काले देवता

– हर्ष वर्धन गोयल (सिंगापुर)

यह उन दिनों की बात है जब मैं मलेशिया में कार्यरत था, मुझे अपने कार्यालय के द्वारा सायबर जाया में एक परियोजना पर काम करने का अवसर मिला था। परिवार से कोसों दूर मैं वहाँ पर अकेला था क्योंकि बच्चे की पढ़ाई व पत्नी का कार्यक्षेत्र सिंगापुर में होने के कारण मेरा परिवार मलेशिया में स्थानांतरित नहीं हो सका। अत: मैं निरंतर प्रयासरत था कि मैं किस प्रकार वापस सिंगापुर में कार्य ढूँढ़ सकूँ। हालाँकि मुझे मलेशिया में किसी प्रकार की कोई समस्या नहीं थी फिर भी परिवार सिंगापुर में होने के कारण मुझे हर सप्ताहांत में वापस आना पड़ता था और पुन: वापस मलेशिया जाना पड़ता था। इस विवशता पर मेरा कोई वश नहीं था। इसी उपापोह में कई माह का समय व्यतीत हो गया। मैं निरंतर सिंगापुर की किसी परियोजना में कार्य की तलाश कर रहा था। अंतत: ईश्वर की कृपा से, थोड़े से प्रयासों के बाद मुझे वापस सिंगापुर में कार्य मिल गया। मैं वापिस सिंगापुर आने के लिए बहुत उत्साहित था।

किंतु इस बीच एक घटना घटित हुई जो मेरे मन मस्तिष्क पर अभी भी सचित्र अंकित है। मैंने नया नियुक्ति पत्र मिलते ही, अपना त्यागपत्र मानव संसाधन विभाग में डाल दिया। संयोगवश उन्हीं दिनों मेरे उच्च अधिकारी का भी स्थानांतरण हुआ था। कुछ ही दिनों में मेरे नाम नए उच्च अधिकारी का ईमेल आया कि वे मुझसे वार्तालाप करना चाहते हैं । मेरे लिए यह एक सामान्य सी बात थी।

अमेरिका में बैठे मेरे उच्च अधिकारी ने हाल-चाल जानने के बाद प्रश्न पूछा – तुमने त्यागपत्र क्यों डाला? क्या कारण है? मैंने सारी वस्तुस्थिति का यथावत वर्णन करते हुए बताया कि मेरा बच्चा सिंगापुर में पढ़ रहा है और उसका विद्यालय स्थानांतरण संभव प्रतीत नहीं पड़ता। कुछ इधर-उधर की बात करने पर उन्होंने पूछा, “हर्ष कोई और कारण तो नहीं।” मैंने कहा, नहीं श्रीमान, कोई और कारण नहीं है, यही एकमात्र कारण है, मुझे यहाँ किसी प्रकार की और कोई असुविधा नहीं है।

“क्या मैं साफ-साफ पूँछू? मैं एक अफ्रीकन व्यक्ति हूँ और क्योंकि मैं एक काला व्यक्ति हूँ इसलिए तुम त्यागपत्र देना चाहते हो?” उनकी आवाज में अब गंभीरता थी। मैं बड़ा अचंभित हो गया। कोई व्यक्ति ऐसे कैसे सोच सकता है कि हम उसके रंग के आधार पर उसका चयन करते हैं। उन्होंने मुझसे कहा कि साफ-साफ बताओ, तुमने त्यागपत्र क्यों दिया… क्या काला अधिकारी होने पर तुम्हें कोई आपत्ति है?

अब मेरे सब्र का बाँध टूट चुका था। मैं मानव को पहले मानव समझता हूँ और कोई मुझ से इस प्रकार की बात करे, यह मेरे लिए बड़ी ही अचरज की बात थी। मैंने कहा श्रीमान यदि मैं अपने मित्रों का, अपने अधिकारियों का, अपने सहयोगियों का चुनाव उनके रंग से करता हूँ तो यह मेरे लिए बहुत बड़ा पाप होगा। हमारी संस्कृति में, हमारे कई सारे प्रमुख देवी- देवता एकदम काले रंग के हैं।                                                                     

क्या आप सोचते हो कि हम रंगों के आधार पर मनुष्य का चयन कर सकते हैं जबकि हमारे अपने कुछ देवता एकदम काले हैं?

मैं उनसे दूरभाष पर बात कर रहा था परंतु अब मैं उनकी आवाज में एक विशेष परिवर्तन महसूस कर सकता था, झल्लाहट से भरा स्वर शांत हो चुका था। मुझे अनुभूति हुई कि मेरा यह उत्तर सुनकर वे बहुत अच्छा महसूस कर कर रहे थे। उन्होंने कहा, नहीं हर्ष मैं तो मात्र ऐसे ही पूछ रहा था। उन्हें यह जानकर कर बड़ी प्रसन्नता हुई कि मेरी सोच रंगभेद में बिल्कुल भी विश्वास नहीं करती। उन्होंने मेरे सुखद भविष्य की कामना के साथ वार्तालाप समाप्त करते हुए कहा कि भविष्य में कभी भी उनकी आवश्यकता पड़े तो अवश्य संपर्क करना।

मैंने सोचा कि क्या एक अच्छे विकसित देश की पहचान केवल संसांधनों के विकास तक सीमित है? मानवीय सोच का विकास नहीं होना चाहिए? हमें मानव को पहले मानव नहीं समझना चाहिए? तत्पश्चात उसका रंग, धर्म, देश एवं भाषा इत्यादि को देखना चाहिए। मुझे अभिमान है अपनी उच्च संस्कृति पर, जहाँ हमें जन्म से ही इस तरह की कुंठित मानसिकता में फँसने नहीं दिया गया। मुझे मन ही मन अपनी संस्कृति और संस्कारों पर और अधिक गर्व हो उठा।

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