कनेर का वन

कुछ दूर यहाँ से हटकर
एक कनेर का वन है
जिसके सुरभित कानन में
अलि करते कुछ गुंजन हैं l

उस वन के झुरमुट में
कुछ नन्ही परियाँ रहती हैं
दिन भर रहतीं फूलों में
वह गंध पिये जीती हैं l

इन परियों की भी है
एक सुंदर सी शहजादी
जिसको मिली हुई है
कुछ ज्यादा ही आजादी l

रात्रिकाल होने पर
जब चन्द्रज्योति मुस्काती
तब परियाँ जग-जग कर
नभ के आँगन में आतीं l

और अंगड़ाई ले उठती
कुछ रुकी हुई मलयानिल
रंगीन समां बंध जाता
तारों की होती झिलमिल l

कुछ देर जरा वह यूँ ही
करतीं विहार गगन में
जब तक छाती नीरवता
धरती के हर कन-कन में l

जब रात्रि पड़ी होती श्लथ
सारी धरती सो जाती
किरनों की डोरी पकडे
परियाँ धीरे से आतीं l

लेकर अपने हाथों से
स्वप्नों की रेशम चादर
धीरे से उड़ा हैं देती
तब निद्रित शिशुओं पर l

यह कोमल कुसुम अचानक
देखते स्वप्न तब प्यारे
स्वप्नों में परियाँ रानी
तब गीत सुनातीं न्यारे l

रंगीन लोक परियों का
शिशुओं को मस्त बनाता
इसलिए रात्रिकाल होते ही
हर नन्हा शिशु सो जाता l

तुमने भी देखा होगा
कुछ नन्हे शिशु मुस्काते
उस समय परी रानी की
गोदी में करते बातें l

परियाँ उनको हैं सुनातीं
कुछ मीठे गीत शहद से
मृदु किलकारी भर उठते
वे मीठा सपन टूटते l

उषाकाल से पहले
स्वप्नों का जाल हटाकर
आ जाती हैं वह वन में
सोतीं फूलों में जाकर l

*****

– शन्नो अग्रवाल

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