मेरे बचपन की मस्ती

बात करें अपने बचपन की तो
वह अलग तरह की मस्ती थी।

घर से स्कूल को आना-जाना
घर आकर होमवर्क करना
अगले दिन टीचर को दिखाना
वरना डांट खूब खानी पड़ती।

बात करें अपने बचपन की तो
वह अलग तरह की मस्ती थी।

कभी-कभी छुट्टी के दिन भी
हमें होमवर्क करना पड़ता था
वरना अगले दिन स्कूल गये तो
टीचर मोटी छड़ी दिखाती।

बात करें अपने बचपन की तो
वह अलग तरह की मस्ती थी।

घर में माँ घर के काम सिखाती
सिलना, बुनना, खाना बनाना
साथ में साफ-सफाई कराती
तब खेल की बारी थी आती।

बात करें अपने बचपन की तो
वह अलग तरह की मस्ती थी।

मेरी शादी की चिंता थी उनको
इसलिये मुझ पर कसी लगाम
‘आलस तजकर कर घर के काम’
बहू ही घर की लक्ष्मी कहलाती।

बात करें अपने बचपन की तो
वह अलग तरह की मस्ती थी।

कभी छत पर कूद-फाँद लिये
कभी घर के पिछबाड़े भाग-दौड़
मोबाइल कम्प्यूटर का पता नहीं
जिससे अच्छी रही थी तंदुरस्ती।

बात करें अपने बचपन की तो
वह अलग तरह की मस्ती थी।

नीम की डाल के झूले पर मैं
लंबी-लंबी पैंगें भरती थी
बदल गयी तस्वीर आज वह
न रही देह में वह फुरती।

बात करें अपने बचपन की तो
वह अलग तरह की मस्ती थी।

*****

– शन्नो अग्रवाल

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