
वर्णमाला में वर्ण नहीं हैं

– डॉ अशोक बत्रा
उस दिन की बात है। कक्षा 9 से 12 तक पढ़ाने वाले अध्यापकों का प्रशिक्षण चल रहा था। मैंने पूछ लिया — किसे हिंदी की वर्णमाला पूरी आती है? दर्जनों हाथ खड़े हुए। मैं खुश हुआ। कम-से-कम हिंदी के अध्यापकों को तो वर्णमाला याद है। वरना हिंदी प्रदेश में लोगों को ABCD तो पूरी याद है, किंतु हिंदी की वर्णमाला — क ख ग घ आदि नहीं आती। मैं डर जाता था कि जब किसी को वर्णमाला नहीं आती तो फिर ये हिंदी का शब्दकोश कैसे देखेंगे? यदि किसी को कोई शब्द देखना पड़ गया तो कैसे खोजेगा? पर शुक्र है शब्दकोश के बिना भी हिंदी का रथ चल रहा है। हम इतने ज्ञानी हैं कि कहीं ज्ञान की खोज बाहर नहीं करनी पड़ती। अपनी अंतरात्मा में झाँकते हैं तो हमें सत्य का बोध हो जाता है। फिर हम उस पर अडिग हो जाते हैं। फिर चाहे शब्दकोश लाख सिर पटकें, हम आत्मा के ज्ञान को ही परम सत्य मानकर धारण करते हैं।
मैंने एक अध्यापिका को वर्णमाला लिखने के लिए कहा। उन्होंने बड़े विश्वास के साथ बोर्ड पर पहले स्वर लिखे। बाद में व्यंजन लिखे —
क ख ग घ ङ
आदि आदि!
मैंने उन्हें टोका। कहा —
मैंने आपको वर्ण लिखने को कहा है।
बोलीं — वही तो लिख रही हूँ।
मैंने कहा — वर्ण की क्या परिभाषा है?
बोलीं — सर, वर्णमाला गलत है क्या?
इतने में एक अध्यापक ने हाथ उठाकर कई बार हिलाया। मैं समझ गया। वे बहुत उत्साहित हैं। मैंने पूछा – आप कुछ कहना चाहते हैं?
बोले — आपने वर्ण की परिभाषा पूछी है।
मैंने पूछा — आप बतलाएँगे?
बोले — आसान है। भाषा की वह छोटी-से-छोटी ध्वनि, जिसके टुकड़े न हो सकें, वर्ण कहलाती है।
तो फिर? ये अध्यापिका वर्णमाला ठीक लिख रही हैं?
बोले — जी, बिल्कुल ठीक है।
आगे-आगे की सीट पर बैठे एक अध्यापक-दल ने मुझे व्याकरण की पुस्तक में छपी वर्णमाला दिखलाई। एक अध्यापिका प्रतियोगिता की तैयारी कर रही थीं। उन्होंने प्रतियोगिता की तैयारी के लिए प्रकाशित पुस्तक दिखाते हुए कहा — यह वर्णमाला ठीक तो है।
एक ने गूगल में से निकाल कर दिखलाया — यह रहा वर्णमाला का चार्ट।
एक अन्य अध्यापिका ने Chat GPT खोलकर दिखा दिया।
मैंने सबको देखा। सबमें वही लिखा था, जो अध्यापिका लिख रही थीं। मैंने अध्यापिका से पूछा — ये जो आप लिख रही हैं, क्या आपको विश्वास है कि ये वर्ण हैं?
बोलीं — जी, बिल्कुल।
मैंने पूरी कक्षा से पूछा — तो क्या इस उत्तर को लॉक कर दिया जाए?
दो अध्यापक चहक नहीं रहे थे। मैंने उनसे पूछा — आप किसी दुविधा में हैं?
बोले — सर, कुछ तो है, जो गड़बड़ लग रहा है।
मैंने फिर-से पहले अध्यापक को कहा — आप वर्ण की परिभाषा दोहराएँ। उन्होंने फिर कहा — भाषा की वह छोटी से छोटी ध्वनि, जिसके टुकड़े न हो सकें।
दुविधा में पड़े अध्यापक को जैसे कोई किरण दीख पड़ी हो। उसने कहा — किंतु सर, क के तो खंड हो सकते हैं।
कैसे — मैंने पूछा।
अब सारी कक्षा जैसे बतलाने को आतुर हो उठी — क्+अ
अरे बाप रे! — मैंने आश्चर्य प्रकट किया। क्या आप सभी को पता है कि वर्ण उस लघुतम ध्वनि को कहते हैं, जिसके टुकड़े न हो सकें?
