मॉरीशस में हिंदी के स्वरूप को यदि हम जानना चाहते हैं तो इतिहास में झाँके बगैर हम इस दिशा में आगे नहीं बढ़ सकते । जब हम ऐतिहासिक तथ्यों को उकेरते हैं तो जो जानकारी हमारे हाथ लगती है वह चौंकाने वाली तो है ही पर आज यह सर्वविदित भी है कि उपनिवेशवादी शासकों द्वारा एग्रीमेंट के तहत और बेहतर जीवन के स्वप्न दिखाकर भोले-भाले लोगों को बड़ी संख्या में मॉरीशस, ट्रिनिडाड, गयाना, फिजी आदि देशों में भेजा गया था जहाँ उन्हें खेतों में जानवरों की तरह जोता जाता था। उनकी दुःख भरी कहानियां सुनकर आज भी हमारे रौंगटे खड़े हो जाते हैं।
सन् 1834 में भारत से ऐसे ही मजदूरों की पहली खेप “सारा” नामक जहाज से पहली बार के लिए मॉरीशस के कुली घाट पर उतरी थी जिसे 2016 में यूनेस्कों द्वारा “आप्रवासी घाट” विरासत और सांस्कृतिक धरोहर घोषित किया गया था। वे बेचारे इन देशों में असहाय कुलियों के रूप में खेतों में नौकरी करने के लिए लाये गए थे। 1834 से 1924 के दरमियान लगभग साढ़े चार लाख भारतीयों को मॉरीशस लाया गया। उपनिवेशवादी ताकतों ने उन गरीब और लाचार लोगों की मजबूरियों का फायदा उठा कर उनका शारीरिक और मानसिक शोषण किया और उनकी मेहनत का पूरा लाभ उठाया । अधिकतर मजदूर बिहार प्रांत से आये थे और वे भोजपुरी भाषी थे तो यह जाहिर है कि भोजपुरी के माध्यम से ही हिन्दी का विकास भी मॉरीशस में संभव हुआ होगा। अर्थात् मोटे तौर पर कहा जा सकता है कि मॉरीशस में हिन्दी का इतिहास लगभग डेढ़ सौ वर्षों का है या यूँ भी कहा जा सकता है कि वह काल हिन्दी भाषा का बाल्य-काल था।
सन 1901 में महात्मा गांधी जी का मॉरीशस आना और यहाँ के लोगों को बच्चों की शिक्षा के प्रति जागरूक करना, साथ ही उनके द्वारा दी गई राजनीति के महत्व की सीख ही यहाँ के निवासियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी। हिंदी भाषा को विकसित करने में 1907 में मणिलाल डॉक्टर का भी बहुत बड़ा हाथ रहा है। आपने “हिन्दुस्तानी” का प्रकाशन गुजराती और अंग्रेजी के साथ-साथ हिन्दी में भी किया जो मॉरीशस का पहला हिन्दी समाचार पत्र बना। यूँ कहिए कि इस तरह हिन्दी साहित्य का बीज बोया गया था जिसने धीरे-धीरे हिन्दी के प्रति उनकी रुचि को बढ़ाया और इस तरह अपने आप्रवासी भारतीय भाईयों को वे अपनी भाषा हिन्दी के और भी करीब ले आये। इसके अलावा उनके ज्ञानवर्धन और भारतीय साहित्यकारों की जानकारी देने हेतु उन्होंने भारत से अनेक पत्र-पत्रिकायें भी मंगवाईं जिससे मॉरीशस में हिन्दी भाषा के ज्ञानभंडार का नव निर्माण आरंभ हुआ। इन पत्रिकाओं से अभिभूत होकर नौजवान पीढ़ी ने जल्द ही कलम स्वयं अपने हाथों में ली और साहित्य में अपनी रुचि दिखानी आरंभ की जो आगे चल कर यहाँ के प्रकाशन की नींव सिद्ध हुई। आपकी ही प्रेरणा से उन लोगों ने अपने बच्चों को भाषा, संस्कृति और संस्कारों से जोड़े रखने के लिए यहाँ बैठकाओं की स्थापना भी की – कहीं पेड़ों तले तो कहीं झोंपड़ियों का इस्तेमाल कर बच्चों को हनुमान चालीसा, प्रार्थनायें व श्लोकों के ज्ञान के साथ-साथ हिंदू धर्म की शिक्षा भी दी जाने लगी। यही कारण है कि हिन्दू धर्म उनकी रगों में बहने लगा जिसने आज तक हिंदू धर्म को इस देश में जीवित रखा है ।
