आँचल

जोरो कि बरसती बारिश में
जब पूरी छत टपकती थी
एक खाट पर बैठी माँ
बच्चो और बक्से के संग
पूरी रात सिसकती थी
कमरे में बहते पानी में
कितनी बारिश , कितने आंसू
माँ का दिल बन कर देखा
तो पाए बस आंसू आंसू
जब हमने हैरत से सोचा ,
बारिश का पानी कहाँ गया
तो माँ का भीगा आँचल गुपचुप
सारी कहानी बता गया
कितने रूप हैं इस आँचल के
बुरी नज़र से बचाता काजल
धूप से बचाता शामियाना
गर्मी से बचाता पंखा
पसीना पोंछता तौलिया
आंसू पोंछता रुमाल
हवसखोरों से बचाता पर्दा
फूँक कर चोट सहलाता नर्म फाहा
ठण्ड से बचाता कंबल
या पूरा जीवन जीने का संबल
अब नहीं टपकती छत बारिशों में
अब गर्मी, धूप, ठण्ड भी नहीं सता पाती है
पर जीवन कि चोटें अब भी हर पल
उस आँचल की याद दिलाती हैं
आज उस आँचल को तलाशते मन को
मैं अक्सर ये समझाती हूँ
कि बदल गयी अब पारी है
अब आँचल बनने कि बारी है

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-मीनाक्षी गोयल नायर

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