सिनेमा के पर्दे पर सफल सितारें , सियासत में भी जोर आजमाईश करते रहें हैं | अभिनय कला में पारंगत होने से, ये रूप बदलने में माहिर होते हैं | उनका व्यक्तित्व भी करिश्माई होते है | उनमें से कुछ की पहचान वंशानुगत भी होती है | सिनेमा के माध्यम से पारिश्रमिक तथा लाभ के रूप में प्राप्त विपुल संपदा एवं अपार लोकप्रियता उनकी संचित पूँजी होती है | अपनी इसी संचित पूँजी को सियासत में भुनाना इनकी ख्वाहिश तथा नियति होती है | इनका प्रभाव क्षेत्र भी परिधि से युक्त होता है | सिनेमा के पर्दे पर ये असीम उर्जा शक्ति से संपन्न दिखलायी पड़ते हैं , जबकि वास्तविकता इसके विपरीत भी हो सकती है | सियासत में इनका प्रवेश अभिनेता से राजनेता की गरिमा एवं महिमा से मंडित होने के लिए होता है |
सिनेमाई सितारे , सिनेमा से सीधे सियासत में छलांग लगाते रहे हैं | अपनी उपार्जित धन – संपदा एवं सिनेमाई लोकप्रियता के प्रभाव से चुनवी समर की पहली पगबाधा सफलता पूर्वक पार कर लेने के बाद भी बहुत से सितारे सियासत में स्वयं को असहज पाते हैं तथा पुन घर वापसी के बाद ही सकुन का अनुभव करते हैं | उत्तर भारत में अधिकांश सितारों के साथ ऐसी ही अनहोनी होती रही है | इसका कारण भी स्पष्ट है | राजनेता को पहले जननेता की ख्याति अर्जित करनी पड़ती हैं | जननेता जनता के बीच रहकर जनसमस्याओं के निराकरण में अपनी ऊर्जा का निवेश करते हैं तथा उसके बाद सियासती चुनावी समर में विजयश्री का वरण करके राजनेता के रूप में स्थापित होते हैं | इसके विपरीत सिनेमाई सितारें धन एवं पर्दे पर प्राप्त लोकप्रियता के मद में सियासती सफलता के लिए पूर्व से निर्धारित मापदंडों की अवलेहना करते रहे हैं तथा असफलता को गले लगाने के लिए विवश होते रहे हैं |
उत्तर भारत में सिनेमा से सियासत में आने वाले प्रथम दो सुपर स्टारों “राजेश खन्ना तथा अमिताभ बच्चन एवं गोविंदा की ऐसी ही नियति रही है | १९६९ ई. में बनी “सात हिन्दुस्तानी ” से अपनी सिनेमाई सफ़र आरम्भ करने वाले सुपरस्टार अमिताभ बच्चन की छवि ७० के दशक में “यंग्री यंग मैन ” की थी I राजीव गाँधी इन्हें सियासत में लेकर आये | १९८४ ई के संसदीय चुनाव में अमिताभ बच्चन ने इलाहाबाद की संसदीय सीट से दिग्गज राजनेता हेमवती नन्दन बहुगुणा को हराकर विजयश्री का वरण किया | फिर भी इन्हें सियासत रास नहीं आयी और सांसद के पद से इस्तीफा दे दिया तथा पुनः मुड़कर सियासत की तरफ नहीं देखा है | परन्तु इनकी पत्नी जया भादुड़ी समाजवादी पार्टी से राज्य सभा की सदस्या हैं |
