो सकते हैं। )
इसके विपरीत वयस्कों में हिंदी सीखने के कारण भिन्न हैं। –
1- वे लोग, जो समझते हैं पर बोलने में झिझकते हैं
2- वे लोग, जो शौक, पर्यटन एवं मनोरंजन के कारण हिंदी सीखना चाहते हैं
3. वे लोग, जिन्हें नौकरी के कारण भारत जाना पड़ता है, या पड़ सकता है।
4. वे लोग, जो भारतीय संस्कृति एवं साहित्य के अध्य्यन की इच्छा के कारण विश्वविद्यालयीन स्तर पर ऐच्छिक विषय के रूप में हिंदी का अध्ययन करते
हम देखते हैं कि, सभी अध्येताओं के हिंदी सीखने की प्रेरणा और कारण भिन्न- भिन्न हैं। अतः पढ़ाने के तरीके और स्थान भी भिन्न-भिन्न हैं।
आगे हम यह रेखांकित करेंगे कि इंग्लैंड में हिंदी शिक्षण कहाँ हो रहा है? हिंदी कौन सिखा रहा है? हिंदी शिक्षण की विधि क्या है? अध्य्यन की सुविधा के लिए इन्हें भी वर्गीकृत किया जा सकता है। इनके अतंर्गत भी कई उपवर्ग हैं जिनका उल्लेख नीचे किया गया है।
- ब्रिटेन में हिंदी का औपचारिक शिक्षण
- विद्यालय
- स्वायत्त स्वयंसेवी शैक्षणिक संस्थान
- विद्यालय
2.1.1.1 कला निकेतन हिंदी स्कूल, नॉटिंघम
2.1.1.2 यूके हिंदी समिति, लंदन
- विश्वविद्यालय
2.2.1 सोआस( स्कूल ऑफ ओरिएंटल एवं अफ्रीकन स्टडीज़) लंदन
2.2.2 केंब्रिज विश्वविद्यालय
2.2.3 ऑक्सफर्ड विश्वविद्यालय
2.2.4 यॉर्क विश्वविद्यालय
- ब्रिटेन में अनौपचारिक रूप से हिंदी-शिक्षण
3.1 मंदिर एवं सामुदायिक केंद्र
3.2 घरों में हिंदी शिक्षण
3.3 अन्य व्यवसायिक शिक्षण केंद्र
3.4 फिल्म एवं कलाओं द्वारा
3.5 साहित्यिक संस्थाओं द्वारा
2.1. विद्यालयीन स्तर पर – मेरी जानकारी के आधार पर वर्तमान में विद्यालयीन स्तर पर हिंदी का शिक्षण यू.के. में कहीं भी नहीं होता।
आठवें दशक में हिंदी को विद्यालयीन पाठ्यक्रम में लाने के लिये यॉर्क विश्वविद्यालय के प्रो. महेंद्र वर्मा का नाम उल्लेखनीय है। जब नौवें दशक में राष्ट्रीय पाठ्यक्रम बना तो 1988 में प्रो. महेंद्र वर्मा तथा कुछ अन्य लोगों के अथक प्रयासों से हिंदी तथा पाँच भारतीय भाषाओं में शालेय स्तर पर ‘ओ लेवल’ की परीक्षा शुरु हुई। इसके साथ ही लंदन के कुछ विद्यालयों में आधुनिक विदेशी भाषा विभाग के अंतर्गत हिंदी का पठन-पाठन आरंभ हुआ। किंतु छात्रों की संख्या बहुत कम होने से 1994 में ये कक्षाएँ एवं परीक्षाएँ, दोनों बंद हो गईं। प्रो. महेंद्र वर्मा निरंतर हिंदी को मुख्य धारा में लाने का प्रयास करते रहे। फिर उन्होंने केंब्रिज अंतर्राष्ट्रीय परीक्षा विभाग के लिए ‘द्वितीय भाषा के रूप में हिंदी’ का पाठ्यक्रम तैयार किया। उन्हीं के प्रयासों से हिंदी के छात्रों को ब्रिटेन में हिंदी परीक्षा देने की सुविधा उपलब्ध हुई। इसे (जी.सी.एस.