लहरें

लहरों का ये सागर है या सागर लहर में है
मैं हूँ सफ़र में या मेरी मंज़िल सफ़र में है

सजदे में सर झुकाऊँ या सजदा ये सर करूँ
मैं बेख़बर हूँ या कि वो ख़बर में है

पत्तों से शजर है या पत्तों का शजर है
जड़ का सफ़र शज़र में है जड़ ही शज़र में है

ज़िन्दगी की उलझन अगर में है मगर में है
ख़ुद ही रुका रुका हूँ, मंज़िल डगर में है

‘आनंद’ की नज़र है आनंद हर कहीं है
आनंद गर नहीं कमी तेरी नज़र में है

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– डॉ. नरेन्द्र ग्रोवर (आनंद ’मुसाफ़िर’)

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