पेड़ों को

कुछ अकेले ही उगते हैं,
और कुछ, अपनी शाखाएँ जोड़कर,
एक परिवार बनाते हैं
एक पतली बेल बच्ची पैदा करके.

जोड़ा बनाके एक दूसरे के तने बांहों में लेते हैं
और आपस में खुसुर-फुसुर करते हैं…
वे पत्ते गिरा देते हैं, बर्फ से धुल जाते हैं,
और उन के नीचे सरसराहट होती है…

मैं एक पेड़ की तरह बढ़ना चाहती हूँ
सब कुछ स्वीकार करना और इस से ज़्यादा वापस देना,
गतिहीन खड़े रहना या हवा के साथ नृत्य करना, अपनी हथेलियाँ आकाश की ओर फैलाकर
मैं ब्रह्मांड को गले लगाना चाहती हूँ!

*****

– आन्ना पोनोमारेंको

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