ख़ाकी पोशाकें और भारी फ़ौजी बूट पहने धूल से पूरी तरह लथपथ वे अपने ख़ेमों की ओर लौट रहे थे। उनके चेहरे बता रहे थे कि मन में बहुत उथल-पुथल है। सर्दियों के छोटे दिन थे, रौशनी तेज़ी से घटती जा रही थी। अँधेरा होने के पहले उन्हें अपने मुक़ाम पर पहुँचना था। सिर्गेई अभी कुछ दिन पहले ही सीमा-शुल्क विभाग से सीधा इस बटालियन से जुड़ा था, वह एक शौक़िया एथलीट भी था। हरदम गुमसुम-सा रहने वाला वह उस दिन भी किसी सोच में डूबा चला जा रहा था। अचानक धमाका हुआ। सभी जवान फ़ौरन लेट गए लेकिन विस्फोट ने कुछ को आहत कर दिया था। सिर्गेई सेना के पैंतरों में अभी अनुभवी तो न था लेकिन एथलीट होने के नाते फुर्ती और चपलता उसमें कूट-कूट कर भरी थी। उसके साथियों को लगता था कि इसी कारण वह हर मुसीबत से बाल-बाल बच जाता है। बहरहाल अब घायलों को उठा कर जल्द से जल्द शिविर-अस्पताल तक ले जाने की भागदौड़ शुरू हुई। सिर्गेई सबसे आगे की पंक्ति में था। कमांडर ने सिर्गेई और इवान से अस्पताल में रुकने को कहा और बाक़ी सबको ख़ेमों की ओर कूच करने का आदेश दिया।
थोड़ी देर बाद डॉक्टर ने आकर बताया कि सर्जेंट अल्योशा के ऑपरेशन में कुछ कठिनाइयाँ आ रही हैं, कितना वक़्त लगेगा अभी यह कहा नहीं जा सकता।
इवान और सिर्गेई अब इत्मीनान से बातें करने लगे, एक दूसरे को बेहतर जानने लगे। अपने अनुभव साझा करने लगे। इसी बातचीत के दौरान सिर्गेई ने अपने परिवार के बारे में इवान को बताया।
इवान इस बात पर विश्वास न कर पाया कि सिर्गेई जैसे परिवार से भी किसी को मोर्चे पर भेजा जा सकता है।
इवान – लेकिन यह हुआ कैसे?
सिर्गेई ने बताया कि काम से लौटकर रोज़ घरपर वह अपने बच्चों के साथ टीवी पर ख़बरें और दूसरे कार्यक्रम देखा करता था। बच्चे जंग से जुड़े सवाल पूछा करते थे। वह उन्हें उनकी समझ के अनुसार जवाब देने की कोशिश करता था। उसका बड़ा बेटा ईगर १० साल का है और तीसरी कक्षा में पढ़ता है। बेटी कात्या पहली कक्षा में है और आठ साल की है। साशा, दिनीस और लेना अभी स्कूल नहीं जाते हैं। बच्चों के नाना-नानी घर पर साथ ही रहते हैं। छोटे बच्चे दिन भर उन्हीं के साथ लगे रहते हैं, उनसे कहानियाँ सुनते हैं। दिन में दो-तीन बार नाना-नानी घूमने के लिए उन्हें पार्क वग़ैरह ले जाते हैं और रोज़मर्रा की ज़रूरी ख़रीदारी भी कर लाते हैं।
इवान चौंका इसलिए था क्योंकि रूस के जिस परिवार में तीन या उससे अधिक बच्चे होते हैं, उस परिवार के मर्दों को जंग पर नहीं भेजा जाता है तो फिर सिर्गेई वहाँ कैसे पहुँचा। यह माना जाता है कि इतने बच्चों की परवरिश माँ अकेली ठीक से नहीं कर सकती। दुनिया के कई देशों की तरह रूस में भी घटती आबादी की समस्या है। इसलिए जिस परिवार में दो से अधिक बच्चे होते हैं उन्हें विशेष सुविधाएँ दी जाती हैं।
एक दिन शाम को टीवी पर सबने देखा कि कुछ बच्चों के पापा जब जंग से परिजनों से मिलने कुछ समय के लिए घर लौटे तो उनका ख़ूब आदर-सत्कार किया गया। यह देखकर सिर्गेई के बड़े बेटे ईगर ने पूछा कि आप मोर्चे पर क्यों नहीं जाते?
सिर्गेई ने समझाने की कोशिश करते हुए कहा: बेटा हमारा परिवार बड़ा है, माँ कैसे अकेले तुम सब की देखभाल करेगी?