ई.) अर्थात जनरल सर्टीफिकेट स्कूल एक्ज़ाम करते हैं, कुछ देशों में ‘ओ लेवल’ भी कहते हैं। इस पाठ्यक्रम के क्रियान्वयन हेतु उन्होंने 2005 में एक कार्यशाला मुंबई, भारत में की। जिसमें 30-40 शिक्षिकाओं को प्रशिक्षित किया गया। वे केंब्रिज अंतर्राष्ट्रीय परीक्षा विभाग में हिंदी के प्रधान सलाहकार और प्रश्नपत्र निर्माण समिति के प्रमुख सदस्य रहे। तत्पश्चात 2007 में केंब्रिज अंतर्राष्ट्रीय परीक्षा विभाग द्वारा संचालित (जीसीएसई) ‘हिंदी एज ए सेकंड लेंग्वेज की परीक्षा में विश्व भर से 300 विद्यार्थियों ने हिस्सा लिया। आज 3000 से अधिक परीक्षार्थी यह परीक्षा लगभग देते हैं जिसमें से अधिकांश भारत के उच्च स्तरीय प्रायवेट स्कूलों में होते हैं। यह प्रश्नपत्र परीक्षार्थियों भाषा की सर्वांगीण निपुणता पर केंद्रित है। इसमें-सुनना समझना बोलना पढ़ना तथा लिखना– इसका उद्देश्य सभी प्रकार भाषायी कौशल का संवर्धन करना है। इसकी कोई निर्धारित पुस्तक नहीं है। इसके प्रश्नपत्र वे लोग बनाते हैं, जो हिंदी भाषी हैं और किसी न किसी रूप में ब्रिटेन में मुख्य धारा शिक्षण से जुड़े रहे हैं अथवा उनके पास हिंदी शिक्षण का अनुभव है । लेखिका स्वयं भी केंब्रिज विश्वविद्यालय के अंतरराष्ट्रीय परीक्षा विभाग में हिंदी परीक्षा विभाग में अनेक भूमिकाओं में सक्रिय है।
किंतु विद्यालयीन स्तर पर हिंदी शिक्षण के संदर्भ में दो स्वायत्त स्वयंसेवी शैक्षणिक संस्थानों का उल्लेख आवश्यक है सप्ताहांत में होनेवाली कक्षाओं के माध्यम से हिंदी शिक्षण करवानेवाली दोनों संस्थाओं का अपना पाठ्यक्रम है और स्वेच्छा से पढ़ानेवाले शिक्षकों का दल हैं यथा-
2.1.1 नॉटिंघम का कला निकेतन हिंदी स्कूल– मेरी जानकारी में नॉटिंघम का कला निकेतन हिंदी स्कूल एकमात्र ऐसा हिंदी प्रशिक्षण केंद्र है, जहाँ पिछले लगभग 40 वर्षों से बच्चों को हिंदी सिखाई जा रही है। इसकी संस्थापक दिवंगत श्रीमती सुदर्शन मोहिंद्रा थीं जिन्होंने अपना जीवन हिंदी के शिक्षण में लगा दिया। वर्तमान में कला निकेतन हिंदी स्कूल में हिंदी का शिक्षण निरंतर हो रहा है।
2.1.2 यू.के.हिंदी समिति– 1994 में डॉ. लक्ष्मीमल्ल सिंघवी के आने से हिंदी संबंधी साहित्यिक गतिविधियों को काफ़ी बढ़ावा दिया गया। यू.के.हिंदी समिति का गठन हुआ। जिसने विभिन्न शहरों की साहित्यिक संस्थाओं को और वहाँ के बच्चों को हिंदी ज्ञान प्रतियोगिता, भाषण प्रतियोगिता आदि आयोजित करके हिंदी शिक्षण और उसके प्रचार-प्रसार को ज़ारी रखा। श्री पदमेश गुप्त इसके संरक्षक हैं, लेकिन पिछले लगभग दस वर्षों से इस संस्था का पूरा कार्यभार सुरेखा चोफला देखती हैं और यू.के. तथा यूरोप की लगभग 45 स्वायत्त संस्थाएँ अथवा शिक्षक इनके स्वनिर्मित पाठ्यक्रम का प्रयोग करते हैं। इसमें ‘प्रवेश’ से लेकर ‘ए’ लेवल अर्थात यू.के. की दसवीं कक्षा के समकक्ष परीक्षाएँ आयोजित करवाई जाती हैं। संस्था से जुड़े हुए बच्चों के लिये हिंदी ज्ञान प्रतियोगिताएँ औयोजित की जाती हैं, तथा पुरस्कृत बच्चों को भारत तथा यूरोप की यात्रा पर ले जाया जाता है।
