
वातायन-यूके की संस्थापक, दिव्या माथुर एक वरिष्ठ और बहु-पुरस्कृत लेखिका, अनुवादक और इम्प्रेसरियो हैं, जिन्हें तीन दशकों में सैंकड़ों सफल और सार्थक कार्यक्रमों के आयोजन के लिए भारत और ब्रिटेन की सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया है। लॉकडाउन के दौरान, वातायन ने 180 से भी अधिक सुन्दर और सार्थक संगोष्ठियों का आयोजन कर एक अप्रतिम रिकॉर्ड कायम किया है, यह श्रंखला आज भी जारी है, विश्व भर के लेखक, कलाकार और श्रोता इन कार्यक्रमों में भाग लेते हैं।
जन्म तथा शिक्षा दीक्षा : 23 मई 1949, दिल्ली, स्नाकोत्तर (अंग्रेजी), आई.टी.आई-दिल्ली से साचिविक-उपाधिपत्र, चिकित्सा-पत्रिकारिता दिल्ली एवं ग्लासगो पॉलिटेक्निक्स से चिकित्सा-आशुलिपि का स्वतंत्र अध्ययन।
कर्मक्षेत्र: आप दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्वेदिक संस्थान में चिकित्सा-आशुलिपिक (1971-1985) रहीं, जहां आपने नेत्र-विज्ञान से सम्बंधित शब्दावली का अध्ययन किया और अपनी और नेत्र-विशेषज्ञों की सुविधा के लिए मेडिकल-आशुलिपि ईजाद की। निजी तौर पर, आपने नेत्रहीनों/अक्षम मरीजों की सहायता में मदद की, जिन्हें केंद्र में व्यावसायिक प्रशिक्षण भी दिया जाता था। पोषण, नेत्र-रोग, नेत्रहीनता और नेत्र-दान आदि पर अगनित लेख भी लिखे, जो समय समय पर प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में छपे।
1985 में आप भारतीय उच्चायोग-लंदन से जुड़ीं, 1992 में डॉ गोपालकृष्ण गांधी के प्रोत्साहन पर उन्होंने नेहरु केंद्र-लन्दन में पुस्तकाध्यक्ष/वरिष्ठ कार्यक्रम अधिकारी का पद सम्भाला और उसकी स्थापना में योगदान दिया। इस केंद्र के मुख्य उद्देश्य थे : विचार और अनुभव की सतहों पर भारतीय समाज की सांस्कृतिक महत्वकांक्षों का सम्बोधन और भारतीय और विदेशियों के मध्य सांस्कृतिक संवाद का प्रसार। यहां आपके उत्कृष्ट योगदान और नवरचना के लिए आपको आर्ट्स-काउन्सिल औफ इंग्लैंड ने आर्ट्स-एचीवर के सम्मान से सुशोभित किया। आपका लन्दन के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन मे अपूर्व योगदान रहा है। स्वतंत्र लेखन-अध्ययन और वातायन के कार्यक्रमों के अतिरिक्त, यह आजकल हैदर-क्लब फॉर डिमेंशिया एवं ‘हर्ट्स विजन-लॉस’ में स्वयंसेविका के रूप में कार्यरत हैं।
साहित्यिक उपलब्धियां : अंतर्राष्ट्रीय वातायन कविता संस्था की संस्थापक, रौयल सोसाइटी ऑफ आर्ट्स की फेलो, ब्रिटिश-लाइब्रेरी और टेट मॉडर्न की ‘फ्रेड’, आशा फाउंडेशन की संस्थापक-सदस्य, वैश्विक हिंदी परिवार की कार्यक्रम प्रमुख हैं। आप यू.के हिन्दी समिति की उपाध्यक्ष और कथा-यूके की अध्यक्ष, लंदन में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन-2000 की सांस्कृतिक अध्यक्ष रह चुकी हैं। जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल, विश्व-रंग-भोपाल, कोलंबिया विश्विद्यालय-न्यू यॉर्क, महात्मा गांधी हिंदी विश्विद्यालय-वर्धा, Universidad de Valladolid (स्पेन), राजस्थान, अंडमान निकोबार, जे.एन.यू-पोर्टब्लेयर, टैगोर-विश्वरंग-भोपाल, इंदिरा गांधी नेशनल ट्राइबल यूनिवर्सिटी अमरकंटक-रायपुर, अमृतसर-पंजाब, हरियाणा, कोलकाता के विश्वविद्यालयों द्वारा आयोजित राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों द्वारा आमंत्रित और सम्मानित की जा चुकी हैं। आप कई महत्वपूर्ण पत्रिकाओं के संपादन-मंडल में भी शामिल हैं।
