अंकुश
सबका है रक्षक
जगती का है वह प्राण
दुखों को दूर करता है
वही सुख सागर बनता है…!
वही, जो व्याप्त है सर्वत्र
वही उत्पत्तिकारक है
सभी में है परम
वह श्रेष्ठ
वही तो शुद्धस्वरूपा है।
गुणों का धाम केवल वह
जगत है भासता जिससे
उसी का ध्यान करते हैं,
उसी से है निवेदन यह
मन-बुद्धि-वाणी पर
सदा अंकुश लगा रखना!
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-ऋषिकेश मिश्र