सिनेमा और मीडिया समाज के दर्पण हैं | इस दर्पण में सामाजिक चित्र-बिम्ब अपनी मुखर ध्वनि के साथ प्रतिबिम्बित होते हैं | इन्हें यदि समाज का दिव्य चक्षु कहा जाए तो शायद अतिशयोक्ति नहीं होगी , कारण कि इन्हीं दिव्य चक्षुओं के माध्यम से समाज अपने विविध रूपों का अवलोकन करता है  | सामाजिक तथ्यों एवं वास्तविकताओं को देखने , सुनने तथा समझने में सिनेमा और मीडिया की साहसिक भूमिका प्रशंसनीय है | ये सामाजिक नव जागरण के अग्रदूत हैं | इनमें समाज को नविन दिशा प्रदान करने की अपूर्व क्षमता विद्यमान है | सामाजिक जनमत के निर्माण में इनके अप्रतिम योगदान को भुलाना सम्भव नहीं  है |

             सिनेमा , मीडिया और समाज एक दूसरे के पुरक हैं | सामाजिक अभिव्यक्ति के सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथा सशक्त साधन सिनेमा एवं मीडिया ही हैं | सामाजिक नवचेतना को जागृत करने का गुरुत्तर भार भी सिनेमा और मीडिया पर ही है | ये राष्ट्रीय तथा सांस्कृतिक ध्वज के वाह्क भी हैं | गौरवशाली भारतीय अतीत की पुर्नस्थापना में सिनेमा और मीडिया का योगदान सराहनीय रहा है | विगत वर्षो में इनका विस्तार बड़ी हीं द्रुतगति से हुआ है | आज विश्व में शायद ही ऐसा कोई समाज होगा , जो इनके प्रभामंडल से प्रभावित न हो |

बीसवीं शताब्दी में भारतीय समाज को प्राप्त होने वाले उपहारों में सिनेमा सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं बहुमूल्य उपहार है | भारतीय सिनेमा को अपने वर्तमान रंगीन स्वरूप की प्राप्ति से पूर्व मूक, संवाद , श्वेत तथा श्याम फिल्मों के दौर से गुजरना पड़ा है | हिंदी सिनेमा की शुरुआत १९१३ ई. में बनी मूक धार्मिक फिल्म राजा हरिश्चंद्र से हुई है I

भारतीय सिनेमा के आरम्भिक काल में धार्मिक कथा-चित्रों का निर्माण अधिक हुआ है , जिनके माध्यम से समाज को धर्म एवं नैतिकता की शिक्षा दी गयी है |उच्च आदर्शों की पुर्नस्थापना का सन्देश भी दिया गया है |अनेक उपयोगी संदेशों के साथ साथ समाज को अपनी सभ्यता एवं संस्कृति से भी परिचित कराया गया है | धार्मिक फिल्मों के साथ ऐतिहासिक फ़िल्में भी बनी है ,जिनके नायक ऐतिहसिक पुरुष हैं | इन फिल्मों के माध्यम से समाज को अनेक ऐतिहासिक सत्यों से परिचित कराया गया है | भारतीय सिनेमा का उद्य भारतीय समाज की पराधीनता काल में हुआ था | फलत : भारतीय सिनेमा का शैशव काल पराधीनता में ही व्यतीत हुआ | पराधीन भारत में सिनेमा के माध्यम से राष्ट्रीयता एवं देशभक्ति की मुखर  अभिव्यक्ति संभव नहीं थी |