2.2 विश्वश्वविद्यालयीन स्तर पर – हिंदी शिक्षण के लिए चार विश्वविद्यालय जाने जाते हैं।
2.2.1 सोआस (स्कूल ऑफ ओरिएंटल एवं अफ्रीकन स्टडीज़) लंदन- के स्कूल ऑव लैंग्वेजिस, कल्चर तथा लिंग्विस्टिक्स के अंतर्गत प्रारंभिक स्तर से बी.ए. तथा एम. ए. के छात्रों को हिंदी पढ़ाई जाती है, लेकिन मुख्य विषय के रूप में नहीं। दक्षिण-एशिया की संस्कृति और भाषा पर आधारित कक्षाओं में हिंदी एक वैकल्पिक भारतीय भाषा के रूप में पढ़ाई जाती है। कुछ छात्र जो चार साल की डिग्री ले रहे हैं, और जो अपनी हिंदी को उच्च स्तर तक ले जाना चाहते हैं, वे अपना तीसरा वर्ष भारत में हिंदी अध्ययन में बिताते हैं। इसके अलावा, कोई भी छात्र, किसी भी डिग्री कोर्स पर, भाषा अध्ययन एक वैकल्पिक विषय के रूप में अपनी डिग्री में शामिल कर सकता है । सोआस में अन्य उपलब्ध भारतीय भाषाएँ उर्दू, बंगाली एवं संस्कृत हैं। हिंदी और उर्दू दोनों नरेश शर्मा द्वारा पढ़ाई जाती हैं, बंगाली सहाना वाजपेई द्वारा, और संस्कृत मैडलेना इटालिया पढ़ाती हैं। समय समय पर प्राकृत और पंजाबी की कक्षाएँ भी पढ़ाई जाती हैं ।
2.2.2- केंब्रिज विश्वविद्यालय -में यहाँ 1980 से लगभग 2005 तक डॉ. सत्येंद्र श्रीवास्तव लैंग्वेज टीचिंग ऑफीसर के रूप में हिंदी पढ़ाते थे। 2003 से फेकल्टी ऑव एशियन एंड मिडिल ईस्टर्न स्टडीज़ के अंतर्गत स्नातक स्तर कक्षाओं में दक्षिण एशियाई संस्कृति, इतिहास एवं राजनीति जैसे विषयों के साथ स्वतंत्र विषय के रूप डॉ. ऐश्वर्ज कुमार ‘All comers Hindi classes’ में हिंदी पढ़ाते है। यह कक्षाएँ बहुत लोकप्रिय हैं। भारतीय संस्कृति और इतिहास का अध्य्यन करने वाले छात्रों के लिए यह कक्षाएँ चलाई जाती हैं।
2.2.3-ऑक्सफर्ड विश्वविद्यालय आक्सफर्ड के फैकल्टी ऑव एशियन एंड मिडिल ईस्टर्न स्टडीज़ विभाग में इंडॉक्स अर्थात इंडिया ऑक्सफर्ड इनीशियेटिव के अंतर्गत हिंदी का शिक्षण प्रारंभिक से उच्च स्तर; स्नातकोत्तर स्तर तक उपलब्ध है। यहाँ भी अन्य दशिण एशियाई अध्य्यन के विषयों के साथ हिंदी का शिक्षण किया जाता है। हिंदी-शिक्षण के प्रमुख हंगरी मूल के हिंदी विद्वान इमरे बंगा हैं। उनकी सहयोगी भारतीय मूल की डॉ. अश्विनी मोकाशी हिंदी और मराठी भाषा की प्राध्यापिका हैं।
2.2.4 यॉर्क विश्वविद्यालय- यार्क विश्वविद्यालय में, 2004 में प्रो. महेंद्र वर्मा की सेवा-निवृत्ति के पश्चात हिंदी शिक्षण समाप्त हो गया।
यॉर्क के अतिरिक्त अन्य सभी विश्वविद्यालयों में भारतीय संस्कृति विभाग के अंतर्गत एक ऐच्छिक विषय के रूप में हिंदी का अध्यापन हो रहा है। छात्रों की संख्या प्रत्येक विश्वविद्यालय में आठ से पंद्रह के मध्य है। विश्वविद्यालयों के अपने पाठ्यक्रम हैं। इन विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाने के लिए पाठ्य पुस्तकों के अतिरिक्त वृत्तचित्रों तथा फिल्मों के अंशों तथा शिक्षण के आधुनिकतम उपकरणों का प्रयोग एक लंबे समय से हो रहा है।
