आजकल मेरे स्कूल के दो क्लास्मेट याद आते हैं… वीक्टर और आलेक्स। ऐसा नहीं हैं कि मेरे बहुत पक्के मित्र थे, किंतु किशोरावास्था के एक दौर में काफ़ी करीब हो गए थे। आठवीं कक्षा में मुझें आधुनिक लोकप्रिय नृत्य का शौक चढा था जो हिप-हॉप सांगीत के साथ तब पश्चिम से आया था। तभी हमारे शहर में पहली नृत्य-प्रतियोगिताएँ होने लगी, युवा पीढ़ी जोश में आकर मंच को चमका देती थी। मैंने ग्रूप-डांस के लिए उन्हीं दो लड़कों के साथ एक बेंड बना लिया था, उनको भी काफ़ी रुचि थी। मिलकर प्रस्तुति की तैयारी करने का कोई ठिकाना नहीं था तो एक दूसरे के घर जाकर ख़ूब नाचते थे। प्रतियोगिताओ में भाग लेकर कोई बड़ी उंचाई प्राप्त तो नहीं की थी पर मज़ा बहुत आया था। आगे जीवन में गाढ़े मित्र न रहकर भी एक मंचीय “तिकड़ी” ज़रूर रहे थे…
स्कूल की पढ़ाई पूरी होने के बाद तीनों के रास्ते अलग-अलग हो गए थे। वीक्टर, जो कि हमेशा से थोड़ा गुंडा-किस्म का लड़का था, आर्मी में गया था, वहीं अपने स्वभाव को सही दिशा दे पाया था, 2014 में जब युक्रैन के पूर्व में रूसियों का अघोषित हस्तक्षेप शुरू हुआ था तो लड़ने भी गया था, घायल भी हुआ था। आलेक्स शांत स्वभाव का था, मज़ाक-मस्ती का शौकिन। कॉलेज के बाद व्यापार में अपना स्थान ढूँढ लिया था। उच्च पढ़ाई करके प्रोफ़ेसर बनना, भारत और हिंदी से अपना जीवन जोड़ना मेरे भाग्य में था… दशकों तक नहीं मिले थे आपस में तीनों… इतना पता था कि उन दोनों के बीवी-बच्चे हैं…
24 फरवरी 2022 को जब रूस का पूर्ण पैमाने पर आक्रमण शुरू हुआ, सब का जीवन बदल गया… शिक्षा-क्षेत्र से जुड़ा होने के कारण मैं मोर्चे से काफ़ी दूर रहता हूँ, युद्ध केवल समाचारों में सामने आता है…
पहला समाचार आया वीक्टर का… युद्ध के पहले महीनों में वह शहीद हो गया था… आलेक्स का पता नहीं था, पर उसकी भी सेना में भरती हो सकती है उतना जानता था। युद्ध का दूसरा वर्ष समाप्त होने आया था तब उसकी भी शहादत की सूचना मिली…
मंच पर नाचती हुई, किशोरावस्था के जोश से भरी अपनी “तिकड़ी” याद आती है और मन असमंजस में पड़ जाता है… मिलकर बड़े हो रहे थे, भविष्य के सपने देख रहे थे… “वीर कभी नहीं मरते” – यह नारा बहुत प्रचलित है यहाँ… पर उन दोनों, और उन जैसे लाखों के परिवारों को क्या यह कथन शोक में मना पाया है? कभी मना पाएगा?..