
आसमान का घर
मिटाना होगा एक दिन
नक़्शों से लकीरों को
और धरती को
उसका घर लौटना होगा
परिंदों को वृक्ष,
वृक्षों को ज़मीन
ज़मीन को नदियाँ
नदियों को पानी
पर्वतों को ख़ामोशी
जंगल वासियों को
उनका घर लौटना होगा
तुम रहो कबूतरखाने से
अपार्टमेंट में
एक एक कमरा
एक एक
इंसान के लिए रखो
धरती को उसका
आसमान लौटना होगा
घर को घर लौटना होगा
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डॉ. नरेन्द्र ग्रोवर (आनंद ’मुसाफ़िर’)