बॉलीवुड में १९६६ ई. में “आखिरी ख़त ” फिल्म से अपनी सिनेमाई यात्रा का प्राम्भ करने वाले राजेश खन्ना हिन्दी सिनेमा के पहले सुपरस्टार कहे जाते हैं I इन्होने १९६९ ई. से १९७१ ई. के मध्य १५ सुपरहिट फिल्मों में सफ़ल नायक की भूमिका निभाई है I राजेश खन्ना १९९१ में कांग्रेस पार्टी से दिल्ली संसदीय क्षेत्र से भाजपा के शीर्ष नेता लालकृष्ण अडवाणी के विरुद्ध चुनाव लड़ें और हार को गले लगाया I पुनः १९९२ ई. में इसी संसदीय सीट से राजेश खन्ना अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा को हराकर विजयी हुए लेकिन इन्हें भी राजनीति रास नहीं आई और १९९६ में राजनीति से संन्यास ले लिया I
शत्रुध्न सिन्हा हारने के बावजूद भी सियासत में भाग्यशाली रहे | पटना साहिब संसदीय क्षेत्र से ये आज भी सांसद है | अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रहे हैं | पटना साहिब संसदीय सीट से इनकी जीत में जातीय समीकरण का भी योगदान रहता है | आजकल ये भारतीय जनता पार्टी में स्वयं को असहज पा रहे है और साथ ही साथ समय समय पर पार्टी को भी असहज करते हुये “ऐकला चलो रे ” उक्ति का अनुपालन कर रहे हैं I
बॉलीवुड में अपने डांस स्टाइल के लिए प्रसिद्ध अभिनेता गोविंदा १९८६ ई. में हिंदी फिल्म “ इल्जाम ” से अपनी सिनेमाई यात्रा प्रारंभ किया , एक साल में सबसे अधिक फिल्मों में काम करने का रिकॉर्ड भी इन्हीं के नाम है I २००४ ई. के संसदीय चुनाव में मुम्बई लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ें तथा पांच बार सांसद रहे भाजपा के दिग्गज नेता कैबिनेट मंत्री राम नाईक को हराया I लेकिन इन्हें भी राजनीति रास नहीं आयी और २० जनवरी २००८ को लोकसभा सांसद पद से इस्तीफा दे दिया, उसके बाद इन्होनें फिर कभी मुड़कर सियासत की ओर नहीं देखा है I
बॉलीवुड के प्रसिद्ध अभिनेता सुनील दत्त कांग्रेस पार्टी के बैनर तले मुम्बई के संसदीय सीट से चुनव लड़ते रहे तथा जीतते रहे | इनका संसदीय जीवन लगभग निर्विवाद रहा है | इनकी मृत्यु के बाद इनके पुत्र संजय दत्त अमर सिंह के प्रभाव में आकर समाजवादी पार्टी में शामिल हो गये | संजय दत्त ने अपनी फ़िल्मी यात्रा का प्रारम्भ १९७२ ई. में बनी फिल्म “रेशमा और शेरा ” से बाल कलाकार के रूप में किया है I ये २००९ ई. के संसदीय चुनाव में लखनऊ सीट से चुनावी समर में उतरे, किन्तु सुप्रीमकोर्ट ने इनके चुनाव लड़ने पर रोक लगा दिया I तदनुपरांत ये सपा के “जनरल सेक्रेटरी ” बने, फिर भी इन्होनें ये कहते हुए समाजवादी पार्टी से इस्तीफा दे दिया कि अभिनेता राजनीति में अनुकूलता प्राप्त नहींकर सकते I
सुप्रसिद्ध अभिनेता , विनोद खन्ना सिनेमा से सियासत में आये | ड्रीम गर्ल के रूप में लोकप्रिया अभिनेता हेमा -मालिनी को भी विनोद खन्ना सियासत में लाये | भारतीय जनता पार्टी से ये दोनों सांसद बने | विनोद खन्ना अपनी मृत्युपर्यन्त भाजपा से सांसद रहे | हेमा मालिनी मथुरा संसदीय सीट से भारतीय जनता पार्टी की सांसद है | सांसद होने के अतिरिक्त सियासत में इन दोनों के नाम अन्य कोई विशेष उपलब्धि दर्ज नहीं है |