आइए अब हम मॉरीशस के हिन्दी साहित्य पर प्रकाश डालने की चेष्टा करते हैं। सन् 1923 से सन् 2000 तक मॉरीशस में भारतवंशी हिन्दी लेखकों द्वारा लगभग तीन सौ पुस्तकें लिखी गईं और प्रकाशित भी की गईं जिनमें मणिलाल डॉक्टर, पंडित आत्माराम विश्वनाथ, पंडित काशीनाथ किश्टो, श्री सूरज प्रसाद मंगर भगत, पंडित वासुदेव विष्णु दयाल, श्री जयनारायण दयाल, दयानंद लाल बसंत राय, श्री सोमदत्त बखोरी, डॉक्टर मुनीश्वरलाल चिंतामणि, श्री अभिमन्यु अनत आदि को हम इस श्रेणी में जोड़ते हैं। सन् 1909 से लेकर सन् 2000 के बीच अनेक पत्र पत्रिकाऐं भी प्रकाश में आईं जिनमें 1909 में हिन्दुस्तानी, 1920 में मॉरीशस इंड़ियन टाइम्स, 1924 में मॉरीशस आर्य पत्रिका और मॉरीशस मित्र, 1929 में आर्यवीर, 1933 में सनातन धर्मार्क, 1934 में दुर्गा, 1939 में जागृति, 1948 में जनता और ज़माना, 1950 में आर्योदय, 1953 में वर्तमान, 1960 नवजीवन, 1961 समाजवाद, 1964 में कांग्रेस, 1969 में अनुराग, 1972 में आभा दर्पण और प्रभात, 1974 में प्रकाश, 1977 में वसंत, 1978 में शिवरात्रि, 1986 में स्वदेश, 1988 में इंद्रधनुष, 1992 में आक्रोष और पंकज आदि को सर्वेक्षण के अंतर्गत हम पाते हैं ।
इस प्रकार हम देखते हैं कि आप्रवासियों को हिंदी से जोड़ने और उन्हें उनकी अपनी मातृभाषा के करीब लाने में इन पत्र पत्रिकाओं ने आरंभ से ही एक विशेष भूमिका निभाई है और वे पूर्ण रूप से सहायक भी बनी हैं तभी तो इनसे प्रेरणा पाकर धीरे-धीरे और भी हिंदी की पत्र-पत्रिकाएँ प्रकाश में आने लगीं और अधिक संख्या में यहाँ के लोग अपनी भाषा से जुड़ने लगे, हिन्दी सीखने की कोशिश बैठकाओं में जाकर करने लगे और अपने बच्चों को भी हिन्दी सीखने के लिए प्रेरित करने लगे। मॉरीशस जैसा यह छोटा-सा देश हिन्दीमय है जिसकी आत्मा अपनी भाषा और संस्कृति में बसती है। आज भी उसे अपने पूर्वजों पर नाज़ है और यही कारण है कि बैठकाओं का चलन लगभग पाँच पीढ़ियों से चला आ रहा है और यहाँ पाँच सौ से अधिक बैठकाओं में पढ़ाई नियमित रूप सरकारी निरीक्षकों की देख-रेख में चल रही हैं, इनकी परीक्षा इलाहाबाद केंद्र से संचालित की जाती हैं और इन्हें पूरी मान्यता भी प्राप्त है। बच्चे इन बैठकाओं में शनिवार और रविवार को पढ़ने जाते हैं। बैठकाओं से ही नाटक मंचन की शुरुआत हुई और आज भी यहाँ हिंदी नाटकों का मंचन किया जाता है।
आइये अब आपको कुछ उन संस्थाओं से मिलवाते हैं जो इस क्षेत्र में जी-जान से कार्यरत हैं और हिन्दी भाषा व भारतीय संस्कृति के संरक्षण में सदैव तत्पर रह अपने कर्तव्य का निर्वाह कर रहीं हैं। इस दिशा में हिन्दी से जुड़ी अनेक संस्थायें भाषा के उत्थान के लिए आगे आई हैं। संक्षेप में इस विषय से जुड़ी कल, आज और आने वाले कल की जानकारी के लिए अब हम कुछ उन संस्थाओं की ओर रुख करते हैं जो हिन्दी भाषा के विकास के लिए तन-मन-धन से सजग रही हैं और अपना पूरा सहयोग दे