औरतें

खिलखिलाती धूप सी
औरतें
अलसुबह चूल्हे को लीपती
गुनगुनाती हैं
अलसाई तंद्रा को भगाने
खदबदाते पानी के धुएँ में
तलाशती हैं
खुशियों की फरमाइशें
और
नन्हें हाथों में
चाँद सी रोटी थमा
बोसा लेके
भरपूर मुस्कुराती हैं।

पूरे दिन को
ठेंगा दिखा
चल पड़ती हैं
पसीने से नहाने…

एक बार फिर
हौंसला
कुतरा जा रहा है
जानती हैं वो;
फिर भी
नहीं टिकती खाट पर
सुस्ताने दो घड़ी भी..!!!

*****

– नोरिन शर्मा

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