किरनों के मोरपंख

किरनों के मोरपंख
धूप लगी नोचने,
चिड़ियों को
दर्द दिये-
चिड़िये की चोंच ने…

कागज़ की रोटियाँ
पंजों से बेल कर –
कैसे फुसलायेगी ?
पकड़ेगी हर शिकार –
किधर खेल-खेलकर ?
माथे पर –
बल डाले-
शाम लगी सोचने…

पुरखे लखौरियाँ
जोड़ गये ख़ून से,
सुनकर यह वर्तमान –
खँडहरों में पहुँचा,
ज़िद्दी नाख़ून से –
ईंटों के –
बीच की –
सुर्खियाँ खरोचने…

जानवरों के नियम-
नेमतें परात में,
हैं विरोध के विरुद्ध –
जंगल के गलियारे,
आकस्मिक घात में-
निकले हैं –
तेंदुए –
रौशनी दबोचने…

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-राजीव श्रीवास्तव

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