इश्तेहार
भारत हो या ऑस्ट्रेलिया
यूरोप हो या अमेरिका
अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस
बार – बार आता है
स्त्री अधिकारों के चर्चे
स्वतंत्रता के नारे
और नारी – मुक्ति का युद्ध
बार – बार दोहराता है
हर बार कोई जूलिया गिलार्ड
मेसोजिनी पर भाषण देती है
और खुद
व्यवस्था का शिकार हो जाती है
या कोई मलाला युसूफज़ई
कहती है कि
महिलाएं और पुरूष बराबर हैं
कि बच्चियों को पढ़ाया जाए
पर तालिबानियों की गोलियों का
निशाना बन जाती है
हर बार महिला सशक्तिकरण
के नारे लगाए जाते हैं
जर्मैन ग्रीयर के भाषण के अंश
दोहराये जाते हैं
कि स्त्रियां मात्र इश्तेहार नहीं हैं
वे मात्र बलात्कार की खबर भी नहीं हैं
वे चीज़ केक बनाती
शेफ भी नहीं हैं
घर, बच्चे, मेकअप की
परतों से परे
उनका अपना अस्तित्व है
उनका अपना दिमाग है
निर्णय लेने की शक्ति है
कई क्षेत्रों में तो वे
पुरूषों से बेहतर
काम करती हैं
पूरे परिवार और कभी कभी
बेरोजगार, शराबी पति का भी
पेट भरती हैं।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस
भाषणों का नया दौर
अपने साथ लाता है
मंचों पर, नेताओं के सामने
बहुत कुछ कहा जाता है
पर मार्च के अंत तक
एक महीने की धूमधाम के बाद
पोस्टरों, फ्लायर्स और नारों को
पुराने अखबारों की तरह
रद्दी में डाल दिया जाता है
अगले एक साल तक के लिए।
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-रेखा राजवंशी