व्यर्थ उम्मीदें – (कविता)
व्यर्थ उम्मीदें अपने हिस्से के ग़म,ख़ुद ही सँभालने होंगेकोई आएगा,ऐसी तो तू उम्मीद ना कर मंज़िलें अपने ही पैरों केतले मिलती हैंकोई बैसाखियाँ लाएगा,ऐसी तो तू उम्मीद ना कर कल…
हिंदी का वैश्विक मंच
व्यर्थ उम्मीदें अपने हिस्से के ग़म,ख़ुद ही सँभालने होंगेकोई आएगा,ऐसी तो तू उम्मीद ना कर मंज़िलें अपने ही पैरों केतले मिलती हैंकोई बैसाखियाँ लाएगा,ऐसी तो तू उम्मीद ना कर कल…
आसमान का घर मिटाना होगा एक दिननक़्शों से लकीरों कोऔर धरती कोउसका घर लौटना होगा परिंदों को वृक्ष,वृक्षों को ज़मीनज़मीन को नदियाँनदियों को पानीपर्वतों को ख़ामोशीजंगल वासियों कोउनका घर लौटना…
लहरें लहरों का ये सागर है या सागर लहर में हैमैं हूँ सफ़र में या मेरी मंज़िल सफ़र में है सजदे में सर झुकाऊँ या सजदा ये सर करूँमैं बेख़बर…
मुसाफ़िर हर शख़्स मुसाफ़िर है,मुसाफ़िर से गिला कैसाकुछ दूर चला संग वो,फिर उससे गिला कैसा हर शख़्स का किरदार अलग,ख़्वाब अलग, मंज़िल अलगवो राह चला अपनी,राही से गिला कैसा रेशम…
डॉ. नरेन्द्र ग्रोवर (आनंद ’मुसाफ़िर’) जन्म स्थान: मोदी नगर, उत्तर प्रदेश शिक्षा: विज्ञान स्नातक- मेरठ विश्वविद्यालय, तदोपरान्त स्नातक पशु चिकित्सा- गोविंद बल्लभ पन्त विश्वविद्यालय सम्प्रति : निजी व्यवसाय (किचनर, ओंटेरियो…