
‘इ’, देखन में छोटी लगे…

स्वरांगी साने
‘इंगित पर तुम्हारे ही भीम ने अधर्म किया…’ धर्मवीर भारती लिखित ‘अंधा युग’ में गांधारी का यह विलाप ‘इ’ की इतनी ताकत को इंगित करता है। छोटी ‘इ’ भले ही दिखने में छोटी हो लेकिन जैसे घाव करत गंभीर…इसलिए ‘इ’ का इस्तेमाल सोच-समझकर करना चाहिए ताकि इंशा अल्लाह खैरियत बनी रहे। सबके बीच कोई तकरार न हो केवल ‘इ’ का इकरार हो ताकि इहलोक में कोई महाभारत फिर न हो।
इकारांत की ताकत
‘इ’ से इंकलाब हुआ, इतस्तत: फैले लोग इकट्ठे हुए और इकबारगी इकतरफ़ा ही सही, पर इक इकतारा बज उठा। जैसे ख़ून का इक कतरा बहाए बिना फ्रांस की राज्य क्रांति का इतिहास बना, वैसे ही महात्मा गाँधी, नेल्सन मंडेला जैसे अपने-अपने देशों में इकलौते मसीहा भी इसी ‘इ’ से उभरे। इक इकाई भर कहलाते इन्हीं इक्का-दुक्का लोगों ने केवल आदि-इत्यादि न हो, क्या कुछ कर सकते हैं इसी ‘इ’ से दिखला दिया। उन्हें कितना भी इधर-उधर करने की गुरेज़ की गई लेकिन फिर किसी इकबाल ने लिखा ‘सारे जहाँ से अच्छा..’ और फिर सब गा पड़े- ‘हिंदोस्ताँ हमारा’।
आज़ादी की रात जलेबी बँटी तो इस ‘इ’ की इमरती भी। यह सब इत्तेफ़ाक से तो नहीं हुआ न? ‘इ’ की इच्छा होनी चाहिए। इच्छा शक्ति में इकारांत की वो ताकत है जो इख़्तियार कर ली जाए तो क्या कुछ संभव नहीं हो सकता? और जो होता है, उसकी इत्तिला सबको मिल ही जाती है। उसके लिए इश्तहार नहीं लगाना पड़ता।
इच्छापत्र
‘इ’ से किसी इंसान के बच्चे को कभी ‘इ’ के इनक्यूबेटर में रहना पड़ा पर वह जी गया…कुछ बड़े होने पर उसके बाल मन पर फंतासी की दुनिया से ‘इ’ वाले इच्छाधारी नाग की कथा उकेर आई तो युवावस्था में इच्छुक उम्मीदवार के रूप में इस ‘इ’ में हर किसी ने अपनी योग्यता का इज़ाफ़ा देखा, कभी इस्तीफ़ा देने का मन बना। इसी ‘इ’ की इनस्टॉलमेंट पर जीवन कटा और बुढ़ापे का इनाम मिला तो इसी ‘इ’ से इच्छापत्र लिखने की तैयारी हो गई।
इतने इतराने वाले
‘इ’ से इश्क हुआ, इशारा हुआ, इनकार हुआ, इकरार हुआ, इज़हार हुआ और फिर इंतज़ार भी हुआ, इनायत हुई और इबादत करने की इज़ाज़त भी मिल गई। इधर ये इबारत लिखी गई उधर ‘इ’ से इज़्ज़तदार लोगों ने इश्क और इत्र की महक को पहचान इलज़ाम लगाए। ‘इ’ पर इतने इतराने वाले अपने-अपने इलाकों में हर इम्तहान देते गए, इंतिहा की हद तक इठलाते रहे, इनके इतवार के इतवार मिलने से बाग गुलज़ार हुए। नए परिंदों ने इयरफ़ोन डाल जग की अनसुनी की और इरादतन अपने लिए इश्क की इमारत रच ली, एक-दूसरे को पान-इलायची का सगुन दे दिया। पर यदि इलास्टिक की तरह खींचा गया तो इमारत चरमराने भी लगी और मुँह से या इलाही निकल पड़ा। इसलिए ‘इ’ से इष्ट वरदान चाहने की प्रार्थना हुई और इष्ट फल भी मिला।
जो बीता वह इस सदी का इक्कीसवाँ साल था… ऐसा इति का इतिवृत्त और इतिश्री भी है।
इंतज़ार कीजिए…
अ से श्र तक
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