मन की महाभारत
मैं कौरव, मैं पांडव ,
मैं अर्जुन मैं दुर्योधन
कैसे रोकूँ ये चीरहरण ,
हैं पड़े सोच में मनमोहन
नारी भिक्षा , नारी काया
नारी को धनतुल्य बनाया
धर्मराज कर रहे अधर्म
कहाँ गए तुम मनमोहन ?
नही मिला मनचाहा वर
सच्चा नही, झूठा ये स्वयंवर
चीत्कार करे पाँचाली मन
रहे मुस्कुरा मनमोहन
अपना है जो विकार है ये
बुरा कोई संस्कार है ये
गांडीव सम्भालो करो भसम
ज्ञान दे रहे मनमोहन
जीवन हूँ मैं नही पापकर्म
निरपराध को काहे शर्म
हर कुंती से कह रहा कर्ण
बस ताक रहे हैं मनमोहन
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-मीनाक्षी गोयल नायर