आप 1985 से हिन्दी के प्रचार-प्रसार से लगातार जुड़ीं हैं। भारतीय उच्चायोग-लन्दन के फ्रेडरिक-पिन्कॉट पुरस्कार से सम्मानित, वातायन संस्था ने पिछले 20 वर्षों में कई ऐतिहासिक कार्यक्रम किए हैं, जिसमें भारत और अन्य देशों के कवियों, लेखकों और प्रकाशकों : निदा फाजली, प्रसून जोशी, जावेद अख्तर, राजेश रेड्डी और कुंवर बेचैन, अरुण माहेश्वरी, पुष्पिता अवस्थी, लक्ष्मी शंकर वाजपेयी, डॉ मधु चतुर्वेदी अनिल शर्मा-जोशी और योगेश पटेल, आदि को सम्मानित किया जा चुका है। लेखकों और कलाकारों के लिए सामाजिक, सांस्कृतिक और शैक्षणिक गतिविधियाँ आयोजित करना; गैर-अंग्रेजी लेखकों को अंतर्राष्ट्रीय लेखकों के संपर्क में लाने के लिए एक मंच प्रदान करना, पोएट्री-पिक्निक्स, कविता/कहानी-संग्रहों के प्रकाशन, विमोचन, चर्चा के अतिरिक्त, इस संस्था का मुख्य उद्देश्य है शांति और सद्भाव के माहौल को बढ़ावा देना।
प्रकाशित कृतियाँ : उपन्यास : तिलिस्म’ और ‘शाम भर बातें’ (दिल्ली विश्विद्यालय के पाठ्यक्रमों में शामिल), बाल उपन्यास : बिन्नी बुआ का बिल्ला, डैड, मॉम और मैं (सह-लिखित-उपन्यास); कहानी संग्रह : कथा सप्तक, कोरोना चिल्ला, मेड-इन-इंडिया, हिंदी@स्वर्ग.इन, 2050, पंगा, आक्रोश, ज़हरमोहरा (उर्दू में) और दि गेम ऑफ प्रीटैन्स (अंग्रेजी में); कविता संग्रह : अंतःसलिला, खयाल तेरा, रेत का लिखा, 11 सितम्बर, चंदन पानी, झूठ, झूठ और झूठ, जीवन हा मृत्यु; बाल कविता संग्रह : सिया-सिया। अँग्रेजी से/में
संपादन : Odyssey, Aashaa, Desi-Girls, इक सफर साथ-साथ, तनाव (दो खंड) और नेटिव सेंटस; अनुवाद : पांच बाल-पुस्तकों का काव्यानुवाद। नैशनल फिल्म थियेटर के लिए सत्यजीत रे के फिल्म रैट्रो और बीबीसी द्वारा निर्मित कैंसर पर बनी एक डाक्युमैंटरी का रूपांतर। नेत्रहीनता के विषय पर इनकी रचनाएं ब्रेल-लिपि में प्रकाशित हो चुकी हैं।
‘नया ज्ञानोदय’ द्वारा ‘पिछले पचास वर्षो की सर्वश्रेष्ठ कहानियों’ और ‘सन्डे-इंडियंस’ द्वारा हिन्दी की पच्चीस बेहतरीन कहानीकारों में आपको शामिल किया है। बहुत सी भाषाओं में भी अनुदित और प्रकाशित, उनकी कहानियाँ और कविताएं ‘धरा से गगन तक’, दूर बाग में सोंधी मिट्टी, देशांतर, इतर, बातें-मुलाकातें, The Redbeck Anthology of British South Asian Poetry, Northern Durbar, The North Eastern Durbar, Poems of Cultural Diversity, द होम-रियल और Dream Catcher जैसे कई महत्वपूर्ण संग्रहों में भी सम्मलित हैं। दिव्या ने जिन प्रसिद्ध स्थानीय कवियों के साथ कविता-पाठ किया है, उनमें एंड्रू मोशन, रूथ पडेल, रोगन वुल्फ, माइकल होरोवित्ज, कैनेथ वैरिटी, लिली माइकेल्ड्स, शांता आचार्य और अन्य शामिल हैं।
नाटक/ फिल्म : नाटक : अनिल जोशी द्वारा दिव्या माथुर की कहानी, 2050, के नाट्य रूपांतरण, ‘फ्यूचर परफेक्ट – इदम पूर्णम’ की वयम नाट्य संस्था द्वारा अक्षरा थियेटर दिल्ली में प्रस्तुति की गई। पॉल रौबसन द्वारा ‘Tête-à-tête’ और ‘ठुल्ला किलब’ नाटकों का मंचन सफल रहा है। दिल्ली दूरदर्शन ने इनकी कहानी, सांप सीढी, पर एक फिल्म निर्मित की है। डा निखिल कौशिक द्वारा उनकी सांस्कृतिक और लेखकीय गतिविधियों पर एक फिल्म, घर से घर तक का सफर, बनाई है, जिसे अंतर्राष्ट्रीय फिल्म-उत्सवों में शामिल किया जा चुका है।
