बिन मोबाइल के दिन
हमने भी की बचपन में मस्ती
कलम-दवात भी थीं बड़ी सस्ती।
रात में लालटेन या लैंप जलाकर
हाथ से मच्छर मार-मार कर
तैयारी इम्तहान की करते थे
वह दिन बिन मोबाइल के थे।
खेल कूद भी था हमको प्यारा
कभी कोई जीता कभी कोई हारा
कभी किसी को लूडो में पछाड़ा
हर दिन बीता ऐसे ही हमारा
माता-पिता का माना कहना
कभी मार पड़ी तो उसको सहना।
कभी सोचा नहीं उन्हें सताना
सबके काम में हाथ बंटाना
स्कूल भी जाते थे रोजाना
वरना पिटाई से भरो हरजाना।
हमने भी करी बचपन में मस्ती
कलम दवात भी थीं बड़ी सस्ती।
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– शन्नो अग्रवाल