ईगर इस जवाब से संतुष्ट नहीं हुआ, प्रश्नवाचक निगाहों से सिर्गेई को देखता रहा।
सिर्गेई को लगा मानो ईगर कह रहा हो कि माँ अकेली कहाँ है, नाना-नानी भी तो हैं। साशा, दिनीस और लेना तो उन्हीं के आगे-पीछे लगे रहते हैं। आपको हमें जंग की कहानियाँ वहाँ से लौटकर सुनानी चाहिएँ न कि टीवी की ख़बरों से।
ईगर की उस सवालिया निगाह ने सिर्गेई को अजब उहापोह में डाल दिया। सोते समय अपने मन की बात उसने पत्नी ईरा को बताई।
ईरा को लगा कि सिर्गेई ने बच्चे के जिज्ञासा भरे सवाल को कुछ ज़्यादा ही दिल से लगा लिया है। वह बोली, “ईगर अभी जंग की बारीकियों को नहीं समझता है। तुम्हें उसे बताना चाहिए था कि जंग पर न जाने का फ़ैसला तुम्हारे अकेले का नहीं है, देश का है। देश के नेता चाहते हैं कि देश की आबादी बढ़े उन परिवारों के माँ-बाप एक ही शहर में काम करें जिनमें बच्चे अधिक हैं।
बेटे की प्रश्नवाचक दृष्टि ने सिर्गेई के माथे पर जो शिकन गढ़ी थी, वह घटती ही नहीं थी। ईरा ने काफ़ी तर्क-वितर्क प्रस्तुत किए लेकिन सिर्गेई को यह आत्मग्लानि सताती ही रही कि उसका बेटा उसके देशप्रेम पर शंका करेगा।
अगले दिन की शुरुआत नित्य की तरह पौ फटते ही हो गई। ईरा और सिर्गेई ने रोज़ की तरह ईगर और कात्या को स्कूल के लिए तैयार किया और साथ ही ख़ुद भी काम पर जाने के लिए तैयार हुए। सब कुछ रोज़ जैसा ही था। बाक़ी तीन बच्चे और नाना-नानी घर पर ही रहे। ईगर और कात्या को स्कूल के गेट तक छोड़कर ईरा और सिर्गेई मेट्रो में सवार होकर अपने-अपने कामों पर चले गए।
उक्रैन के साथ युद्ध शुरू होने के बाद देश का निर्यात-आयात पूरी तरह से बदल गया था, कई नए नियम और प्रतिबन्ध लागू हुए थे। ज़रूरी चीज़ों के आयात और अपने देश के उत्पादों के निर्यात के लिए नए मार्ग तलाशे जा रहे थे। इस सब का अर्थ संक्षेप में यह होता था कि विभाग का काम अप्रत्याशित रूप से बढ़ जाने के कारण सिर्गेई का काम भी बहुत बढ़ गया था। सिर्गेई पूरा दिन अपने प्रबंधक से बात करने का लम्हा तलाशता रहा और अपनी बात उस तक पहुँचाने के लिए शब्द चुनता रहा। यकायक प्रबंधक ने उसे खुद अपने दफ्तर में बुला भेजा।
प्रबंधक ने सिर्गेई को कुछ नए ज़रूरी कामों के बारे में बताया और उनकी ज़िम्मेदारी उसे सौंपनी चाही।
सिर्गेई ने बहुत झिझकते हुए अपने प्रबंधक से कहा कि वह मोर्चे पर जाना चाहेगा, विशेष सैन्य अभियान से जुड़ना चाहेगा।
प्रबंधक भी उसकी बात सुनकर चौंका और यह जानने के लिए कि कहीं सिर्गेई मज़ाक तो नहीं कर रहा उसने पैनी नज़र से उसकी तरफ़ देखा।
सिर्गेई पूरी संजीदगी से खड़ा था।
प्रबंधक: तुम्हें अचानक यह ख़याल क्यों आया, तुम्हारे तो पाँच छोटे बच्चे हैं?
ईगर: बड़े बेटे के सवाल पूछने पर।
प्रबंधक: पर तुम्हारे बच्चों की परवरिश कैसे होगी?
सिर्गेई: घर पर ईरा के माता-पिता भी रहते हैं। ईरा उनकी मदद से मेरे लौटने तक बच्चों की देखभाल कर लेगी।
प्रबंधक: आख़िर ईगर ने ऐसा क्या पूछ लिया या कह दिया?
सिर्गेई: यही कि मैं मोर्चे पर क्यों नहीं जाता?
प्रबंधक: ईगर तो अब स्कूल जाता है, तुम्हें उसे पूरी बात समझानी चाहिए थी।
सिर्गेई: समझाई थी।
प्रबंधक: तो फिर?
सिर्गेई: उसने मेरी बात सुनी और चुप हो गया लेकिन उसकी निगाहों में सवाल बने रहे। उसके मूक प्रश्न ही मुझे परेशान किए हुए हैं। उनसे मेरे दिमाग़ में जो खलबली मची है, वह जंग की मुश्किलात से कम नहीं। मैं समझ गया हूँ कि देश पर मर-मिटने की भावना कहानियाँ सुनाकर या इतिहास पढ़ाकर नहीं जगाई जा सकती, उसके लिए ख़ुद किसी कहानी का नायक बनना पड़ता है।
प्रबंधक: भावना में बहकर कोई फ़ैसला मत लेना। जंग में जाने का मतलब तो समझते हो न तुम?