प्रवासी गीतों का एल्बम : वतन की खुशबु के सम्पादन के अतिरिक्त प्रसिद्ध गायकों : राधिका चोपड़ा, रीना भारद्वाज, कविता सेठ और सतनाम सिंह द्वारा दिव्या की गजलों और गीतों की प्रस्तुति की जा चुकी है। कला-संगम की निदेशक डॉ गीता उपाध्याय के नर्तकों द्वारा आपकी कविताओं पर आधारित एक अभूतवपूर्व नाटिका, एक बौनी बूँद, की प्रस्तुति कार्टराइट म्यूजियम-ब्रैडफर्ड में आयोजित की गयी। साक्षात्कार अथवा अपनी रचनाएं सुनाने के लिए जी.टीवी, सनराइज रेडियो, बीबीसी रेडियो, आकाशवाणी भवन और दिल्ली-दूरदर्शन पर आपको नियमित रूप से आमंत्रित किया जाता है।
पुरस्कार/सम्मान : केंद्रीय हिंदी संस्थान द्वारा पद्मभूषण मोटुरी सत्यनारायण पुरस्कार, आर्टस काउंसिल औफ इग्लैंड का कला-साधना-सम्मान एवं प्रथम वनमाली कथा सम्मान से पुरस्कृत; दिव्या जी को दिल्ली के कई महाविध्यालयों सहित राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालयों द्वारा आमंत्रित सम्मानित किया जा चुका है। कथाकार मन्नू भंडारी हिन्दी साधिका सम्मान, उदभव मानव सेवा सांस्कृतिक सम्मान; भारत सम्मान, डॉ हरिवंश राय बच्चन लेखन सम्मान, राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार, अंतर्राष्ट्रीय फिल्म-उत्सव सम्मान; कथा यू.के का पदमानंद साहित्य सम्मान, यू.के हिंदी समिति का संस्कृति सेवा सम्मान, अक्षरम का प्रवासी साहित्य सम्मान, चिन्मोय मिशन का वैयक्तिक उत्प्रेरणा और समर्पण सम्मान, पोइम्स-फ़ौर-दि-वेटिंगरूम-यूके, इंटर्नैशनल लाइब्रेरी औफ पोएट्री-अमेरिका के उत्कृष्ट उपलब्धि पुरस्कार, काव्यरंग (नाटिंघम) सम्मान आदि।
‘पल्स’, ‘साहित्य-समर्था’ और गृहस्वामिनी’ जैसी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं के अंक इन्हें समर्पित हैं। आपका नाम ‘इक्कीसवीं सदी की प्रेणात्मक महिलाएं’, आर्ट्स कॉउंसिल ऑफ इंग्लैण्ड की ‘वेटिंग-रूम में कविता’, ‘ऐशियंस हूज हू’, ‘विकिपीडिया’ और ‘सीक्रेट्स ऑफ वर्ड्स इंस्पिरेशनल वीमेन’ जैसे ग्रंथों में सम्मलित है।
अध्ययन/अनुसंधान : इनके उपन्यास ‘तिलिस्म’ और ‘शाम भर बातें’ दिल्ली विश्विद्यालय के प्रावीण्य पाठ्यक्रम में शामिल हैं। दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा-मद्रास के अतुल यादव द्वारा ‘दिव्या माथुर कृत उपन्यास ‘शाम भर बांतों’ में प्रवासी भारतीयों की जिंदगी का यथार्थ’ पर एम.फ़िल, उप्साला-विश्विद्यालय-स्वीडन के मन्ने एकडल द्वारा ‘दिव्या माथुर की कहानियों का विश्लेषण’ एवं अनुवाद, मुम्बई विश्विद्यालय के कई छात्रों द्वारा ‘दिव्या माथुर के समग्र साहित्य में संघर्षरत नारी-चित्रण’ एवं ‘प्रवासी साहित्यकार दिव्या माथुर के साहित्य में मानवीय मूल्य’ और कानपुर विश्विद्यालय की डॉ अर्चना देवी द्वारा पी.एच.डी, गुरु नानक देव् विश्विद्यालय-अमृतसर के कई छात्रों द्वारा एम.फिल, आदि की जा चुकी हैं। पंद्रह से अधिक विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में दिव्या की रचनाएं सम्मलित एवं कृतियों का अध्ययन जारी है।
