सूत्रधार

कर्म करना है मात्र कर्म तेरा, आगे की क्यों तू सोच करे
फल देना तो है काम मेरा, तू क्यों मन में संताप धरे।

मैं राम की मर्यादा, मैं सीता का अटल विश्वास,
मैं हनुमत की भक्ति में, मैं ही हूं केवट की आस।
मैं मंथरा के षड्यंत्रों में, मैं दशरथ के हृद में हूं।
मैं कौशल्या की पीर बना, मैं ही कैकेई की ज़िद में हूं

मैं राधा मैं कृष्णा, मैं ही मुरली मधुर तान में हूं,
बसा हूं तेरे दिल में मैं, मैं तेरे हर एक काम में हूं।
तू एहसास करे इसका, या बना रहे तू अंजाना
घर है मेरा, ये दिल तेरा, अब तक तूने ना पहचाना।

मैं ही तुझ में, तू भी मुझमें, मैं ही दुर्गा काली हूं
तेरे हिय में बैठा जो, वो सबसे बड़ा सवाली हूं।
मैं युगों युगों का सूत्रधार, हर पल तेरे साथ रहा,
अच्छा बुरा हर कर्म तेरा, मुझसे ही आबाद रहा।

तू कलयुग का वंशज, कब इस तथ्य को जानेगा,
अवसाद तनाव से घिरा तू, कब अपनी सोच को थामेगा।

सत्य अगर है चाह तेरी, तो हल तुझको मिल जायेगा
चलाचल राही कर्तव्यपथ पर, फल तू उसका पाएगा
कर्म करना है मात्र कर्म तेरा, आगे की क्यों तू सोच करे
फल देना तो है काम मेरा, तू क्यों मन में संताप धरे

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-प्रतिमा सिंह

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