रही हैं। मॉरीशस में हिन्दी भाषा को आगे बढ़ाने और उसके साहित्य को लोकप्रिय बनाने में सबसे बड़ा हाथ आर्य सभा मॉरीशस का रहा है, इसे हम हिन्दी प्रचार-प्रसार की पहली संस्था भी कह सकते हैं । मॉरीशस को हिंद महासागर के मध्य भारतीय संस्कृतियों का केंद्र भी कहा जा सकता है। आर्यसभा की गिनती एक अत्यंत जागरूक और क्रियाशील संस्था के रूप में की जा सकती है जहाँ धार्मिक, सांस्कृतिक और हिन्दी भाषा के आंदोलन सक्रिय रूप से चलते रहे हैं। लोगों का यह भी कहना है जहाँ आर्य समाज है वहाँ हिन्दी के लिए जागरूकता है। इस समाज ने मॉरीशस में घर-घर हिन्दी बोलने और पढ़ने-पढ़ाने पर अपना ध्यान सदैव केंद्रित रखा है। “आर्य पत्रिका” का प्रकाशन 1911 में आरंभ हुआ और 1928 में सभा ने अपना श्रद्धानंद प्रिंटिंग प्रेस स्थापित कर अपने कार्यों में गतिशीलता लाने के लिए पत्र पत्रिकाओं व पुस्तकों के प्रकाशन पर जो़र डाला और उनका वितरण किया। आर्य सभा द्वारा आज भी पूर्व प्राथमिक, प्राथमिक और सांयकालीन पाठशालायें चलाई जाती हैं। कह सकते हैं कि आर्योदय पत्रिका की कोशिशों के कारण ही देश में हिन्दी फल-फूल रही है।
ऐसी ही एक और संस्था है हिन्दी प्रचारिणी सभा जिसकी स्थापना जब, 12 जून 1926 को, हुई थी उस समय मॉरीशस एक ब्रिटिश उपनिवेश था और उस समय यहाँ धर्म परिवर्तन जो़रों पर चल रहा था, उससे बचने के लिए और हिंदू जाति व धर्म की रक्षा के लिए पूर्वजों ने यह सक्रिय कदम उठाया। भाषा और संस्कृति के प्रचार-प्रसार के लिए गाँव-गाँव में उन्होंने सायंकालीन स्कूल खुलवाये। उन दिनों धारा नगरी गाँव में, जो आज का मोंताईं लोंग ग्राम कहलाता है, तिलक विद्यालय की स्थापना की गई जो बाद में हिन्दी प्रचारिणी सभा के नाम से जाना गया। आपको यह जान कर गर्व होगा कि यह संस्था आज भी कार्यरत है और हिन्दी पठन-पाठन का मुख्य केंद्र भी माना जाता है, इसकी शाखाएं देश के कोने-कोने में हैं छाई हुई हैं। मॉरीशस में जितने भी हिन्दी विद्वान हैं उनका इस सभा से किसी न किसी रूप में कोई न कोई संबंध अवश्य रहा है। इस सभा ने 1935 से 1938 के बीच हस्तलिखित पत्रिका “दुर्गा ” छापी थी जो आज सभा की धरोहर समझी जाती है सन् 2018 में 11 वें विश्व हिन्दी सम्मेलन के अवसर पर इसका पुनः प्रकाशन व लोकार्पण किया गया। “नवजीवन ” नामक पत्र भी सभा ने निकाला था और आजकल सभा की “पंकज” पत्रिका भी इसमें महत्वपूर्ण योगदान दे रही है। सभा देश-भर में प्राथमिक एवं माध्यमिक सायंकालीन तथा सप्ताहांत के स्कूल चलाती है। इसके अतिरिक्त इस सभा ने साहित्यिक परीक्षाओं पर भी ध्यान केन्द्रित कर साहित्य के विकास में अपना पूरा योगदान दिया है। इन कार्यों के साथ-साथ देश के नये साहित्यकारों को प्रकाश में लाने के लिए निबंध, कहानी,कविता, लघुकथा लेखन व साहित्यिक प्रतियोगितायें कर नौजवानों को लेखन के लिए प्रोत्साहित किया जो आज भी कर रही है। आपका आदर्श वाक्य है “भाषा गई तो संस्कृति भी गई”।