यदाकदा कोई कॉलेज लंदन अथवा किसी शहर में हिंदी संभाषण की कक्षाएँ आरंभ कर देता है तो उनका जीवन छात्रों की कमी के कारण अल्पकालीन ही होता है। किंग्स कॉलेज के आधुनिक भाषा विभाग में हिंदी का अध्यापन छात्रों की संख्या पर निर्भर करता है और कई बार कक्षाएँ आरंभ होने की घोषणा मात्र तक ही रह जाती है।
- ब्रिटेन में अनौपचारिक रूप से हिंदी-शिक्षण
द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात बहुत से भारतीय यहीं रह गये। फिर छटवें दशक में इंग्लैंड आर्थिक मंदी के दौर से गुज़रा। तब पुनः भारतीयों को यहाँ विभिन्न उद्योगों में मज़दूर तथा अन्य व्यवसायों को लिये आने के अवसर सुगम हुए। उस कालखंड में जो लोग आये उनसे अपनी रोटी-पानी की जरूरतों को पूरा करने में बहुत कुछ पीछे छूटता रहा, जिसमें दुर्भाग्यवश उनकी अपनी मातृभाषाएँ भी थीं। उन लोगों ने इस बात पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया कि उनके बच्चे घर में अपनी भाषा सीखें । इस कारण से उनके बच्चे अपने दादा-दादी, नाना-नानी तथा अन्य रिश्तेदारों से अपनी भाषा में संवाद स्थापित न कर पाने के कारण कट-से गये। तब उन लोगों ने सातवें- आठवें दशक में घरों में, मंदिरों और कम्यूनिटी सेंटर इत्यादि में स्वैच्छिक रूप से अपनी भाषाएँ सिखानी शुरु कर दीं।
3.1 मंदिर एवं सामुदायिक केंद्र- मंदिर एवं सामुदायिक केंद्रों में हिंदी शिक्षण- ब्रिटेन में मंदिर हिंदी भाषा के शिक्षण-प्रशिक्षण प्रचार-प्रसार का प्रमुख केंद्र हैं।लंदन, बरमिंघम,कार्डिफ़,बेलफ़ास्ट आदि लगभग सभी शहरों में हिंदी भाषा की साप्ताहिक कक्षाएँ नियमित रूप से चल रही हैं। धार्मिक एवं सामाजिक संस्थाओं के द्वारा हिंदी शिक्षण की सुविधा उपलब्ध करवाई जा रही है। ब्रिटेन में हिंदी भाषा की शिक्षा अधिकांशतः मंदिरों में स्वैच्छिक रूप से दी जाती है। इनमें अक्सर किसी भाषा शिक्षण प्रविधि का कोई प्रयोग नहीं होता। शिक्षक प्रशिक्षित भी नहीं होते। लेकिन हिंदी के प्रति प्रेम और सीखने -सिखाने की ललक से ये कक्षाएँ निरंतर चलती रहती हैं
3.2 घरों में हिंदी शिक्षण- हिंदी या अन्य भाषा भाषीय परिवारों में भी काम की व्यस्तता, सुविधा और समय की कमी के कारण माता-पिता और बच्चों में आपसी संवाद अंग्रेज़ी में होता है। लेकिन परिवारिक दायित्व एवं बहुभाषीयता के महत्त्व को समझते हुए दसवें तथा ग्यारहवें दशक अर्थात नब्बे तथा 2000 के पश्चात आनेवाले बहुत से प्रवासियों ने अपने बच्चों को घर पर अपनी भाषाएँ पढ़ाने का कार्य जारी रखा। अधिकांशतः माता पिता या दादा-दादी, अथवा नाना- नानी आदि हिंदी भाषा सिखाते हैं- कुछ लोगों ने इसे अब अपने व्यवसाय के रूप में अपना लिया है। इनका कोई निश्चित पाठ्यक्रम नहीं है। इनके छात्र बच्चे या वयस्क हो सकते हैं। इनका कोई निर्धारित पाठ्यक्रम नहीं है। शिक्षार्थी की आवश्यकतानुसार सुनने, समझने, बोलने पढ़ने तथा लिखने के कौशल को अपनी-अपनी समझ के अनुसार सिखाया जाता है।