सिर्गेई: मेरा फ़ैसला आखिरी है, आप कृपया जंग में बतौर स्वयंसेवक जाने की मेरी अर्ज़ी पर दस्तख़त करके उसे आगे भेज दीजिए।
प्रबंधक ने एक बार फिर सिर्गेई की तरफ़ देखा, उसे उसकी नज़रों में दृढ-निश्चय के सिवाय कुछ न दिखा।
उसने वह अर्ज़ी ले ली और सिर्गेई से अपने काम जल्द से जल्द पूरे करने को कहा।
सिर्गेई वापिस जब अपनी डेस्क पर आया, उसके मन और कन्धों से बड़ा बोझ उतर गया था। अजीब फुर्ती उसके रगों में दौड़ने लगी थी। दिन भर से जो काम वह कर नहीं पा रहा था, वे फटाफट होने लगे।
घर लौटते समय उसके मन में शांति थी, संतोष था।
रोज़ की तरह उसने बच्चों के साथ टीवी देखा, उनके सवालों के जवाब दिए। ईगर तो जैसे कल की बातें भूल गया था। खेल-खेल में ही अपना होमवर्क कर रहा था, अपने बहन-भाइयों पर धौंस भी जमा रहा था और दिमाग़ में आते सवाल दाग़ रहा था।
रात में सिर्गेई ने ईरा को बताया कि उसके प्रबंधक ने उसकी अर्ज़ी ले ली है और सारे काम जल्द से जल्द ख़त्म करने को कहा है।
ईरा ने फिर सिर्गेई से पूछा कि कहीं वह ईगर के बातों-बातों में पूछे गए सवाल को कुछ ज़्यादा गंभीरता से तो नहीं ले रहा?
सिर्गेई ने कहा कि उस सवाल ने अनजाने में उससे वह करा लिया है जो उसे शायद बहुत पहले कर लेना चाहिए था।
परिवार के सब सदस्यों के लिए दिन वैसे ही बीतते गए जैसे पहले बीतते थे, पर सिर्गेई को रोज़ जंग पर जाने के सन्देश का इंतज़ार रहता।
अर्ज़ी देने के दो हफ़्तों बाद उसे आख़िरकार वह काग़ज़ मिल ही गया। उसे एक हफ़्ते के बाद मोर्चे पर कूच करने का ऑर्डर मिला था।
घर आकर उसने यह ख़बर जब सबको सुनाई तो पत्नी ईरा के अलावा सब सकते में आ गए। सिर्गेई के सास-ससुर यह समझ ही न पाए कि ऐसा कैसे हो गया।
बहरहाल अभी मोर्चे पर जाने की तैयारी करने के लिए हफ़्ते भर का समय था। आदतन सिर्गेई ने बच्चों के साथ बैठकर टीवी देखा। उस दिन ईगर उसके बग़ल में ही बैठा रहा और मन में उठते सवाल पूछता रहा। आज घर लौटते सैनिकों की होती आवभगत ने उसके मन में प्रश्न नहीं उठाए बल्कि इस आश्वासन ने उसे मानो शांति दी हो कि जल्दी ही उसके पापा और उसे भी ऐसे ही टीवी पर दिखाया जाएगा। उसके पापा के बहादुरी के क़िस्से सुनाए जाएँगे। सब लोग उसके पापा से भी जंग और मोर्चे के बारे में सवाल पूछेंगे। उसकी आँखों में एक अनोखी चमक थी।
एक हफ़्ता गुजरने में वक़्त नहीं लगता। आख़िर सिर्गेई के मोर्चे पर जाने का दिन आ गया। सबने अपनी-अपनी तरह से सिर्गेई को विदाई दी। ईगर उसकी गोद में चढ़ा और बोला पापा अब टीवी मैं उसी दिन देखूँगा जिस दिन तुम्हारे लौटने पर टीवी चैनल वाले तुम्हारा इंटरव्यू दिखाएँगे और तुम्हारे बारे में बताएँगे। मैं उस दिन का इंतज़ार करूँगा, मैं जानता हूँ कि तुम जल्दी ही लौटोगे।
तुम दोनों का इंतज़ार ख़त्म हुआ, डॉक्टर के इस जुमले से इवान और सिर्गेई की तन्द्रा टूटी और वे आज की दुनिया में लौटे।
फ़ौरन ही सावधान की मुद्रा में खड़े हुए और डॉक्टर को सैनिक सलाम ठोंक कर पूछा, हमें अब क्या करना है?
अपने ख़ेमे पर सन्देश भेजो और सर्जेंट अल्योशा के अलावा बाक़ी सबको वहाँ ले जाने का बंदोबस्त करो।
सिर्गेई और इवान पूरी मुस्तैदी से इस काम में लग गए।
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–प्रगति टिपणीस