दक्षिण भारत से अपनी सियासती यात्रा प्रारम्भ करके उत्तर भारत से भी सांसद रहने वाली एकलौती अभिनेत्री जया प्रदा ने अपनी फ़िल्मी यात्रा का प्रारम्भ तमिल फिल्म “भूमिकोसम” से किया था | रामाराव ने इन्हें तेलगु देशम पार्टी शामिल किया था | रामाराव के दामाद चन्द्रबाबू नायडू ने १९९६ ई. में इन्हें राज्यसभा का सांसद बनाया | बाद में अमर सिंह इन्हें समाजवादी पार्टी में लाये | समाजवादी पार्टी से २००४ तथा २००९ ई . में संसदीय चुनाव जीत कर लोकसभा की सांसद बनी | २०१४ ई. में बिजनौर संसदीय सीट से चुनाव हारने के बाद इन्होने सियासत से किनारा कर लिया है I इनके नाम भी सियासत में समय समय पर सनसनी पैदा करने के अतिरिक्त और कोई विशेष उप्लाब्धि नहीं है I
“राजनीति ” पर अनेक सफल,चर्चित तथा गंभीर गवेषणा पूर्ण फिल्मों के निर्माता –निर्देशक प्रकाश झा बिहार के पश्चिम चंपारण लोकसभा क्षेत्र से २००९ तथा २०१४ में चुनाव लड़ें और हार गये | सियासत इन्हें भी रास नहीं आयी | वर्तमान में फिल्मों के निर्माण में ही सक्रिय हैं |
उत्तर भारत की अपेक्षा दक्षिण भारत में अनेक फ़िल्मी सितारे सियासत में विपुल ख्याति अर्जित करने में सफल रहे है | तमिलनाडु की राजनिति वर्षों से इन्हीं के इर्द गिर्द परिभ्रमित होती रही है | आंध्रप्रदेश की सियासत में भी फ़िल्मी सितरों की धूम रही है | तमिल राजनिति में फ़िल्मी सितरों की सफलता का सर्वाधिक ऊँचा “ग्राफ ” है | उत्तर भारत की जनता और दक्षिण भारत की जनता की सियासी सोच में बुनयादी अंतर है | उत्तर भारत की जनता ने सिनेमा के नायकों को सिनेमा तक ही सीमित रखा | यहाँ की सियासत में नायकों की कमी नहीं रही है | इसके विपरीत दक्षिण भारत के सितारे सिनेमा तथा सियासत दोनों के नायक रहे है | यहाँ सिनेमा से सियासत में आने वाले फ़िल्मी सितारों की लम्बी परम्परा रही है | एन . टी .रामाराव ,एम . जी . रामचंद्रन ,करुणानिधि तथा जयललिता की सियासी सफलता बेमिसाल रही है | एकाधिक बार ये अपने – अपने राज्यों में मुख्मंत्री भी रहे है | १९४९ ई. में ” मनादेशम ” फिल्म से फ़िल्मी यात्रा का प्रारम्भ करने वाले एन .टी . रामाराव ने तेलगु फिल्मों में अनेक बार भगवान का रूप धारण कर उनके चरित्र का निर्वहन किया है | सिनेमा प्रेमी तेलगु सियासत पर राज करने वाले एन .टी . रामाराव ने १९८२ ई. में तेलगु देशम पार्टी बनाई | १९८३ ई. के आंध्रप्रदेश के विधान सभा चुनाव में २८४ में १९९ सिटे जित कर मुख्यमंत्री बने | १९८९ ई . की विधान सभा चुनाव में एन . टी . रामाराव चुनाव हार गये | १९९४ ई . की विधानसभा चुनाव में एन . टी . रामाराव तथा उनकी पार्टी तेलगु देशम की पुनः जीत हुई , ९ महिना मुख्यमंत्री रहे | इसके बाद इनके बाद दामाद चन्द्रबाबू नायडू ने इन्हें मुख्यमंत्री के पद से हटा दिया और स्वयं मुख्मंत्री बन गये | १९९६ ई. में तीन बार मुख्मंत्री रहे एन . टी . रामाराव की मृत्यु हो गयी |