3.3 अन्य व्यवसायिक शिक्षण केंद्र- कामकाजी हिंदी भूमंडलीकरण के कारण नौकरीपेशा लोगों के लिये- ये कक्षाएँ व्यक्तिगत आवश्यकता के आधार पर, भारत में नियुक्ति होने पर अथवा भारत घूमने या स्वयंसेवी संस्थाओं में काम के लिए जाने पर, बोलचाल की हिंदी की कक्षाएँ होती हैं। पाठ्यक्रम अधिकांशतः भाषा की प्रयोजनमूलकता पर आधारित होता है। यहाँ भी सब अपने –अपने तरीके से पढ़ाते हैं। ब्रिटिश मेट्रोपोलिटन पुलिस एंड मेरी वार्ड सेंटर में पुलिस के कर्मचारियों के लिए बोलचाल की हिंदी की कक्षाएँ लगती हैं जिन्हें गीता शर्मा पढ़ाती हैं।
3.4 फिल्म एवं कलाओं द्वारा –
3.4.1 फिल्में- हिंदी शिक्षण के अतिरिक्त हिंदी के प्रचार प्रसार के अन्य माध्यम भी हैं जिनमें बोलचाल की हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार में हिंदी फिल्मों का योगदान विलक्षण है। विदेशों में बसा भारतीय समाज हिंदी फिल्मों का दीवाना है। सिनेमा हॉल के बाहर विभिन्न भाषा-भाषी सच्चे अर्थों में भारतीयता का संवहन करते हैं। यह बात और है कि बॉलीवुड की फ़िल्मों में अब हिंदी कम अंग्रेज़ी ज़्यादा, या यों कहें कि हिंदी-अंग्रेज़ी का मिला-जुला स्वरूप हिंग्लिश। किंतु आज विदेशों में दूसरी और तीसरी पीढ़ी के बीच हिंदी फ़िल्में बहुत लोकप्रिय हैं। विभिन्न भारतीय टी.वी चैनलों था नैटफ्लिक्स इत्यादि ने भी हिंदी की लोकप्रियता में वृद्धि की है।
3.4.2 कला- संस्कृति प्रसार संस्थाएँ अनेक संस्थाएँजैसे सोनिया साबरी कंपनी, संपद, चित्रलेखा बोलार डांस कंपनी, वैस्ट मिड्लैंड्स में, नेहरू केंद्र लंदन, भारतीय विद्याभवन लंदन आदि जैसी अनेक संस्थाएँ विभन्न शहरों में भारतीय शास्त्रीय नृत्य एवं गायन के माध्यम से हिंदी भाषा को अनौपचारिक रूप से सिखाते हैं।
3.5 साहित्यिक संस्थाओं द्वारा
इसी प्रकार गीतांजलि बहुभाषीय समुदाय, बरमिंघम एवं नॉटिंघम,कला निकेतन नॉटिंघम, यू.के. हिंदी समिति, वातायन, संस्क़ति यू.के. लंदन, कृति यू.के. बरमिंघम, हिंदू कौंसिल लंदन, चौपाल, लेस्टर, हिंदू कम्यूनिटी सेंटर बेलफास्ट आदि अनेक संस्थाएँ हिंदी भाषा और संस्कृति से संबंद्ध गतिविधियों को निरंतर प्रोत्साहन दे रही हैं और युवाओं को सम्मिलित करने के विविध प्रयास कर रही हैं। किंतु फिर भी इस तरह की गतिविधियाँ प्रमुखत: लंदन, बरमिंघम आदि तक ही सीमित हैं। व्यक्तिगत स्तर पर किये जानेवाले प्रयास को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता। कोविड लॉकडाउन के दौरान हिंदी से संबद्ध इंग्लैण्ड की विभिन्न संस्थाओं में से अधिकांश ने अपनी गोष्ठियाँ ऑनलाईन माध्यमों से निरंतर आयोजित करते रहे। इसी प्रकार बातचीत करने , मिलने -जुलने के लिए भी इन माध्यमों का भरपूर प्रयोग किया गया।