स्वाधीनता प्राप्ति के बाद देशभक्ति पर आधारित फ़िल्में बनने लगी | इन फिल्मों के माध्यम से भारतीय समाज में देशभक्ति तथा प्रखर राष्ट्रीयता का संचार हुआ | ऐसे फिल्मों के निर्माता , नायकों में मनोज कुमार का नाम सर्वाधिक चर्चित तथा प्रतिष्ठित है , जिन्हें भारतीय समाज ने “भारत कुमार ” के नाम से प्रशंसित तथा पुरस्कृत किया है | स्वंत्रता प्राप्ति के बाद के दशकों में सामाजिक तथा रोमांटिक फिल्मों का निर्माण बहुलता से हुआ है | सामाजिक तथा रोमांटिक फिल्मों के दौर को भारतीय सिनेमा का स्वर्णिम काल भी कहा जा सकता है | इस दौर से , पूर्व में निर्मित फिल्मों के नायक विशिष्ट प्रभा सम्पन्न ; ख्यातिलब्ध पुरुष हुआ करते थे , इसके विपरीत , सामाजिक तथा रोमांटिक फिल्मों के नायक सामान्य जन होने लगे | इन नायकों की नायिकाओं की सामाजिक पृष्टभूमि सामान्य कोटि की ही होती थी | सामाजिक  पृष्टभूमि वाली फिल्मों में दो आँखों बारह हाथ ,जागृति ,अछूत कन्या,बंदिनी आदि फ़िल्में खूब ही चर्चित रही |

इन फिल्मों के माध्यम से अनेक समयानुकूल सामाजिक संदेश दिये गये तथा जन-मानस की सोच को बदलने का सफल प्रयास भी किया गया |रोमांटिक फिल्मों में “कटी पतंग” विधवा विवाह पर आधारित फिल्म थी | इस  प्रकार की रोमांटिक फिल्मों में छिपे सामाजिक संदेशों से समाज में अनेक युगांतकारी परिवर्तन हुए | छुआ-छूत , जात-पात, सामाजिक भेद भाव तथा कुरीतियों के उन्मूलन की दृष्टि से इन फिल्मों में अनेक संदेश थे , जिससे युवावर्ग विशेष रूप से प्रभावित हुआ | “स्टारडम” की स्थापना हुई , रोमांटिक हीरो ” राजेश खन्ना पहले सुपर स्टार बने | नायक नायिकाओं के परिधान तथा फैशन का भी समाज पर प्रभाव पड़ा | आम जन तथा युवक युवतियाँ , नायक नायिकाओं के परिधान ,आभूषण तथा फैशन का अनुकरण करने लगे | सामाजिक जन अपनी सोच में फिल्मों की सोच को समाहित करने लगे |राजनेताओं की तरह अभिनेता एवं अभिनेत्रियाँ भी समाज में पूज्य मानी जाने लगी | ऐसे पूज्य अभिनेताओं तथा अभिनेत्रियों में एम .जी .रामचंद्रन एवं जयललिता का सामाजिक प्रभामंडल सर्वाधिक प्रभावशाली तथा आकर्षक रहा है | उनकी सामाजिक लोकप्रियता ने अभिनेता से सफल राजनेता बना दिया | हिंदी फिल्मों के वर्तमान सुपर स्टार अमिताभ बच्चन की सामाजिक ख्याति तथा प्रतिष्ठा आज भी वैसी है जैसी वर्षो पहले थी | इन्हें अपना आदर्श मान कर इनका अनुगमन करने वालों की संख्या लाखों में है | बदलते सामाजिक परिवेश तथा विखंडित होती हुयी सामाजिक मान्यताओं के अनुरूप आधुनिक भारतीय सिनेमा भी दिशाहीनता का शिकार हो चुका है | आधुनिक भारतीय सिनेमा सामाजिक कम व्यावसायिक अधिक हो गया है |

       प्रतिवर्ष बनने वाली सैकड़ों फिल्मों में गिनी चुनी फिल्में ही सामाजिक उत्कृष्टता के मापदंड पर स्थापित हो पा रही है | पुरानी फिल्में समाज के सभी वर्गों को ध्यान में रख कर बनाई जाती थी | सभी पारिवारिक जन एक साथ बैठ कर इन्हें देख सकते थे , किन्तु आज काल बनने वाली अधिकांश फ़िल्में पारिवारिक एवं नैतिक हितों की एक प्रकार से अनदेखी कर रही है , जिसके परिणाम स्वरुप  पारिवारिक जनों के साथ बैठ कर इन्हें देखने में कभी-कभी असहजता की अनुभूति होती है | आधुनिक भारतीय सिनेमा सुस्पष्ट सामाजिक सोच के अभाव में अपनी राह से भटक चुका है | पुरानी भारतीय फिल्मों का कथानक सामाजिक वास्तविकता एवं आवश्यकता के धरातल पर लिखा जाता था , जिनमें सुमधुर, कर्णप्रिय संगीत के साथ कालजयी गीत गाये जाते थे | इन फिल्मों के पात्रों की अभिनय करुणा ह्रदय के मर्मस्थल को स्पर्श करने में सर्वथा समर्थ होती थी | ये फ़िल्में स्वस्थ मनोरंजन के साथ-साथ सुस्पष्ट सामाजिक सन्देश भी देती थी , जिससे सामाजिक दशा का मूल्यांकन तथा सामाजिक दिशा का निर्धारण सिनेमा के माध्यम से संभव था | आज भी अनेक पुरानी कालजयी फ़िल्में जनमानस में रची बसी हैं | सिनेमा और समाज दोनों ही एक दूसरे की दशा और दिशा के निर्धारण में एक दूसरे पर आश्रित है |