छोटे परदे की बहुरानी स्मृति ईरानी २००३ ईस्वी में भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुई | २००४ ईस्वी के संसदीय चुनाव में दिल्ली के चांदनी चौक से चुनाव लड़ी तथा कांग्रेस के कपिल सिब्बल से हार गयी | २०१४ ईस्वी के संसदीय चुनाव में अमेठी से कांग्रेस के राहुल गाँधी के खिलाफ चुनाव लड़ी तथा पुनः हार गयी | वर्तमान में राज्य सभा से सांसद बनकर केंद्रीय मंत्री हैं | मानव संसाधन विकास मंत्रालय का प्रभार सँभालने के बाद जनता को इनसे कुछ आस जगी थी लेकिन ये भी अपने पूर्ववर्ती अभिनेता से नेता बने सीनियरों की तरह पानी के बुलबुले की तरह शांत हो गयी, अब शायद ही इनके कार्यों की खबर अख़बारों में स्थान पाती है |
तमिल फिल्मों के महानायक एम जी रामचंद्रन ने १९३६ ईस्वी में ‘लीलावती’ फिल्म से अपनी फ़िल्मी यात्रा प्रारम्भ की | १९३६ ईस्वी से १९७८ ईस्वी के मध्य एम जी रामचंद्रन ने १३३ फिल्मों में काम किया, जिनमे एक चौथाई फिल्में तमिल विचारधारा पर आधारित थी | कांग्रेस में शामिल होकर अपनी सियासती सफर प्रारम्भ करने वाले एम जी रामचंद्रन १९५३ ईस्वी में द्रविड़ मुनेत्र कड़गम पार्टी में शामिल हो गए | १९६२ ईस्वी में विधान परिषद के सदस्य निर्वाचित हुए | १९६७ ईस्वी के विधान सभा चुनाव में विजयी होकर तमिलनाडु के विधान सभा में पहुंचे | १९७२ ईस्वी में करूणानिधि से बगावत कर ‘आल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम’ नाम से पार्टी बनायी| तमिलनाडु में इन्हे अपार जन समर्थन मिला | १९७७ ईस्वी के विधान सभा के चुनाव में इनकी पार्टी ने २३४ सीटों में १४४ सीटें जीत ली | एम जी रामचंद्रन तमिलनाडु के मुख्यमंत्री बने | १९८९ ईस्वी में अपनी मृत्यु तक तमिलनाडु के मुख्यमंत्री बने रहे | इन्होने गरीबों एवं वंचितों की कल्पनाओं को मूर्त रूप देने का कार्य भी किया है |
तमिल फिल्मों के पटकथा लेखक करूणानिधि को तमिलनाडु के तात्कालिक मुख्यमंत्री अन्ना दुरई सियासत में लाये | १९५७ ईस्वी में पहली बार ‘डी एम के’ पार्टी से विधायक बनकर तमिलनाडु की विधान सभा में पहुंचे | १९६१ ईस्वी में ‘डी एम के’ पार्टी के कोषाध्यक्ष बने | १९६९ ईस्वी में अन्ना दुरई की मृत्यु के बाद मुख्यमंत्री बने| १९६९ से १९७१ , १९७१ से १९७६, १९८९ से १९९१ १९९६ से २००१ तथा २००६ ईस्वी से २०११ ईस्वी तक पांच बार मुख्यमंत्री रहे | इनकी पार्टी ने २००४ ईस्वी में पुडुचेरी विधानसभा की सभी ४० सीटें जीती थीं | करूणानिधि ने अपने ६० वर्षों के सियासती जीवन में प्रत्येक चुनाव में जीत दर्ज की हैं | वर्तमान में अत्यधिक उम्र के कारण इनकी सियासती सक्रियता कमजोर पड़ने लगी है|