हिंदी शिक्षण विधि :
सुनने, बोलने, पढ़ने और लिखने की प्रवीणता, किसी भी भाषा में आपको पारंगत बना सकती है। यहाँ हिंदी शिक्षण के जितने औपचारिक, अनौपचारिक अथवा स्वयंसेवी संस्थान हैं हैं। इनमें भाषा की प्रयोजनमूलता को ध्यान में रखा जाता है। खेल-खेल में सिखाने के लिए कई तकनीकी उपकरणों और ऑनलाईन खेलों का प्रयोग, पावर पॉइंट, चित्रों, ऑडियो-वीडयो क्लिप्स, फिल्मों के अंश, स्मार्ट-बोर्ड का प्रयोग, वेबसाईटों का प्रयोग तथा कहूट पर प्रश्नोत्तरी और तरह तरह के उपकरणों का प्रयोग सामान्य है। मौखिक अभ्यास, सामूहिक और व्यक्तिगत अभ्यास, पढ़ने और लिखने का अभ्यास, प्रश्नोत्तर द्वारा सुनने, बोलने, पढ़ने और लिखने का कौशल विकसित किया जाता है। छात्रों में शोध-वृत्ति का विकास करने के लिए उन्हें विभन्न विषयों पर छोटे-छोटे शोध करने को कहा जाता है। अंतर्अनुशानीय अध्य्यन की महत्व के बताते हुए उन्हें विषय से संबंधित नाटक, कहानी अथवा कविता रचने को कहा जाता है । इस प्रकार छात्रों को विभिन्न स्थितियों भाषा के प्रयोग के अवसर दिए जाते हैं। कोविड लॉकडाउन के बाद से विभिन्न ऑनलाईन माध्यमों का प्रचलन भी बढ़ गया है। शिक्षक नियमित रूप से ज़ूम, माईक्रोसॉफ्ट टीम्स, गूगल हैंग आउट, व्हाट्सएप द्वारा कक्षाएँ लेते हैं। हिंदी के छात्र तकनीकी प्रयोग से समृद्ध हो रहे हैं।
सार रूप में यह कहा जा सकता है कि ब्रिटेन में हिंदी शिक्षण हो रहा है। नये -नये प्रयोग किए जा रहे हैं, जो प्रशंसनीय है। लेकिन चुनौतियाँ भी कुछ कम नहीं हैं। कुछ महत्त्वपूर्ण मुद्दे हैं, जिन पर ध्यान देना अत्यंत आवश्यक है।
- उचित और मानक पाठ्यक्रम का अभाव
- उचित संसाधनों का अभाव
- प्रशिक्षित शिक्षकों का अभाव
- हिंदी शिक्षण हेतु प्रोत्साहन का अभाव
- भारतीय उच्चायोग द्वारा सहयोग का अभाव
समस्या में समाधान भी निहित होता है अतः
- हिंदी शिक्षकों को यहाँ के वातावरण और आवश्यकता के अनुसार प्रशिक्षित करना
- विद्यालयीन स्तर पर हिंदी का एक मानक पाठ्यक्रम तैयार करना
- हिंदी शिक्षण प्रदान करनेवालों का आपस में एकदूसरे से जुड़ना
- कंप्यूटर खेलों का हिंदी में अनुवाद कराना।
- भारत सरकार द्वारा ब्रिटेन हिंदी शिक्षण-प्रशिक्षण को प्रोत्साहन देना और अवसर उपलब्ध करवाना
- विश्वविद्यालयीन स्तर पर तुलनात्मक भाषा अध्ययन की व्यवस्था एवं प्रोत्साहन देना।
- हिंदी के अध्य्यन हेतु राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान, केंद्रीय हिंदी संस्थान, अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा जैसी संस्थाओं की मान्यता दिया जाना