      सिनेमा की तरह ही मीडिया भी हमारे सामाजिक जीवन का अभिन्न बन चूका है I मीडिया का तात्पर्य मीडियम या माध्यम से है | समाज में मीडिया की भूमिका संवाद संवहन की है | यह समाज में  विचारों तथा मुखर अभिव्यक्ति का संवहन करता है | इसे समाज की आवाज भी कहा जाता है | समाज के निर्माण तथा पुर्ननिर्माण में इसका योगदान सर्वाधिक है | यह संवाद-संचार का श्रेष्ठ माध्यम है | इसके अनेक रूप हैं , जिसमें प्रिंट मीडिया ,रेडियों , टेलीविजन , मास मीडिया तथा सोशल मीडिया प्रमुख हैं | यह संचार का ऐसा साधन है , जो एक साथ बहुत सारी-सी , जानकरियों को समाज के लाखों-करोड़ों लोगों तक पहुंचाता है | आजकल मीडिया जल एवं वायु के समान समाज की आवश्यक आवश्यकता बन चुकी है |

       समाज में मीडिया का शुभागमन सबसे पहले प्रिंट मीडिया के रूप में हुआ | प्रिंट मीडिया द्वारा समाचार पत्रों का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ |  समाचार पत्रों के माध्यम से सामयिक विचारों एवं त्वरित खबरों की धमक शहरों तथा सूदूर ग्रामीण क्षेत्रों में भी पहुँचने लगी I भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में गणेश शंकर विद्यार्थी जैसे महान पत्रकारों ने समाचार पत्रों के माध्यम से ही सामाजिक नव जागरण का संदेश जन -जन तक पहूँचाया | उसके बाद रेडियों , रेडियों- फ्रीक्वेंसी सेट गाँवों तथा शहरों में पहुँचनें   लगी | इनके माध्यम से विविध प्रकार की जानकारियाँ त्वरित गति से पहुंचनें लगी | इसके बाद टेलीविजन आया | टेलीविजन के चैनल पर विविध प्रकार के कर्यक्रम तथा समाचार आने लगे , जिन्हें हम सुनने के साथ-साथ देखने भी लगे | प्रारम्भ में मीडिया चैनल के नाम पर मात्र दूरदर्शन ही था | इसके बाद टेलीविजन के चैनल बढ़े, ¡¡ã २४ घंटे न्यूज़ ” आने लगे | गानों ,फिल्मों ,धार्मिक ,खेलों , कृषि ,कॉमेडी तथा विविध प्रकार की जानकरियों को देने वाले धारावाहिकों के लिए अलग अलग चैनल बने | सीरियल को पुन: टेलीकास्ट करने के लिए भी अलग-अलग चैनल बने | मीडिया समाज के सभी क्षेत्रों में नये -नये मापदंड स्थापित करने लगा है | इसकी पहुँच , पकड़ तथा प्रभाव से समाज का कोई भी क्षेत्र अछुता नही है | टीवी पर आने वाले मीडिया को ” मास-मीडिया ” के नाम से जाना जाता है | समाज में मास मीडिया प्रसार बड़ी ही तीव्र गति से हुआ है | उदहारण स्वरूप न्यूज़ चैनलों में ही स्थानीय समाचार , प्रदेश के लिए समाचार , देश , विदेश तथा शेयर मार्केट से सम्बन्धित समाचारों के लिए न्यूज़ चैनल हैं | क्षेत्रिय भाषाओं के साथ- साथ सभी प्रमुख भाषाओं में अलग-अलग चैनल हैं | त्वरित जानकारी के लिए इन्टरनेट सेवा है | खेल चैनलों के माध्यम से घर बैठे विश्व के सुदुर स्थानों में खेले जाने वाले खेलों का आनंद लिया जा रहा है | “डिस्कवरी” जैसे चैनल बच्चों के लिए मनोरंजक होने के साथ साथ ज्ञान वर्धक भी हैं | धार्मिक चैनलों का लाभ समाज के बड़े बूढ़े उठाते हैं | मीडिया विविध प्रकार के उत्पादों का विज्ञापन भी करता है | मीडिया ” लाइव न्यूज़ ” देता है , जो विश्व की घटनों पर आधारित होता है |