अब हम जिस संस्था का जिक्र करने जा रहे हैं वह है “मॉरीशस हिन्दी लेखक संघ” है जिसकी स्थापना 9 दिसंबर 1961 में हुई थी और जो समय-समय पर अपनी गतिविधियाँ और प्रकाशन करती आ रही है। अभी हाल ही में इस संस्था ने अपने 60 वर्ष पूरे कर आर्य सभा में अपनी वर्षगाँठ के अवसर और भारत की स्वतंत्रता के पचहत्तरवें वर्ष पर आज़ादी के अमृत महोत्सव के अंतर्गत एक कवि सम्मेलन का भव्य आयोजन भी किया था । इस संघ के मुख्य उद्देश्य हैं – हिन्दी भाषा और संस्कृति की रक्षा करना, हिन्दी साहित्य का विकास करना जिसके लिए यह संघ समय-समय पर अपनी गतिविधियाँ करती आ रही है विभिन्न प्रतियोगिताऐं, रेडियो कार्यक्रम करना और प्रतिष्ठित लेखकों व कवियों की जयन्तियां मना कर हिन्दी के प्रति अभिरुचि पैदा करना इसका मुख्य उद्देश्य है जिसे यह बखूबी पूरा भी करतें हैं। समय- समय पर आपके प्रकाशन आते रहते हैं जिनमें गाँधी स्मृति, इंद्र धनुष, आशा दीप, विदेशों में हिन्दी बहुचर्चित हैं ।
3 जून सन् 1970 को भारत और मॉरीशस के संबंधों को सुदृढ़ करने की दृष्टि से महात्मा गांधी संस्थान की आधारशिला तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी जी के करकमलों द्वारा रखी गई थी। उनका लक्ष्य भारतीय भाषाओं और संस्कृति का संरक्षण था। हिन्दी लेखन, शिक्षा और संस्कृति के प्रचार-प्रसार के लिए भारतीय भाषा विभाग, सृजनात्मक लेखन, प्रकाशन विभाग, भोजपुरी लोक संस्कृति विभाग तथा संस्कृत एवं अन्य भाषाओं के विभाग भी स्थापित किए गए, जिनके द्वारा प्राथमिक व माध्यमिक स्कूलों के लिए मॉरीशसीय लेखकों और भारतीय विशेषज्ञों के सहयोग से अपनी ही प्रेस में पुस्तकें छापी गईं। साथ ही उच्च स्तरीय त्रैमासिक वसंत व बाल पत्रिका रिमझिम का भी प्रकाशन आरंभ हुआ। यह संस्थान समय-समय पर उच्च कोटि के साहित्यकारों द्वारा कार्यशालायें कर विद्यार्थियों को इस दिशा में प्रेरित करता है। महात्मा गांधी संस्थान आज भी अपनी गतिविधियों द्वारा हिन्दी भाषा व संस्कृति के उत्थान में अभूतपूर्व भूमिका निभा रहा है। आपका अपना पुस्तकालय व प्रिंटिंग प्रेस भी है।
भारत से बाहर मॉरीशस वह प्रमुख देश है जहाँ हिन्दी भाषा एवं साहित्य पूर्ण रूप से फल-फूल रहे हैं। सन् 1994 में भूतपूर्व उपराष्ट्रपति सर रवीन्द्र घरभरन जी के संरक्षण में हिन्दी संगठन की स्थापना की गई थी जिसका औपचारिक उद्घाटन 12 दिसम्बर 1994 को किया गया। इस संस्था का उद्देश्य हिन्दी का विकास और संस्कृति की रक्षा करते हुए सर्वजन हिताय के लिए कार्य करना है तभी तो इनका आदर्श वाक्य ” हिन्दी ज्ञान हमारा मान” इनके उद्देश्यों पर खरा उतरता है। जिस तरह एक व्यक्ति अकेले विकास नहीं कर सकता ठीक उसी प्रकार एक संस्था दूसरी संस्था से मिलकर ही प्रगति की राह पर आगे बढ़ सकती है इसलिए अपने लक्ष्य को ध्यान में रख यह संगठन भी अन्य संस्थाओं को साथ ले प्रगति के मार्ग पर निरंतर आगे बढ़ रहा है। यही कारण है कि हिन्दी संगठन भी अन्य संस्थाओं के समान ही हिन्दी के क्षेत्र में लेखन व वाचन पर ध्यान केन्द्रित कर अपनी गतिविधियों का चयन करता है। संगठन विद्यार्थियों के साथ-साथ वृद्धों तक को अपनी गतिविधियों में शामिल