१९६३ ईस्वी में अंग्रेजी फिल्म ‘द एपिसल’ से अपनी फ़िल्मी यात्रा का प्रारम्भ करने वाली जयललिता को एम जी रामचंद्रन राजनीति में लाये | १९८२ ईस्वी से अपनी सियासती पारी का प्रारम्भ करने वाली जयललिता सर्व प्रथम अन्ना द्रमुक की प्रचार सचिव बनी | १९८३ ईस्वी में राज्य सभा से सांसद बनी एवं १९८९ ईस्वी तक राज्य सभा की सदस्य बनी रहीं | १९८९ ईस्वी में एम जी रामचंद्रन की मृत्यु के बाद अन्ना द्रमुक पार्टी दो भागों में बट गयी, जिनमे एक का नेतृत्व जयललिता एवं दूसरे का नेतृत्व एम जी रामचंद्रन की पत्नी जानकी ने संभाला | १९८९ ईस्वी की विधान सभा के उप चुनाव में २९ सीटें जीतकर जयललिता विपक्ष की नेता बनी | १९९१ ईस्वी में तमिलनाडु की विधान सभा में जीत दर्ज कर जयललिता मुख्यमंत्री बनी | १९९१ से १९९६, २००१ ईस्वी में, २००२ ईस्वी से २००६ ईस्वी तक , २०११ ईस्वी से २०१४ ईस्वी तक तथा उसके बाद मृत्युपर्यन्त पांच बार तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रहीं | जयललिता को तमिलनाडु की सियासत में ‘अम्मा’ का दर्जा प्राप्त है | यहाँ की सियासत में ये देवी की तरह पूजी जाती हैं| तमिलनाडु की सियासत में सिनेमाई सितारों की सफलता का कारण जनता के बीच उनके समर्थकों एवं प्रशंसकों की सशक्त उपस्थिति रहीं है | इनका प्रभाव तमिल जनता के व्यवहार में भी परिलक्षित होता है |
एम जी रामचंद्रन और जयललिता की तरह शिवाजी गणेशन भी सिनेमा से तमिल सियासत में आये किन्तु असफल रहे | २००५ ईस्वी में विजयकांत भी सिनेमा से तमिल सियासत में उतरे एवं नयी पार्टी बनायी | २ वर्ष के भीतर ही इनकी पार्टी ने तमिलनाडु में ८% वोट पाया| बाद में विजयकांत भी विफल रहे |
कमल हासन और रजनीकांत तमिल सियासत के दरवाजे पर दस्तक दे रहे हैं | १९९६ ईस्वी में जयललिता के खिलाफ भ्रष्टाचार का बड़ा मुद्दा उठाने के बावजूद भी रजनीकांत उस समय तमिल सियासत में नहीं आये| २०१९ ईस्वी में लोकसभा तथा २०२१ ईस्वी में तमिलनाडु विधान सभा के चुनाव होने वाले हैं | करूणानिधि के राजनीति के परदे के पीछे चले जाने, जयललिता की असामयिक मृत्यु हो जाने तथा जेल में रहने वाली उनकी सहेली शशिकला के साथ किसी तमिल पार्टी का सशक्त समर्थन न होने से तमिल सियासत का प्लेटफॉर्म खाली है | इस सियासती शून्य को भरने के लिए आगामी चुनावों में कमल हासन तथा रजनीकांत जोर आजमाई करने के लिए तैयार दिखलाई पड़ते हैं | निर्णय तमिल जनता को करना है| इस सामयिक प्रश्न का उत्तर प्रतीक्षित है कि क्या कमल हासन और रजनीकांत अपने पूर्ववर्ती सिनेमाई सितारों जैसी सफलता प्राप्त कर सकते हैं या नहीं| ‘सेलिब्रिटी स्टेटस’ तथा ट्विटर पर सक्रियता मात्र से ही सिनेमाई सितारें राज नेता नहीं बन सकते | अवसरवादी सिनेमाई सितारों को इस सियासती सत्य से भी परिचित होने की आवश्यकता है|
२०१४ ईस्वी के संसदीय चुनाव में पश्चिम बंगाल से भारतीय जनता पार्टी के संगीतकार – गीतकार प्रत्याशी बप्पी लहरी चुनाव लड़े एवं हार गये | तीन तलाक के मुद्दे पर मिली शोहरत से उत्साहित ‘इशरत जहाँ’ पश्चिम बंगाल की सियासती समर में भारतीय जनता पार्टी के बैनर तले प्रवेश कर चुकी हैं| आने वाला समय इनकी सफलता-असफलता का मूल्याङ्कन तथा पुनर्मूल्यांकन करता रहेगा |
