आहट

सर्द रातों में
कोहरे को चीरती
एक सुलगी सी आहट
बेलाग लिपट जाती है
बारंबार कुनकुनी धूप को
अपनी दोहर में लपेटे..!

कभी
चादर की सलवटों में
उदासी की संतप्त सांसें
बीतने नहीं देतीं
सिरफिरी ख्वाहिशों को
उनकी उद्दाम उपस्थिति
अनमना कर देती
अलसाई उषा की लालिमा को..!

मौसम के करवट की
आहट भी नहीं
संदेसा भी नहीं
पूर्वानुमान भी नहीं
केवल
भीगती ओस संग
बीतता
चित्र सा सपाट
वक्त है
और साथ चलने का
उसका निष्कपट आग्रह..!

स्वीकार की मुद्रा में
अपने को
खर्चते चले जाते हैं
खर्चते चले जाते हैं।

*****

– नोरिन शर्मा

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