डॉ. एच. बालसुब्रहमण्यम : एक बहुआयामी साहित्यिक व्यक्तित्व

~ विजय नगरकर
डॉ. एच. बालसुब्रहमण्यम हिंदी साहित्य और अनुवाद के क्षेत्र में एक प्रतिष्ठित नाम हैं। वे लेखन, अनुवाद, संपादन और भाषा विज्ञान के विशेषज्ञ हैं तथा इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली में परामर्शदाता के रूप में कार्यरत हैं। हिंदी और तमिल साहित्य के सेतु रूप में वे अनुवाद के माध्यम से दोनों भाषाओं के सांस्कृतिक आदान-प्रदान को मजबूत करने में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।
शिक्षा और विद्वत्ता
डॉ. बालसुब्रहमण्यम ने एम.ए. (हिंदी) और पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की है। वे साहित्यरत्न की उपाधि प्राप्त करने के साथ-साथ अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान और पत्रकारिता में भी डिप्लोमा धारक हैं। यह उनके बहुआयामी ज्ञान और भाषा संबंधी दक्षता को दर्शाता है। उनका भाषा विज्ञान और पत्रकारिता में अध्ययन उनके लेखन और अनुवाद कार्यों में परिलक्षित होता है।
लेखन और प्रकाशन
डॉ. एच. बालसुब्रहमण्यम ने कविता, निबंध, जीवनी, प्रेरणात्मक लेखन, साहित्यिक आलोचना और अनुवाद के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखे और संपादित किए हैं। उनके प्रमुख प्रकाशन इस प्रकार हैं:
स्वतंत्र लेखन और मूल कृतियाँ:
जाग उठा है कालभैरव (कविता-संग्रह)
कामयाबी की दस्तान (जीवनी)
निबंध-भारती (निबंध-संग्रह)
क्या साक्षरता प्रतीक्षा कर सकती है
तिरुक्कुरल का संपूर्ण अनुवाद एवं समीक्षा (सहयोग से, 1999)
संपादन कार्य:
उत्तर और दक्षिण सांस्कृतिक समन्वय
समकालीन तमिल कविताएँ (अतिथि संपादक)
तिशै एट्टुम मैथिली विशेषांक (2008)
अनुवाद कार्य:
डॉ. बालसुब्रहमण्यम का अनुवाद साहित्य अत्यंत विस्तृत और बहुमुखी है। उन्होंने तमिल, हिंदी और मलयालम साहित्य के कई महत्वपूर्ण ग्रंथों का अनुवाद किया है, जिससे विभिन्न भाषाओं और संस्कृतियों के बीच सेतु का कार्य किया है।
तमिल से हिंदी अनुवाद:
काली माटी अंचल से (रेखाचित्र)
बंदरगाह (उपन्यास)
आसम कुरसी (उपन्यास)
कहाँ जा रहे हैं हम (उपन्यास)
अपना-अपना अंतरग (कहानी-संग्रह)
बिंदु की ओर (कविता-संग्रह, सहयोग से)
पीढ़ियाँ (उपन्यास
भरपूर इच्छा कीजिए (प्रेरणात्मक)
पवलाई (उपन्यास)
कोयले की खान (उपन्यास)
हिंदी से तमिल अनुवाद:
फणीश्वरनाथ रेणु की कहानियाँ
संरचनावाद, उत्तर संरचनावाद एवं प्राच्य काव्यदर्शन
यतिरवाहनन (उपन्यास)
मलयालम से हिंदी अनुवाद:
मंदिर का हाथी (नाटक)
दुकान की चाबी (कहानी)
पढ़ते-पढ़ते कभी न खतम होती किताब
वेदों का देश
डॉ. बालसुब्रहमण्यम के अनुवाद कार्यों में न केवल साहित्यिक उत्कृष्टता है, बल्कि उन्होंने भाषाओं के बीच एक सजीव संवाद स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
सम्मान और पुरस्कार
डॉ. बालसुब्रहमण्यम को उनकी साहित्यिक और अनुवादक सेवाओं के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों और सम्मानों से नवाजा गया है:
सौहार्द सम्मान (उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, 1998)
साहित्य अकादमी दिल्ली अनुवाद पुरस्कार (2002)
संसदीय राजभाषा समिति – राष्ट्रभाषा गौरव सम्मान (2006)
राष्ट्रीय हिंदी परिषद मेरठ द्वारा सम्मान (2007)
अखिल भारतीय राष्ट्रभाषा विकास संगठन गाजियाबाद द्वारा राष्ट्रभाषा संरक्षक सम्मान (2007)
उच्चतम न्यायालय की साहित्यिक संस्था “कवितायन” द्वारा सम्मान (2007)
इन सम्मानों से यह स्पष्ट होता है कि वे न केवल एक कुशल लेखक और अनुवादक हैं, बल्कि भारतीय भाषाओं के समृद्धिकरण में भी उनकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।
विशेषज्ञता और योगदान
डॉ. एच. बालसुब्रहमण्यम ने विभिन्न क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा का परिचय दिया है। उनकी विशेषज्ञता के क्षेत्र इस प्रकार हैं:
लेखन
अध्यापन
संपादन
अनुवाद
पत्रकारिता
भाषा विज्ञान
तकनीकी भाषा अध्ययन
वे भाषाओं के विकास और उनके परस्पर समन्वय के प्रति विशेष रुचि रखते हैं। उनकी रचनाएँ और अनुवाद इस बात का प्रमाण हैं कि वे न केवल साहित्यिक अभिव्यक्ति के प्रति सजग हैं, बल्कि भाषा और संस्कृति के बीच समन्वय स्थापित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
निष्कर्ष
डॉ. एच. बालसुब्रहमण्यम हिंदी और तमिल साहित्य के बीच एक सशक्त सेतु की भूमिका निभा रहे हैं। उनकी रचनाएँ, अनुवाद और संपादन कार्य न केवल साहित्यिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि भाषाओं के बीच एक जीवंत संवाद स्थापित करने का प्रयास भी हैं। उन्होंने अपने बहुमुखी योगदान से साहित्य, पत्रकारिता और भाषा विज्ञान के क्षेत्र में अमूल्य योगदान दिया है। उनके कार्य भारतीय भाषाओं और उनकी सांस्कृतिक धरोहर को समृद्ध करने में मील का पत्थर साबित हो रहे हैं।
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