यूक्रेन रूस युद्ध में भाषा विवाद का बारूद

~ विजय नगरकर

यूक्रेन और रूस के बीच चल रहे संघर्ष में भाषा विवाद एक महत्वपूर्ण और जटिल पहलू है, जो दोनों देशों के सांस्कृतिक, राजनीतिक और सामाजिक ताने-बाने को प्रभावित करता है। यह विवाद केवल भाषाई प्राथमिकताओं तक सीमित नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय पहचान, सांस्कृतिक संरक्षण और राजनीतिक प्रभुत्व से भी गहराई से जुड़ा हुआ है।

भाषाई पृष्ठभूमि और ऐतिहासिक संदर्भ:

यूक्रेन की भाषाई परिदृश्य में यूक्रेनी और रूसी भाषाएँ प्रमुख हैं। पश्चिमी यूक्रेन में यूक्रेनी भाषा का प्रभुत्व है, जबकि पूर्वी और दक्षिणी क्षेत्रों में रूसी भाषा व्यापक रूप से बोली जाती है। यह विभाजन सोवियत संघ के समय से ही मौजूद है, जब रूसी भाषा को आधिकारिक दर्जा प्राप्त था और यूक्रेनी भाषा को दबाया गया था। 1991 में स्वतंत्रता के बाद, यूक्रेन ने अपनी राष्ट्रीय पहचान को मजबूत करने के लिए यूक्रेनी भाषा को प्रोत्साहित करना शुरू किया।

भाषाई नीतियाँ और विवाद:

2012 में, यूक्रेन की संसद ने एक कानून पारित किया, जिसने रूसी और अन्य अल्पसंख्यक भाषाओं को क्षेत्रीय भाषा का दर्जा दिया, जिससे उन क्षेत्रों में इन भाषाओं का आधिकारिक उपयोग संभव हो गया जहाँ उनकी जनसंख्या 10% से अधिक थी। इस कानून का व्यापक विरोध हुआ, क्योंकि इसे यूक्रेनी भाषा की स्थिति को कमजोर करने वाला माना गया। 2014 में, यूरोमैदान क्रांति के बाद, इस कानून को निरस्त करने का प्रयास किया गया, लेकिन तत्कालीन कार्यवाहक राष्ट्रपति ने इस कदम को वीटो कर दिया। 2019 में, एक नया कानून पारित किया गया, जिसने यूक्रेनी भाषा के उपयोग को सार्वजनिक जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में अनिवार्य कर दिया, जिससे रूसी भाषी समुदायों में असंतोष बढ़ा।

डोनबास क्षेत्र और भाषा का मुद्दा:

डोनबास क्षेत्र, विशेष रूप से डोनेट्स्क और लुहान्स्क, रूसी भाषी आबादी का गढ़ माना जाता है। 2014 में, इन क्षेत्रों में रूस समर्थित अलगाववादियों ने स्वतंत्रता की घोषणा की, जिससे यूक्रेन सरकार और विद्रोहियों के बीच संघर्ष शुरू हुआ। भाषाई विभाजन ने इस संघर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जहाँ रूसी भाषा बोलने वाले समुदायों ने कीव सरकार की नीतियों का विरोध किया, जिन्हें वे अपनी सांस्कृतिक पहचान के लिए खतरा मानते थे।

रूसी आक्रमण और भाषा का उपयोग:

2022 में रूस द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण के दौरान, राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने दावा किया कि यूक्रेन में रूसी भाषी लोगों के साथ भेदभाव हो रहा है और उनकी सुरक्षा के लिए यह कदम आवश्यक है। हालांकि, कई विशेषज्ञों ने इन दावों को निराधार बताया और इसे आक्रमण को वैध ठहराने का एक बहाना माना। यूक्रेन में, इस आक्रमण के बाद, राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने के लिए यूक्रेनी भाषा के उपयोग को और बढ़ावा दिया गया।

भाषाई पहरेदार और सांस्कृतिक संरक्षण:

कुछ यूक्रेनी शहरों, जैसे इवानो-फ्रैंकिव्स्क, में “भाषाई पहरेदार” पहल शुरू की गई, जिसका उद्देश्य सार्वजनिक स्थानों पर रूसी भाषा के उपयोग को नियंत्रित करना और यूक्रेनी भाषा के उपयोग को प्रोत्साहित करना था। इन पहलों का उद्देश्य शरणार्थियों और स्थानीय निवासियों को यूक्रेनी भाषा सीखने के लिए प्रेरित करना और सांस्कृतिक एकीकरण को बढ़ावा देना था। हालांकि, कुछ मानवाधिकार संगठनों ने इन पहलों की आलोचना की और उन्हें असंवैधानिक बताया।

यूक्रेन-रूस युद्ध में भाषा विवाद केवल भाषाई प्राथमिकताओं का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह राष्ट्रीय पहचान, सांस्कृतिक संरक्षण और राजनीतिक प्रभुत्व के संघर्ष का प्रतीक है। भाषा नीतियाँ और उनके कार्यान्वयन ने दोनों देशों के बीच तनाव को और बढ़ाया है। भविष्य में, एक समावेशी और संतुलित भाषा नीति, जो सभी समुदायों की भाषाई और सांस्कृतिक पहचान का सम्मान करे, इस विवाद को हल करने में सहायक हो सकती है।

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