महाकुंभ :  सनातन का विराट उत्सव

  – नरेश शांडिल्य

(एक यात्री, जिसके कंधे पर दो बैग टंगे हैं) :

कहां से है आ रहे हो?

मधुबनी से

कैसे आए?

ट्रेन से

यहां कहां उतरे?

प्रयाग

स्नान करने के लिए कब चले?

सुबह 4:00 बजे

पैदल?

हां

अब सुबह के 10 बज रहे हैं।
6 घंटे हो गए।

जी, चले आ रहे हैं। महादेव ने जो बुलाया है। थकावट तो है लेकिन आनंद है। इस आनंद का अलग ही आनंद है।
(और वो ठठा कर हँस देता है।)

कमोबेश महाकुंभ की यही कहानी है। कोई अकेला है, कोई दुकेला और कोई पूरे परिवार के साथ, कोई छोटे-बड़े ग्रुप के साथ। त्रिवेणी का पवित्र जल सबको खींच लाया है। प्रयागराज महातीर्थ हो गया है। ‘आस्था की डुबकी’ ही सबका उद्देश्य। यहां न कोई गोरा है, न काला; न साधु है, न असाधु; न राजा है, न रंक; न ब्राह्मण है, न क्षत्रिय; न वैश्य है, न शूद्र; न देसी है, न विदेशी… यहां सब सनातनी हैं; यानी ‘सनातनियों का संयुक्त परिवार’!  महाकुंभ सनातन का ऐसा ही विराट उत्सव है, जिसमें सभी आम हिन्दू पूरी आस्था और आशा के साथ शामिल हैं। अपने पूरे उत्साह और उमंग को लिए, अपने पूर्वजों-बुजुर्गों के आशीर्वाद को लिए, त्रिवेणी में स्नान करने के लिए लालायित हैं, संकल्पित हैं और प्रतिबद्ध हैं। सनातन की महाशक्ति यही शक्ति है। सनातन इसी तरह से नित नूतन नव्यता और भव्यता को प्राप्त होता रहता है। भीड़ है, यदाकदा भगदड़ भी है, मौतें भी हैं, मौत का निरंतर भय भी है… लेकिन सनातन का लोक न जाने किस मिट्टी से बना है, न जाने कैसी आस्था से जुड़ा है कि ये रेला कम होने का नाम ही नहीं ले रहा। दुनिया हैरान है, परेशान भी है कि 50 करोड़ से अधिक लोग संगम में डुबकी लगा चुके हैं, ये कैसी आस्था है? ये कैसा करिश्मा है?

कुंभ स्नान की हमारी यात्रा आदि से अंत तक लगभग सुविधाजनक रही। हमारी यात्रा में शामिल थे –  वैश्विक हिंदी परिवार के अध्यक्ष, प्रख्यात कवि-लेखक अनिल जोशी, अनिल जी की पत्नी सरोज जी,  लंदन से आईं हिंदी की सुपरिचित साहित्यकार दिव्या माथुर, प्रसिद्ध शायर शशिकांत, अनिल मीत, मीत जी की पत्नी सुषमा जी, प्रवासी भवन से जुड़े मनीष जी और मैं। क्योंकि हम रेलवे की सेकेंड ऐसी की टिकट बुक करा कर चले थे। आने की भी और जाने की भी। पहले हमारी बुकिंग लखनऊ तक थी। अनिल जी ने कहा कि मनीष जी ने कृष्णा (हंसराज कॉलेज) से बात की है। तत्काल में यह गाड़ी फाफामऊ तक बुक हो सकती है। फाफामऊ कुंभ स्थान से लगभग 14 किलोमीटर दूर है। सबने हामी भरी और हमारी टिकट तत्काल से बुक हो गई और अब हम निश्चिन्त थे कि अब हम फाफामऊ तक सीधे पहुँचेंगे। हमें ‘ज्ञान महाकुंभ’ परिसर में जाना था जोकि सेक्टर 9 में आयोजित था। ‘ज्ञान महाकुंभ’ संघ के भारतीय भाषा अभियान के तहत वहां आयोजित किया गया था। उन लोगों ने हमारे ठहरने की व्यवस्था सेक्टर 17 में की थी। वहां की व्यवस्थाएं देखकर मन हर्षित हो गया। वहां हर प्रकार की व्यवस्था थी साफ सुथरे बाथरूम, अंग्रेज़ी कमोड वाली टॉयलेट, सोने के लिए फोल्डिंग बेड, अच्छे पर्याप्त मात्रा में कंबल, यानी सब कुछ सुविधाजनक था। बहुत अच्छा टेंट वहां पर लगा हुआ था। वाटरप्रूफ टेंट के एक केबिन में दो बेड थे, एक टेबल थी। सुबह उठकर मीठी-फीकी दोनों प्रकार की चाय उपलब्ध थी, नहाने के लिए गर्म पानी भी उपलब्ध था, बकेट्स और मग्गे भी थे। बहुत अच्छा नाश्ता था, दोपहर का भोजन भी बहुत अच्छा था, दो-दो तीन-तीन सब्जियां, गर्मागर्म फुलके, सलाद, मीठा सब कुछ बहुत स्वादिष्ट। और उसी प्रकार डिनर की भी बहुत अच्छी व्यवस्था थी।

यानी ऐसे मेले में रहने-ठहरने, खाने-पीने की हमें लगभग पांच सितारा सुविधा उपलब्ध थी। दो दिन बाद अनिता वर्मा और उनके भाई-भाभी भी एक दिन के लिए वहां आकर ठहरे।

इन सब सुविधाओं को देखते हुए, हम बहुत भाग्यशाली थे कि जहां करोड़ों की भीड़ आई हुई है उसमें हमें ऐसी व्यवस्था मिली इसका श्रेय मुख्यतः हमारी इस यात्रा के सूत्रधार अनिल जोशी को ही है जिनके माध्यम से ठहरने और खाने-पीने की ये बेहतरीन सुविधाएं हमें निःशुल्क उपलब्ध कराई गईं। यहां तक कि वापसी में फाफामऊ रेलवे स्टेशन जाने के लिए भी दो बड़ी कारें भी अनिल जी के प्रयासों से हमें उपलब्ध हुईं।

अहोभाग्य! कि हम महाकुंभ -2025 में न केवल ‘आस्था की डुबकी’ लगा पाए, अपितु हमें कई बड़े और चर्चित अखाड़ों के दर्शन का लाभ भी मिला तथा उनकी संस्कृति और क्रियाकलापों को जानने-समझने का अवसर भी जैसे –  जुना अखाड़ा, निरंजनी अखाड़ा, किन्नर अखाड़ा आदि। ‘ज्ञान महाकुंभ’ की ओर से हमारे लिए एक विशेष कवि सम्मेलन भी आयोजित किया गया था, जिसकी अध्यक्षता दिव्या माथुर ने की और संचालन अनिल मीत ने किया। काव्यपाठ करने वाले प्रमुख कवियों में अनिल जोशी, शशिकांत, आशीष मिश्रा आदि के साथ मैं भी शामिल रहा।

कुल मिलाकर हमारी महाकुंभ यात्रा सफल भी रही और सार्थक भी।

                      – नरेश शांडिल्य (9868303565)

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