कर उन्हें भी मौका देने से नहीं चूकता। हिन्दी भाषा को बच्चों से जोड़ने के लिए यह संगठन पूर्व-प्राथमिक, प्राथमिक, माध्यमिक एवं विश्वविद्यालयी स्तर पर कहानी कथन, कविता पठन, वाचन प्रतियोगिता आदि का आयोजन कर उन्हें आगे बढ़ने का पूरा अवसर प्रदान करता है। साहित्यकारों का सम्मान, पुस्तकों का लोकार्पण, कवि सम्मेलन आदि गतिविधियां कर भाषा के उत्थान के लिए सदैव आगे बढ़ कुछ नया करने को यह संस्था तत्पर रहती है। हिन्दी भाषा का कोश खाली न हो इस कारण संगठन का अपना एक पुस्तकालय है जहाँ रोचक, ज्ञानवर्धक एवं साहित्यिक सभी प्रकार की पुस्तकें उपलब्ध हैं। “ज्ञान सरोवर” नामक रेडियो कार्यक्रम इस संगठन द्वारा प्रत्येक शनिवार सुबह को प्रस्तुत किया जाता है।
इंदिरा गांधी भारतीय संस्कृति केंद्र विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन करता है जैसे भारतीय राष्ट्रीय दिवस अर्थात 15 अगस्त, स्वतंत्रता दिवस और 26 जनवरी गणतंत्र दिवस, गांधी जयंती, हिंदी दिवस, स्थापना दिवस आदि अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस इंदिरा गांधी भारतीय संस्कृति केंद्र अपने परिसर में आयोजित कार्यक्रमों, सम्मेलनों, व्याख्यानों और साहित्यिक मंचों के लिए मॉरीशस-भारत मित्रता सोसायटी, सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन, हिंदी भाषी संघ, उर्दू भाषी संघ और देश के विभिन्न सांस्कृतिक संस्थानों के साथ स्वयं को जोड़ता है। केंद्र हिंदी साहित्य संगोष्ठी का आयोजन करता है। केंद्र के मासिक कार्यक्रमों के लिए भारतीय महिला संघ, भारतीय-मॉरीशस सांस्कृतिक संगठनों, भारतीय पूर्व छात्र संघ और साहित्य संवाद गोष्ठी के कार्यकलापों के लिए अपना स्थल उपलब्ध कराता है। यह मॉरीशस के लेखकों द्वारा हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में पुस्तकों के अनावरण के लिए समारोह आयोजित करता रहा है। यह कवि-सम्मलेन की भी व्यवस्था करता है जहाँ मॉरीशस के कवि हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में अपनी कविताओं का पाठ करते हैं। केंद्र में पेंटिंग आदि की प्रदर्शनी के लिए प्रदर्शनी कक्ष है तथा एक आयुष सेल (आयुर्वेद और होम्योपैथी) भी है । इस वर्ष भारत की आजादी का अमृत महोत्सव बड़ी धूम-धाम से मनाया गया जिसमें भारतीय भोजन मेला, गज़लों की शाम के साथ-साथ अनेक कार्यक्रमों का यहाँ के लोगों ने लुत्फ़ उठाया।
मॉरीशस ही एक ऐसा देश है जहाँ तीन विश्व हिन्दी सम्मेलन हुए हैं। विश्व हिन्दी सचिवालय की संकल्पना तत्कालीन प्रधानमंत्री सर शिवसागर रामगुलाम जी ने की थी और जिसका निर्णय प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन के दौरान 1975 में नागपुर में इस संस्था को मॉरीशस में स्थापित करने का प्रस्ताव रखा गया जो सर्व सम्मति से स्वीकार भी किया गया। इस संकल्पना को वास्तविक रूप देने के लिए भारत और मॉरीशस की सरकारों के बीच 20 अगस्त 1999 को एक समझौता किया गया जिसके लिए 12 नवम्बर सन् 2002 को मॉरीशस के मंत्रिमंडल द्वारा विश्व हिन्दी सचिवालय अधिनियम पारित कर भारत तथा मॉरीशस की सरकार के बीच 21 नवम्बर 2001 को द्विपक्षीय करार सम्पन्न किया गया। 11 फरवरी सन् 2008 से सचिवालय ने मॉरीशस में औपचारिक रूप से कार्यारंभ कर दिया। विश्व हिंदी सचिवालय के निम्नलिखित उद्देश्य निर्धारित किये गए हैं-
