
संवाद
प्रभु ने कहा
करते हो विश्वास
रखते हो श्रद्धा अपार
चढ़ाते हो पुष्प नित
सम्पत्ति भी हो उदार
नियमित संकल्प साध
भूल कर सब ऋतु प्रहार
बोलो किस आशा से
रहे तुम पथ बुहार
बोलो वत्स!
निर्मल सेवाओं का
पाया क्या प्रतिफल?
वाणी रही मौन
छलक रहे आंसू सम्वत स्वर बोले
‘खोने और पाने का प्रश्न कहां उठता है
निर्मल विश्वास जहाँ शुचिता संग बहता है।
हार गए तर्क सभी श्रद्धा के सम्मुख
पाने का प्रश्न तो बस स्वार्थ लिए पलता है।।’
तुमने दिया लक्ष्य
मार्ग दिया तुमने
तुमने दिए पर
आकाश दिया तुमने
तुमने दी दृष्टि
प्रकाश दिया तुमने
तुमने दी करुणा
आधार दिया तुमने
आंखों में सागर, धरती हृदय में
जीवन को हे कवि, काव्य दिया तुमने।
‘छलक रहे आंसू
सम्वत स्वर बोले।।’
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© विनयशील चतुर्वेदी