फ़्लू

डॉ. शैलजा सक्सेना

आज विभाग के मुख्यसचिव दौरा करने आ रहे थे।

पिछले बार जब मुख्यसचिव आए थे तब नीता असिस्टेंट सैक्शन ऑफिसर बनी ही थी। उस को यह ज़िम्मेदारी

मिली कि वह मुख्यसचिव को विभाग की पूरी रिपोर्ट प्रस्तुत करे। मुख्यसचिव आये और हाथ मिलाने के बहाने

बहुत देर तक उसका हाथ पकड़ कर खड़े रहे थे। उनकी आँखॆं उस पर रेंगती रहीं। नीता को बहुत लिजलिजा

सा लगा। वह किसी तरह अपनी ज़िम्मेदारी निपटा कर वाशरूम भागी। बहुत देर तक वह अपने हाथ धोती रही

पर महासचिव की आँखें जो उसके शरीर पर रेंग चुकी थीं, उन्हें कैसे हटाती? नीता को घिन हो आई। उसकी

सहयोगी स्त्रियों ने उसे समझाया कि ऐसे बीमार पुरुष हर जगह हैं, परेशान होने से तो काम नहीं चलेगा, कुछ

कहोगी तो समझो, अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली। नीता भी कोई विवाद नहीं चाहती थी पर पिछली बार

की बात याद कर वह घृणा से भर गई।

अब वह सैक्शन ऑफिसर है, पद के अनुरूप उससे अपेक्षा थी कि वह मुख्यसचिव की अगवानी करे और उन्हें

कार्यालय की स्थिति से परिचित करवाये।

मुख्यसचिव ने आते ही तपाक से हाथ आगे बढ़ाया, “हैलो नीता जी, कैसी हैं?” नीता ने दोनों हाथ जोड़ कर

नमस्ते करते हुए कहा, “सर, एकदम ठीक!” बढ़े हुए हाथ को खाली जाता देख मुख्यसचिव का अहंकार आहत

हुआ, बोले, “यह क्या नीता जी, आपको तो हाथ मिलाने से भी परहेज़ है, साथ काम कैसे करेंगी? साथ काम

करने से तो परहेज़ नहीं है न?” इस स्वर में व्यंग्य और धमकी दोनों थी। उसकी महिला सहयोगी उसे

असमंजस से देख रही थीं। पुरुष सहयोगी मुख्यसचिव के लोलुप स्वभाव को जानते थे पर इस स्थिति में क्या

कहते, मुँह में ही कुछ बुद्बुदाकर रह गये। नीता ने किसी को अधिक सोचने का समय न देते हुए कहा, “सर,

साथ काम करने से क्यों परहेज़ होगा! कोविड़ के बाद अब फ़्लू- सीज़न में आपसे हाथ मिला आपको बीमार

थोड़े ही करना है, हम तो यही चाहते हैं कि आप कभी बीमार न हों!” कह कर वह भी व्यंग्य से मुस्कुराई और

समर्थन पाने के लिए उसने सभी सहयोगियों की ओर देखा, उसकी चतुराई पर उन्होंने भी अपनी हँसी दबाते

हुए उसकी ’हाँ, सर’ कहते हुए सहमति जताई। मुख्यसचिव ने एक जलती हुई नज़र सब पर डाली और

खिसियानी हँसी से ’हें’..’हें’ कह कर आगे बढ़ गए। नीता भी विजयी मुस्कान से सबको देखती हुई उनके पीछे चल दी।

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লেখিকা-  ডক্টর শৈলজা সাক্সেনা

অনুবাদক- আশা বর্মন

ফ্লু

আজকে  মুখ্যসচিব আসছেন ডিপার্টমেন্টের ইন্সপেকশন করতে।  গতবার যখন উনি এসেছিলেন,  নীতা অ্যাসিস্ট্যান্ট অফিসর ছিল।  ডিপার্টমেন্টের সমস্ত রিপোর্ট দেবার ওরই  দায়িত্ব ছিল। 

 সেদিনে মুখ্যসচিব  অভিবাদনের  অজুহাতে ওর হাতে হাত রেখেছিলেন এবং অনেকক্ষণ ধরে হাত ছাড়াতে চাননি।  শুধু তাই নয়, ওর নির্লজ্জ চাউনি আর কর্দমাক্ত হাতের স্পর্শ   নীতার সর্বাঙ্গে এমন ভাবে মিশেছিল যে  বহুবার সাবানে ধুয়েও সেই মলিনতা ও কিছু তেই দূর করতে পারেনি।

অন্য মহিলা সহকর্মীরা সব  দেখে ওকে  বুঝিয়েছিল  যে “ এইরকম লোক সব জায়গায়ই  আছে। এতো ভাবলে চলে না।  কিছু বলতে গেলে  তোমারই ক্ষতি হবে।“  বিগত ঘটনার কথা ভাবলেই ওর মনে ঘৃণা ভরে যায়।

 এখন তো ও আছে সেকশন অফিসার। মুখ্যসচিব  কে অভ্যর্থনা করা আর ওনাকে  অফিসের সব কাজটা বুঝিয়ে দেওয়া ওরই  দায়িত্বের মধ্যে পড়ে।  আজকে  আবার যখন মুখ্যসচিব  করমর্দনের জন্যে হাত বাড়ালেন, আর বললেন, “হ্যালো নীতা দেবী, কেমন আছেন”? নীতা হাত জোড় করে নমস্কারের ভঙ্গিতে দাঁড়িয়ে বলল, “একদম ঠিক”।

এই দেখে উনি অপমানিত বোধ করলেন , বললেন “সে কি? কি হলো নীতা দেবী, আপনি আমার সাথে হাত মেলাবেন  না?”  আপনার সঙ্গে আমি কি ভাবে কাজ করব, বলুন তো? আমার সঙ্গে কাজ করতে আপনার  আপত্তি নেই তো।“এই স্বরে  ব্যঙ্গ ছিল আর ছিল ধমক।

 ওর মহিলা কর্মচারীরা হতবাক হয় তাকালো কিন্তু পুরুষকর্মচারীরা  চুপ করে দাঁড়িয়ে থাকল । ওরা  মুখ্যসচিবের  নারীদের  প্রতি দুর্বলতার কথা  জানত।

কাউকে বেশি ভাবার সময় না দিয়ে নীতা বলল,” স্যার,আপনার সাথে কাজ করলে আপত্তি আবার কিসের? এখন  তো ফ্লু সিজন, আর আপনি নিশ্চয়ই চাইবেন না যে অন্যদের হাত মেলাতে গিয়ে ওদের শরীরের  জীবাণু আপনার মধ্যে সংক্রমিত হউক।”  নীতা  মৃদু হেসে সকল সহকর্মীদের দিকে  তাকালো। সবাই ওর চালাকি দেখে বললেন, ”তাই তো স্যার, তাই।“

মুখ্যসচিব  সবার দিকে বিরক্ত ভাবে তাকালেন আর বললেন “ঠিকই বলেছেন .ঠিকই বলেছেন” বলে এগিয়ে গেলেন। তারপরে নীতা  বিজয়িনী ভাবে সকলের দিকে তাকিয়ে উনার  পিছনে চলে যায়।

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