बोले — हाँ, सर। हम यह पढ़ाते भी हैं।
मैंने पूछा — और आप यह भी जानते हैं कि वर्णमाला के सभी व्यंजनों के खंड हो सकते हैं?
बोले — जी हाँ, हम वर्ण-विच्छेद कराते भी हैं।
तो भी आप वर्णमाला के व्यंजनों को वर्ण कहते चले जाते हैं?
बोले — यही लिखा जाता है। यही परम्परा भी है।
मैंने पूछा — आप यह नहीं मानते कि इससे दुविधा बढ़ती है। गलत परिभाषा सबको भ्रम में डालती है।
बोले — हम इतना दिमाग़ नहीं लगाते। जब पुस्तक-लेखकों को कोई परेशानी नहीं, परीक्षकों को दिक्क़त नहीं, तो हम क्यों बाल की खाल निकालें।
मैं मुस्कराया। चलो, कहो तो लोकतंत्र के जमाने में मैं ही स्वयं को ठीक कर लूँ? जब 51 प्रतिशत मतों से सरकार बन जाती है तो फिर सारी कक्षा के समर्थन में मैं भी हाँ में हाँ मिला लेता हूँ कि व्यंजन छोटी- से- छोटी ध्वनि को कहते हैं जिसके टुकड़े न हो सकें। आपके कहने के अनुसार, क ख के टुकड़े होने पर भी मैं इनको वर्ण मान लेता हूँ। लोकतंत्र जो है।
एक अध्यापक जो दुविधा में था, बोला — सर, आप हमें दुविधा से उबारिए। बताइए कि क्या ठीक है? क्या करना चाहिए? आप क्या कहना चाहते हैं?
कक्षा में एक चुप्पी छा गई। मैंने कहा — वर्णमाला में शुद्ध व्यंजन लिख दीजिए। तब यह वर्णमाला बन जाएगी। तब मुझे कोई आपत्ति नहीं होगी।
एक ने आपत्ति की — क्या व्यंजन भी शुद्ध-अशुद्ध होते हैं?
मैं मुस्कराया भर।
अध्यापिका अभी भी बोर्ड के पास ख़डी थी। बोली — फिर मैं सभी व्यंजनों में हल चिह्न लगा दूँ?
मैंने कहा — लगाओ।
अध्यापिका ने लिखा —
क् ख् ग् घ् आदि।
मैंने कहा — अब इसे पढ़ो।
अध्यापिका ने पढ़ा — क ख ग घ
मैंने फिर टोका — दोनों में अंतर क्या है?
एक अध्यापक बोला — क् ख् को थोड़ा संक्षिप्त करके बोलना पड़ेगा।
मैंने कहा –बोलकर दिखाओ।
सारी कक्षा बोलने लग गई। वे सब क् ख् को इतना कम उच्चरित कर रहे थे जैसे मानो अपने शरीर में सुई चुभने के दर्द से बचने के लिए वे सुई को बेंधने से पहले ही निकाल रहे हों।
मैंने प्रश्न किया — क्या है कोई, जो दोनों के अंतर को उच्चारण से स्पष्ट कर सके?
शूरवीरों की कमी नहीं। बहुतों ने कोशिश की। बहुतों को ऐसा लगा कि वे उच्चारण को ठीक पकड़े हैं किंतु बाकी लोग नहीं पकड़ पा रहे हैं क्योंकि उनके उच्चारण से अंतर स्पष्ट ही नहीं हो पा रहा।
कक्षा में अच्छी-खासी दुविधा खड़ी हो गई।
अध्यापक उत्साह में आते और अपने उच्चारण को सही सिद्ध करने का अनथक प्रयास करते रहे।
मैं आनंदित था। इसलिए नहीं कि मुझे सबको परास्त करने का अध्यापकीय सुख मिल रहा था, अपितु इसलिए कि वे तथ्य के अन्वेषण में अपने आप को झोंके हुए थे। इससे अधिक कार्यशाला की सार्थकता और क्या हो सकती थी।
इतने में चाय भी आ गई! मैंने कहा — लीजिए, चाय भी आ गई। आपस में बतला भी लीजिए।
एक अंतराल के बाद फिर से करते हैं — चाय पर चर्चा!!
क्रमशः…..
वर्णमाला में वर्ण नहीं है।
विचार स्तंभ काफी प्रभावशाली है।
वर्णमाला में वर्ण नहीं है बल्कि उनकी लिखित अभिव्यक्ति है क्योंकि वर्ण तो भाषा की सबसे छोटी इकाई है जिसे स्वर के माध्यम से ही अभिव्यक्त किया जाता हैं