       मास मीडिया के बाद समाज में सोशल मीडिया आया | सोशल मीडिया व इन्टरनेट के माध्यम से ” वर्चुअल वर्ड ” बनाता है | सोशल मीडिया सामाजिक तथा व्यक्तिगत जीवन का अहम् हिस्सा बन चुका है | फेसबुक ,ट्विटर ,इन्स्टाग्राम आदि सोशल मीडिया के प्लेटफार्म है | सूचनाएँ प्रदान करना , मनोरंजन करना शिक्षित करना सोशल मीडिया के फीचर है | यह प्रिंट ,इलेक्ट्रॉनिक तथा समानांतर मीडिया से अलग है | साइबर अपराध सोशल मीडिया से जुड़ी सबसे बड़ी समस्या है | यह एक अपरम्परागत मीडिया है | इसका विशाल नेटवर्क है , जो सम्पूर्ण विश्व के समाज को जोड़े हुए है |    

सोशल मीडिया व्यक्ति को समाज से जोड़ने का सर्वोत्तम साधन है I संसार के किसी भी भाग में बैठा व्यक्ति स्वयं को सोशल मीडिया के माध्यम से अपडेट रखता है I स्वजनों,मित्रों तथा समाज से मिलने का सबसे सुगम साधन सोशल मीडिया ही है I व्यस्तम समयों में भी फेसबुक, ट्विटर तथा ह्वाट्सअप्प के माध्यम से हम दुसरे के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं I सोशल मीडिया लोगों को एक दुसरे के नजदीक लाने का माध्यम है I लोकप्रियता प्राप्ति के लिए इससे उत्तम दुसरा माध्यम नहीं है I नेता हो या अभिनेता, उद्योगपति हो या साहित्यकार, सभी प्रसिद्ध व्यक्ति सोशल मीडिया पर अपने को अपडेट रखते हैं I

सोशल मीडिया में व्यक्ति स्वयं ही लेखक,संपादक, विज्ञापन कर्ता , प्रकाशक , वितरक बन जाता है I अपने लेख या कार्टून आदि के प्रकाशन के लिए व्यक्ति को समाचार पत्रों के कार्यालयों का चक्कर नहीं लगाना पड़ता है I बहुत से लोग पैसों के अभाव में अपनी कला का प्रदर्शन नहीं कर पाते थे,सोशल मीडिया के माध्यम से अब ऐसे लोग बड़े स्तर पर अपनी कला तथा विचारों का समुचित रूप से प्रदर्शन कर सकते हैं I सोशल मीडिया प्रत्येक व्यक्ति के लिए अपने विचारों तथा कार्य योजनाओं को प्रकटित करने वाला खुला मंच है I हम घर बैठे सोशल मीडिया द्वारा सरकार तथा व्यक्ति विशेष के विषय में अपना विचार प्रकट कर सकते हैं I व्यक्ति, विचार, संस्था या राजनितिक दल समालोचना-आलोचना अपनी समझ तथा बुद्धि के अनुसार कर सकते हैं I सोशल मीडिया अपनी सकारात्मक सोच द्वारा व्यक्ति, समाज , समूह ,संस्था तथा राष्ट्र को आर्थिक , सामाजिक , सांस्कृतिक तथा राजनैतिक रूप से समृद्ध बना सकता है I  

