वीणावादिनि
वीणावादिनि शत-शत नमन!
कैसे करूँ वंदना तिहारी
मैं अबोध बालक महतारी
शरणागत, हे मेरी माते-
शरण तिहारी आया हूँ।
तुलसी-वाल्या-काली
तेरी कृपा निराली,
वही कृपा हे हंसवाहिनी
दे अबोध के दुख हर ले।
वीणावादिनि! पद्मासना!
सुन ले मेरी उपासना
क्षुद्र बुद्धि कस करूँ नमन
वीणावादिनि! शत-शत नमन!
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-ऋषिकेश मिश्र