
महाकुंभ: ज्ञान, भक्ति व आस्था का संगम
– शशिकांत
कुंभ सदियों से भारतीय जन मानस की धार्मिक आस्था व संवेदनाओं से जुड़ा रहा है। इस तरह के आयोजनों के पीछे हमारे मनीषियों की गहन सोच और दूरदृष्टी का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। धर्म के अतिरिक्त ऐसे उत्सव हमें देशाटन के अतिरिक्त देश विदेश की भाषा, परिधान व सोच की बहुरंगी दुनिया को देखने समझने का भी अवसर देते हैं। यहां आकर धर्म, जाति व भाषा का अंतर गौण हो जाता है। इनमें शामिल होकर हम अपने अनुभव संसार को विस्तार देते हैं।

विगत 7 फरवरी से 11 फरवरी तक प्रयागराज में आयोजित हो रहे महाकुंभ में सम्मिलित होने का अवसर मिला। यह अवसर ‘वैश्विक हिंदी परिवार’ के अध्यक्ष व हमारे कवि व हिन्दी सेवी मित्र अनिल जोशी जी के कारण प्राप्त हो सका। ‘शिक्षा, संस्कृति उत्थान न्यास’ द्वारा आयोजित ‘ज्ञान महाकुंभ’ में भारतीय शिक्षा: राष्ट्रीय संकल्पना के त्रिदिवसीय कार्यक्रम में सम्मिलित होने का अवसर मिला। साथ ही इस अवसर पर आयोजित हुए कवि सम्मेलन में भाग लेने का अवसर भी मिला। इस यात्रा में लंदन से आई प्रतिष्ठित कवयित्री और ‘वातायन’ संस्था की अध्यक्षा दिव्या माथुर, प्रतिष्ठित दोहाकार-ग़ज़लकार व ‘वयम्’ के अध्यक्ष नरेश शांडिल्य, सरोज शर्मा, सुप्रसिद्ध कवि-ग़ज़लकार व साहित्यिक संस्था ‘परिचय’ व ‘वयम्’ के महासचिव अनिल मीत, सुषमा वर्मा, ‘वैश्विक हिंदी परिवार’ से जुड़े युवा लेखक व हिन्दी सेवी मनीष कुमार के सानिध्य ने इसे अविस्मरणीय बना दिया।

इस महाकुंभ में आकर अनेक नये अनुभव हुए। यहां आकर भारतीय जनमानस में पैठी धर्म व आध्यात्म के प्रति गहरी आस्था के दर्शन हुए। जिसने कारण देश के विभिन्न प्रांतों के नगर, कस्बों व गांवों से करोड़ों की संख्या में लोग कुंभ में आस्था की डुबकी लगाने के लिए पहुंच रहे हैं। यात्रा के बीच अनेक कष्टों को हंसकर सह रहे हैं। सच पूछो तो यही आस्था भारतीय जनमानस को जोड़ने की सबसे सशक्त कड़ी है। इसके अतिरिक्त देशभर से आए अनेक अखाड़ों व लाखों साधु-संतों को एक स्थान पर देखने-सुनने का अवसर मिला व अध्यात्म और योग की शक्ति देखने को मिली।

यदि कुछ छोटी-मोटी परेशानियों को छोड़ दें तो कुंभ के इस मेले में सरकार की चाक चौबंद व्यवस्था हर तरफ़ दिखाई दी। चाहे जनसुविधाओं की बात हो या अन्य व्यवस्थाओं की बात हो।
यदि मैं व्यक्तिगत लाभ की बात करूं तो इस यात्रा ने जहां आपस में साहित्यिक चर्चाओं का अवसर दिया वहीं एक दूसरे को और अधिक जानने समझने व निकट आने का अवसर भी दिया। साहित्यकार मित्रों के साथ समय-समय पर की गई अनेक यात्राओं के मध्य हुए अनुभवों के आधार पर मैं यह कह सकता हूं कि इस प्रकार की हर यात्रा हमें अनुभव सिद्ध तो करती ही है साथ ही लेखन को गति व सोच को परिपक्वता प्रदान करती है।

निश्चित रूप से यह कुंभ यात्रा न केवल अविस्मरणीय रही वरन् विविध अनुभवों से समृद्ध करने वाली भी रही।
– शशिकांत, कवि-ग़ज़लकार
(उपाध्यक्ष- वयम्: साहित्य, समाज व संस्कृति को समर्पित संस्था)
9868244288