सोशल मीडिया व्यक्ति को सत्ता प्रतिष्ठानों तथा विविध संस्थाओं से जोड़ने वाला महत्वपूर्ण सेतु है | इसमें व्यवस्था परिवर्तन की भी अपूर्व क्षमता विद्यमान है ,तथापि इसे अपनी क्षमता का सदुपयोग करना चाहिए दुरुपयोग नही | “डाटा”, आकड़ों तथा जानकारियों को इकठ्ठा करने तथा सुरक्षित रखने में भी इसका महत्वपूर्ण योगदान है |

          सोशल मीडिया युवाओं का खुला मंच है | वर्तमान में यह इनका सबसे बड़ा सहायक तथा मार्गदर्शक भी है | यह इन्हें विविध प्रकार की सामग्रियाँ तथा जानकारियों प्रदान करता है , जो उनके भविष्य निर्माण में सहायक सिद्ध होती है | यह समाज तथा विशेषकर युवाओं में उत्साह तथा उर्जा का संचार कर , उन्हें मुखर बनता है | मीडिया व्यक्तित्त्व निर्माण में सबसे बड़ा सहायक है | यह व्यक्तित्व  को तरासने का कार्य भी करती है | अभिनेताओं तथा राजनेताओं को उचांई प्रदान करने में भी मीडिया की भूमिका सहायक की रहती है | यह नायक कों खलनायक भी बना सकते है |

       सिनेमा और मीडिया , समाज के प्रति जहाँ अपने सकारात्मक सोच तथा प्रभाव के लिए विख्यात हैं,वंही अपने नकारात्मक सोच तथा कार्यों के लिए भी कुख्यात हैं | ये अपने वर्त्तमान स्वरूप में भिन्न -भिन्न विचार धाराओं के समर्थक तथा विरोधी वर्ग में बटे हुए दिखलायी पड़ते हैं | इनके द्वारा फूहड़ता भी परोसी जाती है जिससे कि सुसभ्य सामाजिक असहजता महसूस करते है | ये अपनी अधकचरे दृश्यों तथा ख़बरों द्वारा समाज में अफवाह, असहिष्णुता तथा उत्तेजना भी फैलाते हैं | जिससे इन्हें बचना चाहिए | फिल्मों तथा कर्यक्रमों की अधिकता तथा उनके निर्माताओं की व्यवसायिक सोच के कारण फिल्मों का स्तर तथा मीडिया के कर्यक्रमों की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है , जो कि चिंता का विषय है | मीडिया द्वारा व्यक्ति विशेष की अनुचित आलोचना भी की जाती है | मीडिया ” न्यूज़” बनाने के लिए किसी भी स्तर तक जा सकता है | दुर्घटनाओं तथा आपदाओं  के समय भी मीडिया वाले मदद करने की अपेक्षा न्यूज़ बनाने में लगे रहते हैं  | विज्ञापनों की अधिकता  के कारण प्रसारित होने वाले कार्यक्रम छोटे होते जा रहे हैं | अपराध से जुड़े प्रोग्राम समाज को गलत दिशा में ले जा रहे हैं | सिनेमा तथा मीडिया में दिखाये गए से स्टंट प्रभावित हो कर बच्चे भी वैसा ही करते है तथा हानि प्राप्त करते है |

सिनेमा और मीडिया वर्त्तमान वैश्विक समाज की आवश्यक ही नहीं, अपितु अपरिहार्य आवश्यकता है | सिनेमा और मीडिया वैश्विक समाज के लिए किसी वरदान से कम नहीं हैं | वर्तमान शाताब्दी में समाज की दिशा और दशा को प्रभावित करने वाले सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारक सिनेमा और मीडिया ही हैं  | सिनेमा , मीडिया तथा समाज एक दूसरे के पूरक तथा दिशा – सूचक हैं| सिनेमा की सफलता तथा मीडिया की लोकप्रियता का प्रमाण – पत्र समाज ही देता है | समाज की सोच में परिवर्तन तथा सामाजिक मूल्यों की स्थापना एवं पुर्नस्थापना की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सिनेमा,मीडिया तथा समाज पर ही है |       

-डॉ. विवेक मणि त्रिपाठी

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