सिनेमाई सितारों का सियासती सफर उत्तर भारत में बेहद चुनौतीपूर्ण तथा दक्षिण भारत में अपेक्षाकृत निरापद रहा है| विलासितापूर्ण जीवन जीने वाले सिनेमाई सितारें अभिनय कला एवं संगीत रचना में तो समर्थ होते हैं, किन्तु जमीनी सियासत की समझ में प्रायः अनुभव शून्य होते हैं| शियाशती दल-प्रपंच एवं कूटनैतिक दांव पेंच में उलझना तथा ऐसे झंझावातों का सहन करते हुए सफलता पूर्वक बाहर निकलना इनके सामर्थ्य से बाहर की बात होती है, इसलिए उत्तर भारत की सियाशती समर में सिनेमाई सितारें स्वयं को प्रायः असहज तथा असफल पाते हैं | तमिल शियाशत सिनेमाई सितारों के लिए सर्वाधिक उर्वरा भूमि रही है | यहाँ के सिनेमाई सितारों की पहचान तमिल संस्कृति के वाहक तथा तमिल सभ्यता एवं स्मिता के रक्षक के रूप में रही है | संभवतः इसलिए यहां सिनेमाई सितारों एवं सियाशत में चोली- दामन का सम्बन्ध परिलक्षित होता है| इसी प्रकार का सम्बन्ध तेलगु सियाशत और ‘ एन टी रामाराव’ के बीच भी रहा है | फ़िल्मी अभिनेता फिल्मों की तरह राजनीति में तुरंत सफलता पाना चाहते हैं , जो कि संभव नही है , राजनीति लम्बे समय का खेल है,इसमें समय देना पड़ता है,जनता का विश्वास जितना पड़ता है,लोक से जुड़ना पड़ता है,समान्य जन के दुःख-दर्द को महसूस करना पड़ता है, और बहुत हद तक ये सारे कामों से सिनेमा से सियासत में आने वाले अभिनेताओं को ज्यादा मतलब नहीं रहता, उन्हें तो उनकी पद – प्रतिष्ठा का मोह ही राजनीति में लाता है I कुछ हद तक भारत की जातीय राजनीति भी उनकी सियासत में सफलताओं को प्रभावित करती है, अभिनेताओं की मज़बूरी है कि वे किसी जाति विशेष की राजनीति नही कर सकते, शत्रुघ्न सिन्हा प्रसिद्ध अभिनेता होने के बाद भी स्वजातीय बहुल क्षेत्र से ही चुनाव लड़ते हैं I ये अभिनेता ना चुनाव लड़ने के पहले न जनता से सीधे जुड़े होते हैं ना ही चुनाव जितने या हारने के बाद जनता से जुड़ पाते है, ये हमेशा जनता से एक सीमित दुरी बना के चलते हैं, जो इनके सियासत में असफल का एक प्रमुख कारण हैं I कुल मिलकर सिनेमाई सितारे यदि सियासत में मील का पत्थर बनना चाहते हैं तो उन्हें सामान्य लोगों से जुड़ना पड़ेगा , भारतीय संस्कृति के प्रति अपनी निष्ठा बनाई रखनी पड़ेगी, और सियासत को केवल पद-प्रतिष्ठा प्राप्त करने का मार्ग न समझकर जनसेवा का माध्यम बनाना होगा I
भारत के उलट विदेशों में अनेक सिनेमाई सितारें सियासत में काफी सफल हुए हैं, जिनमें अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन , आर्नल्ड स्छ्वाजेनेगर, सानी बोनो, क्लिंटवुड, ब्रिटेन के ग्लेंडा जैक्सन, माइकल कैसमैन, ग्रीस की नाना मुस्कुरी , मोलिना मर्कुरी, फिलीपीन्स के पूर्व राष्ट्रपति जोसफ ेस्ट्राडा की सियासती सफलता प्रसंशनीय रही हैं |
-डॉ. विवेक मणि त्रिपाठी