वे बोलेंगे…
वे बोलेंगे…
जिन कण्ठों में स्वर सच्चे हैं –
वे बोलेंगे …
जिनके सीने भीग रहे श्रम के पानी से,
जिन आँखों में कच्ची मिट्टी के सपने हैं,
इन्तजार में जो हैं –
कब आवें दहकेंगे,
वे बोलेंगे…
जिनके हाथों में हल हैं, बंजर खेती है,
हर भूखे तक रोटी पहुँचाने की ज़िद है-
वे बोलेंगे..
अंगड़ाई जिनकी दौलत होगी, बोलेंगे,
भाईचारे की नीयत होगी, बोलेंगे,
जिनमें बच्चों सी सीरत होगी, बोलेंगे,
जिनमें औरत की इज्ज़त होगी, बोलेंगे,
जिनमें सहने की कुव्वत होगी, बोलेंगे,
जिनमें ज़र्रे की क़ीमत होगी, बोलेंगे,
जिनमें जीने की हसरत होगी, बोलेंगे,
जिनमें मरने की ताक़त होगी, बोलेंगे,
जो आने वाली पीढ़ी के सुख-दुःख से बावस्ता होंगे-
चुप न रहेंगे…
जो आँगन में पालेंगे किलकारी कल की-
वे बोलेंगें…
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-राजीव श्रीवास्तव