-हिन्दी को विश्व भाषा के रूप में प्रोन्नत करना ।
-हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा के रूप में स्थापित करने की दिशा में सघन प्रयास करना ।
-हिन्दी में अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन, संगोष्ठी, विचार-विमर्श, कवि सम्मेलन जैसे सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करना
-हिन्दी के विद्वानों को सम्मानित/पुरस्कृत करना ।
-हिन्दी में शोध कार्य के लिए केंद्र स्थापित करना ।
-अंतरराष्ट्रीय हिन्दी पुस्तकालय की स्थापना करना ।
-हिन्दी पुस्तक मेले का आयोजन करना ।
यह संस्था आज इस छोटे से देश में सभी के लिए नये द्वार खोल रही है, विदयार्थियों और हिन्दी प्रेमियों को अपनी ओर आकर्षित कर रही है व समय-समय पर वैश्विक स्तर की प्रतियोगिताओं व शिक्षा से संबंधित कार्यशालाओं का आयोजन करती है। इसके अतिरिक्त सचिवालय द्वारा विश्व हिन्दी साहित्य और विश्व हिन्दी पत्रिका के साथ एक त्रैमासिक पत्र का भी प्रकाशन किया जाता है। इस वर्ष पुस्तक लोकार्पण, व्यंग्य लेखन व स्व- रचित गीतों का आयोजन सफलतापूर्वक किया गया।
मॉरीशस में हिन्दी भाषा के विकास और उसके प्रचार-प्रसार में रेडियो और टीवी की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। मॉरीशस में रेडियो का प्रसारण केंद्र 1944 में आरंभ हुआ था जिससे, पहले तो, भजन, कविता पाठ, वेद मंत्र और समाचारों से उसकी लोकप्रियता बढ़ी। फिर धीरे-धीरे फिल्मों के चलते बच्चे तो बच्चे बूढ़े भी उसके दीवाने हो गए। ऐसे में भला हिन्दी को आगे बढ़ने से कौन रोक सकता था और अब मोबाईल, लैपटॉप व टेबलेट ने हिंदी के विस्तार की गति और भी तीव्र कर दी है। पहले तो हम चीनी दुकानदारों तो भोजपुरी और टूटी-फूटी हिन्दी में बात करते सुनते थे और अब देखते हैं कि स्कूलों में चीनी व अन्य भाषाओं से जुड़े बच्चे भी हिन्दी गाने मधुर स्वरों में गुनगुनाते हैं। इस वर्ष भारत के विभिन्न राज्यों पर आधारित “दर्शन” नामक कार्यक्रम ने देश में धूम ही मचा दी थी।
मॉरीशस में पिछले डेढ़ सौ वर्षों के इतिहास में जिस प्रकार से हिंदी भाषा ने प्रगति की है उससे यह तो निश्चित ही है कि इसका प्रचार-प्रसार भविष्य में भी होता रहेगा। हम निश्चिंत होकर कह सकते हैं कि जिस देश में इतनी सारी संस्थायें तन मन धन से हिन्दी की सेवा करती हों, विश्वविद्यालयों तक में हिन्दी की पढ़ाई होती हो, जहाँ बैठकायें आज भी चलती हों, घर-घर पूजा-पाठ और त्योहार मनाये जाते हों वहाँ हम हिन्दी के भविष्य को असुरक्षित तो नहीं मान सकते फिर भी आँखें बंद करके गहरी नींद में सो भी तो नहीं सकते इसलिये जागते रहो की आवाजें तो लगानी ही होंगी, सावधानियां भी बरतनी होंगी तभी हिन्दी का निरंतर विकास भविष्य में भी हो पायेगा ।