- सभी वय के लोगों के लिये पत्र-पत्रिकाएँ, स्वस्थ एवं रुचिकर साहित्य उपलब्ध कराना होगा
निष्कर्षत: कहा जा सकता है कि इंग्लैंड में अनेक समस्याओं के बीच भी हिंदी अपनी शक्ति से जीवित है। हिंदी भाषा के औपचारिक शिक्षण-प्रशिक्षण के अतिरिक्त व्यक्तिगत स्तर पर किये जानेवाले प्रयास अत्यंत महत्वपूर्ण और हिंदी के पुनरुत्थान में मील का पत्थर सिद्ध होंगे। वर्तमान स्थिति को देखकर लगता है कि आनेवाले समय में उपरोक्त चुनौतियों का समाधान करने पर हिंदी बोलने, पढ़ने-लिखनेवालों की संख्या पुन: बढेगी। भारत सरकार एवं लंदन स्थित भारतीय उच्चायोग की भूमिका इसमें निस्संदेह अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। जिस प्रकार बूँद-बूँद से घड़ा भरता है इसी प्रकार एक-एक व्यक्ति के प्रयास से ही संभव है कि इंग्लैंड में पुनः हिंदी राष्ट्रीय पाठ्यक्रम का विषय बन जाये।
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संदर्भ-
नरेश शर्मा- वरिष्ठ व्याख्याता , सोआस लंदन विश्वविद्यालय
डॉ. अश्विनी मोकाशी, व्याख्याता , ऑक्सफर्ड विश्वविद्यालय
महेंद्र वर्मा- सेवानिवृत भाषा–वैज्ञानिक , यॉर्क विश्वविद्यालय
उषा वर्मा- प्रतिष्ठित हिंदी साहित्यकार एवं सेवानिवृत्त शिक्षण प्रशिक्षक
डॉ. कृष्णकुमार गीतांजली बहुभाषीय साहित्यिक संस्था, बरमिंघम
ऐश्वर्ज कुमार- व्याख्याता हिंदी, केंब्रिज विश्वविद्यालय
सुरेखा- चोफला, अध्यक्ष, यू.के. हिंदी समिति
स्वर्ण तलवार- सेवानिवृत्त शिक्षिका, स्वैच्छिक हिंदी शिक्षक
गीता शर्मा- हिंदी शिक्षक, मेट्रोपोलिटन पुलिस तथा मेरी वॉर्ड
राखी बंसल- हिंदी शिक्षक, बरमिंघम, संपादक,आधुनिक साहित्य यू.के
रितु चौधरी- हिंदी शिक्षक- इंडियन कम्यूनिटी, वैस्ट मिडलेंड्स |
आलेख-
- हिंदी विश्व की सबसे बड़ी भाषा तथ्य एवं आँकड़े ( एथ्नॉलॉग हेतु संशोधित रिपोर्ट 2023) – डॉ. जयंती प्रसाद नौटियाल
- -उच्च हिंदी प्रशिक्षण में वेब-प्रयोग (सोआस)- डॉ.फ्रैंचेस्का ओर्सिनी
- ब्रिटेन में हिंदी अध्य्यन-अध्यापन- प्रो. महेंद्र वर्मा
- दूसरी भाषा के रूप में हिंदी- चित्रा कुमार एवं ऐश्वर्ज कुमार
- इंग्लैण्ड में हिंदी की दशा एवं दिशा-वंदना मुकेश
ग्रंथ-
- हिंदी शिक्षण के अंतर्राष्ट्रीय आयाम- समस्याएँ, चुनौतियाँ एवं समाधान, संपा. डॉ. कृष्ण कुमार, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान 2015
- प्रवासी हिंदी, संपा. आत्माराम शर्मा, आईसेक्ट पब्लिकेशन, 2019
इंटरनेट-
- https://web.archive.org/web/20161222023519/https://www.haileybury.com/explore/haileybury/heritage-archives/story-haileybury/east-india-college
- https://www.orinst.ox.ac.uk/hindi
- https://www.ames.cam.ac.uk/whats-on/all-comers-hindi-classes
- https://www.soas.ac.uk/study/find-course/ba-languages-and-cultures-middle-east-africa-south-and-southeast-asia