सन्मार्ग

हे नाथ, दिखा दो राह मुझे…!

जान न पाया इस जगती को
जिसका ओर न छोर
माना इसको मैंने अपना
क्या-क्या दुखद न पाया
केवल अपनी अजानता के-
कारण जनम गँवाया।

जब से आया इस इस धरती पर
एक-एक को भूखा
माता-तनया नहिं पहिचाने
टका-सत्य सब रूखा,
हो यदि दया आपकी स्वामी
उबरूँ इस नश्वर से
लोक लाहु परलोक निबाहू
महामना के बल से।

*****

-ऋषिकेश मिश्र

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